Tuesday, August 23, 2011

डर

मै तब जैसा था

आज भी

वैसा ही हु

पर शायद

अब

तुम्हारा नजरिया ही बदल गया है

वैसे और भी कुछ बदला है

मेरी जिंदगी में

अब मैंने समंदर पे जाना छोड़ दिया है

मुझे डर है कही

वो अकेली नाव

किनारे की ठंडी रेत

नारियल के वो पेड़

समंदर की लहरें

चंपा के मासूम फूल

वो अजनबी जिसने हमें रास्ता बताया था

और वो पुलिस वाला जिसने हमें धमकाया था

हमने इकट्ठी की हुई सीपिया

रात की तनहाई

सुबह का सूरज

ये सब

तुम्हारे बारे में ना पुछ ले

क्या जवाब दूंगा मै उन्हें

की मैंने तुम्हे खो दिया

या अपने आप को

या की अब मै

खुद ही को नहीं

पहचानता

Saturday, August 6, 2011

उधार की जिंदगी

पता नहीं

क्यों

हम अपनी

मजबूरियों को

समझदारी का नाम देते है


घोट देते है गला

अपनी आकांक्षाओ का

ओढ़ कर लबादा

अपनी जवाबदारियों का


दबा देते है

अपनी अभिव्यक्ति को

पहन कर मुखौटा

किताबी लब्जों का


खरीदना चाहते है

खुशियों को

चंद रुपयों के बदले में

किसी सब्जी के मानिंद



कोशिश करते है

खुश होने की

लेकर उधार की जिंदगी


चुकाते रहते है

उस कर्ज को

अपनी सांसों से


और


बाट जोहते है

उस मुक्ति की

जिसे हमने


कब का


जिंदगी के बदले में

गिरवी रख दिया है

Wednesday, August 3, 2011

अल्फाज

अल्फाज

काफी सारे

कुछ तुमने कहे

और शायद कुछ मैंने भी

जो मैंने कहे थे वो अब भी मुझे याद है

और जो तुमने कहे थे

वो तो मै कभी भूल ही नहीं सकता


मुझे तो

वो अल्फाज भी याद है

जो तुमने कभी कहे ही नहीं

उसके लिए तुम्हारी आँखे ही काफी थी

जानता था की ये अल्फाजो का मायाजाल है

फिर भी उसमे उलझना अच्छा लगता था


वो शायद तुम्हारी हंसी का असर था

या फिर तुम्हारी मासूम आँखों का जादू था

जो तुम्हारी जुबां से ज्यादा बोलती थी


मै अब भी तय नहीं कर पा रहा हु की

मै तुम्हारी आँखों में

ज्यादा उलझता था या

तुम्हारी जुल्फों में