Thursday, August 19, 2010

बस एक गुजारिश है तुमसे..........

मैंने आज सोच लिया है की मै तुमसे सारी बाते कर लूँगा
हर वो बात कह दूंगा जो कहना चाहता हु
वो सारी बाते जो पिछली कई मुलाकातों में नहीं कह पाया
और जो मैंने अपने आप से हज़ार बार कही है
मानो किसी नाटक की rehearsal कर रहा हु

मैंने अपनी कल्पनाओ में तुम्हारे वाक्य भी सोच लिए है
जो हर बार बदलते रहते है
कभी तुम खुश होती हो और कभी तुम नाराज
कभी तुम मेरी हर बात मान लेती हो और कभी एक छोटी सी बात के लिए भी अड़ जाती हो
फिर मै सोच में पड़ जाता हु और अपने वाक्य बदलने लगता हु

पर मैंने आज निश्चय कर लिया है की मै तुमसे हर सवाल का जवाब मांग लूँगा
वो सारे सवाल जो रोज मुझे तंग करते है
अक्सर जिनमे उलझ कर मै थम सा जाता हु
और सोचता रहता हु तुम्हारे बारे में, खुद के बारे में, हमारे बारे में,
ये सवालो का सिलसिला अंतहीन चलता रहता है
और जब मै थक जाता हु तो तुमपे गुस्सा होता हु, खुदपे गुस्सा होता हु,

अब मैंने सोच लिया है की मै भागूँगा नहीं
न तुमसे, न खुदसे, न इन सवालो से
मैंने फैसला कर लिया है
आज मै तुमसे सारी बाते कर लूँगा

बस एक गुजारिश है तुमसे
जब भी हम मिलेंगे, तुम अपनी आँखे मूंद लेना
उन्हें देख कर मै हर बात भूल जाता हु
उन सारी बातो को जो मैंने तुम्हारे बारे में, अपने बारे में, हमारे बारे में सोची होती है,
सारे सवालो को, जिनसे मै थक जाता हु, गुस्सा होता हु,
मै अपने आप को भूल जाता हु.
और सिर्फ तुम्हारी आँखों में देखता रहता हु.

बस एक गुजारिश है तुमसे
जब भी हम मिलेंगे, तुम अपनी आँखे मूंद लेना

Wednesday, August 18, 2010

मुझे ये तनहा लम्हे.......

मुझे ये तनहा लम्हे चुभने लगते है
जब भी याद आते है वो लम्हे

लम्हे जो तुम्हारे साथ गुजारे थे........

या फिर तुम्हारे इंतजार में....

वो लम्हे जो समंदर के किनारे चलते हुवे....भीग गए थे

और वो लम्हा जब हम साथ चलते हुवे राह भटक गए थे

वो मंजिल मुजे आज भी नहीं मिली है...........

मुझे ये तनहा लम्हे चुभने लगते है
जब भी याद आते है वो लम्हे

याद है जब बैठे थे ट्रेन के दरवाजे में

और तुम्हे लगा की मै गिरने वाला हु

तुम्हारी बड़ी बड़ी आँखों ने

प्यार, डर, गुस्सा, चिंता सब एक साथ दिखाया था

और जिंदगी में पहली बार

मुझे अपने जिन्दा होने का अर्थ समझ आया था

मुझे ये तनहा लम्हे चुभने लगते है
जब भी याद आते है वो लम्हे

वो वक़्त जो हमने बिताया रूठने मनाने में.......

अब लगता है कोई मतलब नहीं था उसे गवाने में

शायद मै तुमसे दो बाते और कर लेता......

कुछ नहीं तो शायद तुम्हे ...

या तुम्हारी आँखों में ही और देख लेता....

मुझे ये तनहा लम्हे चुभने लगते है
जब भी याद आते है वो लम्हे

मुझे याद है तुम्हारी भीगी पलके और मेरी कोशिश तुम्हे हँसाने की.....


तेरे वो आंसू मुझे आज रुलाते है.....

और अब मेरी पलकों को भीगते है


मै उन लम्हों को भुलाना चाहता हु......

और वो लम्हे मुझे रुलाना चाहते है

Sunday, August 15, 2010

आज १५ अगस्त है, सुबह ताज़ा अख़बार उठाया और फिर वोही बासी खबर पढने को मिली, भ्रष्टाचार की, उससे बच के आगे बढ़ा तो एक बहुत बड़ा विज्ञापन देखा किसी शेम्पू का उन्होंने अपनी सारी कलात्मकता का परिचय देते हुवे देश की आजादी को बालो की dandruff से आजादी के साथ जोड़ दिया है, तो क्या हमारी आजादी इतनी सस्ती हो गयी है की वो किसी dandruff मुक्त शेम्पू के साथ जोड़ी जा सकती है ?? क्या इसके लिए कोई कानून नहीं बनाया जा सकता है ?? हमारे शहीदों ने अपने घर परिवार पे अंगार रख के इसलिए ये आजादी हासिल की थी ताकि कोई आज उसे अपना प्रोडक्ट बेचने के लिए इतने घटिया तरीके से इस्तेमाल कर सके ?? खैर फिर भी मै उनका शुक्रिया अदा करता हु की उन्होंने अपने शेम्पू को भगतसिंह, राजगुरु या तिलक जी के नाम के साथ नहीं जोड़ा.
अच्छा तो ये होगा की इन्हें अदालत में खीच लिया जाये और सख्त करवाई की जाये पर फिर लगता है इसमें भी किसी बड़े नेता का हिस्सा होगा जो साप बनके इस खजाने की रक्षा कर रहा होगा और बदले में ये लोग उसे दूध पिला रहे होंगे,
आज इन्सान हैवान बन के हत्या, डकैती और बलात्कार जैसे घिनोने काम कर रहा है. पैसे के लालच मै अँधा हो के देश को लूट खसोट रहा है, पता नहीं शायद इस वक़्त कोई देश को बेचने की कोशिश भी कर रहा होगा, कलमाड़ी, ललित मोदी, हर्षद मेहता, सुखराम, ....फेहरिस्त काफी लम्बी है यहाँ जगह काम पड़ जाएगी और वैसे भी आम आदमी की याददाश्त काफी कमजोर होती है और न ही उसके पास वक़्त होता है, वो तो अपनी नून तेल लकड़ी की समस्याओ से ही जूझ रहा है, वोही रोटी कपडा और मकान, वैसे मकान भी हर किसी को तो नसीब नहीं होता है, और अगर हो भी गया तो एक पूरी पीढ़ी उसका क़र्ज़ उतारने में खर्चा हो जाती है या कभी कभी तो आने वाली पीढ़ी को वो क़र्ज़ विरासत में दे जाती है, इन सारी जद्दोजेहद से बच के जब वक़्त मिलता है तो हम अख़बार पढ़ लेता है या टीवी देख लेता है उसमे फिर वोही सारी खबरे होती है,
खैर हम लोग थोड़े में खुश रहते है नहीं रहना सिख गए है, वक़्त पे टैक्स भरते है या ये कहो की वक़्त के पहले उसे काट लिया जाता है ( ताकि ये दरिन्दे उनका घर भर सके), खैर बाकि का फिर कभी,
क्म से क्म हमें विचार करने की, उन्हें प्रकट करने की और उनपे अमल करने की स्वतंत्रता तो है. आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाये, जय हिंद