Monday, April 25, 2011

खानाबदोश

मानो तो ये जिंदगी मस्त है न मानो तो पस्त है

हर कदम पे तूफान है तो उसे पार करने की ताकत भी है


हर अगले मोड़ पे धोका है तो

कभी कभी ठंडी हवा का झोका भी है


कभी फाकों में भी मस्ती का आलम है

तो कभी भरे पेट भी किसी बात का गम है


कभी यारों का साथ है

और कभी दुश्मनों की बारात है


वैसे तो ये जिंदगी का दस्तूर है

पर शायद ये बेवजह ही मगरूर है


खैर जिंदगी तो जिंदगी है

इसपे मरना मेरी बंदगी है


शायद इसकी बेरुखी मेरी जान लेगी


या फिर


इसकी चाहत में मै दम तोडूंगा

Sunday, April 17, 2011

रोटी

बदहवासी की हालत में

बेतहाशा भागता हुवा वो

कभी आगे तो कभी पीछे देखता हुवा

हर बार लगने वाली ठोकरों से खुद को संभालता हुवा

और पीछे भागने वाली भीड़ से खुद को बचाता हुवा


भीड़ कभी गालिया निकालती तो कभी

पत्थर उछालती

अपने उन्माद को और बढाती हुई


धीरे धीरे भीड़ नजदीक आने लगी

अब उसका भी दम फूलने लगा

जल्दी ही भीड़ ने उसको दबोच लिया

वो निचे था और जनता उसके ऊपर


बड़ी मुश्किल से जतन की हुई

हाथ की रोटी

मिटटी में मिल चुकी थी

और साथ ही में

मिल गयी थी मिटटी में

उसकी भूक

और

आँख से गिरते हुवे आंसू

Tuesday, April 12, 2011

काफी जिद्दी सी मेरी जिंदगी

बड़ी अजीब है मेरी जिंदगी
कभी हसाती कभी रुलाती

कभी खुद रूठती
तो कभी मुझे सताती

काफी जिद्दी सी मेरी जिंदगी

कभी सूरज में तपती
तो कभी बारिश में भीगती

कभी शहद से भी मीठी तो
कभी समंदर से भी नमकीन मेरी जिंदगी

काफी जिद्दी सी मेरी जिंदगी

कभी बेतहाशा दौड़ती
और कभी मुझे दौड़ाती

अपने नखरो से मुझे
लुभाती ये जिंदगी

काफी जिद्दी सी मेरी जिंदगी

Sunday, April 10, 2011

और फिर खुद को खत्म कर लूँगा

फिर एक दिन तमाम हुवा
और तेरी चाहत को पाने में
मै फिर नाकाम हुवा

रोज की तरह
मेरी आरजू तेरी
बेरुखी की वजह से
तड़पती रही

रोज की तरह
सूरज का आना और
चाँद के आने तक रुकना
ऐसा लगता है
मानो मेरे अकेलेपन का
अहसास उसे भी हो चुका है

तुझे शायद लगे ना लगे
पर मुझे पता है की
ये पल जैसे
तेजाब की बुँदे
बन कर मेरे
वजूद को जला रहे है

पर मै हर रोज आऊंगा
अपने आप को जलाऊंगा

कोई तो दिन होगा जब
जब तुझे मेरी याद आएगी
मेरे आंसू
मेरी मुहोब्बत
तुझे जलाएगी

और अगर तू समझ ना पाई
तो मै समझ लूँगा

सिर्फ और सिर्फ एक ब़ार
तुझे याद करूँगा

और फिर खुद को
खत्म कर लूँगा

Friday, April 8, 2011

जैसा की अक्सर होता है

जैसा की अक्सर होता है

कल भी पूरी रात मै सो न सका

कोशिश करता रहा

सपने देखने की


पर उसके लिए

नींद का आना भी तो जरुरी है ना

और वो तो जैसे मुझसे नाराज हो गयी थी

बिलकुल तुम्हारी तरह

मेरा उसको मनाने का भी कोई फायदा नहीं हो रहा था

वो भी रूठी हुवी थी

बिलकुल तुम्हारी तरह


कुछ देर बाद समझ में आया

नींद ना आने की वजह

उसकी नाराजगी नहीं

बल्कि तुम्हारी मौजूदगी है

वैसे तुम्हारी मौजूदगी के लिए

तुम्हारा होना जरुरी नहीं होता

तुम हर वक़्त मेरे पास ही होती हो

नहीं तुम तो........

तुम तो जैसे मेरे वजूद का एक हिस्सा हो

या फिर शायद मै तुम्हारे वजूद का हिस्सा हु


खैर .........
उलझ गया था अपने आप से

तय नहीं कर पा रहा था

की तुम्हारे नर्म हाथों पे लगी ताजी मेहंदी की खुशबु मुझे दीवाना बनाती है या

फिर तुम्हारे गेसुओ में लिपटे हुवो फूलों की महक

तुम्हारी हंसी

मेरे पागलपन की वजह है या

तुम्हारी आँखें


एक बात तो जरुर है

कभी तुम

कभी तुम्हारी हंसी

कभी गीली मेहँदी की खुशबु

कभी जुल्फों की महक

कभी तुम्हारी आँखों का जादू

एक एक करके मुझे सताते है

और
रोज मुझे जगाते है

बस अब

मेरी तुमसे एक ही गुजारिश है

एक ब़ार आने की

थोडा वक़्त बिताने की

वादा करता हु

ज्यादा वक़्त नहीं लूँगा

तुम्हारे आगोश में जाते ही

हमेशा के लिए सो जाऊंगा

Monday, April 4, 2011

फासले

फासले

कुछ चाहे

कुछ अनचाहे

धीरे धीरे बढ़ते हुवे

तुम्हारे मेरे दरमियान

और मेरी सांसो के बिच भी

कई ब़ार मै तय नहीं कर पाता हू

की सांस लेना ज्यादा मुश्किल है

या फिर तुमसे मिलने की कोशिश करना

वैसे एक बात तो तय है

अगर मै तुमसे नहीं मिल सकता तो

मुझे सांस लेने की भी जरुरत नहीं है

पता नहीं अब कितना वक़्त बचा है

सोचता हु सांस लेने से बेहतर है

एक ब़ार फिर तुमसे मिलने की कोशिश ही कर लू

इस उम्मीद के साथ की शायद

आंखरी सांस तुम्हारी बाँहों में ले लू

और सारे फासले खत्म हो जाये

वादे

हर ब़ार एक नयी उम्मीद लेकर आता हु तेरे शहर में

की शायद इस ब़ार तो तुझसे मुलाकात हो जाये

और फिर हमेशा की तरह मायूस हो के चला जाता हु

अगली ब़ार मिलने का सपना देखते हुवे


जानता हु फिर भी हर ब़ार उम्मीद लगाता हु

और हर ब़ार वो ही भूल करता हु

तेरे वादे पे ऐतबार करने की

जिंदगी

कई टुकड़ो में बिखर गयी है ये जिंदगी

लगता है इन्हें सहेजते सहेजते वक़्त कट ही जायेगा

मुलाक़ात

गर मुलाक़ात न हो तो तकलीफ़ सह लेंगे हम

पर लम्हों को बांध के मुलाक़ात हमें मंजूर नहीं

Sunday, April 3, 2011

मैंने देखा था एक ख्वाब

मैंने देखा था एक ख्वाब

झील सी आँखों का

खनकती हंसी का

शहद सी बोली का



अब भी रखा है उसे सहेज के

अपने तकिये के निचे

मन के किसी कोने में

यादों की चौकट में

मेरी सांसो में

मेरी धड़कन में

तुम्हारी हंसी में

मेरे आँसुओ में



देखता हु उसे निकाल के

जब भी होता हु अकेला


या फिर


जब होना चाहता हु अकेला,

यादों में तुम्हारी खोने के लिए