मै तब जैसा था
आज भी
वैसा ही हु
पर शायद
अब
तुम्हारा नजरिया ही बदल गया है
वैसे और भी कुछ बदला है
मेरी जिंदगी में
अब मैंने समंदर पे जाना छोड़ दिया है
मुझे डर है कही
वो अकेली नाव
किनारे की ठंडी रेत
नारियल के वो पेड़
समंदर की लहरें
चंपा के मासूम फूल
वो अजनबी जिसने हमें रास्ता बताया था
और वो पुलिस वाला जिसने हमें धमकाया था
हमने इकट्ठी की हुई सीपिया
रात की तनहाई
सुबह का सूरज
ये सब
तुम्हारे बारे में ना पुछ ले
क्या जवाब दूंगा मै उन्हें
की मैंने तुम्हे खो दिया
या अपने आप को
या की अब मै
खुद ही को नहीं
पहचानता
Tuesday, August 23, 2011
Saturday, August 6, 2011
उधार की जिंदगी
पता नहीं
क्यों
हम अपनी
मजबूरियों को
समझदारी का नाम देते है
घोट देते है गला
अपनी आकांक्षाओ का
ओढ़ कर लबादा
अपनी जवाबदारियों का
दबा देते है
अपनी अभिव्यक्ति को
पहन कर मुखौटा
किताबी लब्जों का
खरीदना चाहते है
खुशियों को
चंद रुपयों के बदले में
किसी सब्जी के मानिंद
कोशिश करते है
खुश होने की
लेकर उधार की जिंदगी
चुकाते रहते है
उस कर्ज को
अपनी सांसों से
और
बाट जोहते है
उस मुक्ति की
जिसे हमने
कब का
जिंदगी के बदले में
गिरवी रख दिया है
क्यों
हम अपनी
मजबूरियों को
समझदारी का नाम देते है
घोट देते है गला
अपनी आकांक्षाओ का
ओढ़ कर लबादा
अपनी जवाबदारियों का
दबा देते है
अपनी अभिव्यक्ति को
पहन कर मुखौटा
किताबी लब्जों का
खरीदना चाहते है
खुशियों को
चंद रुपयों के बदले में
किसी सब्जी के मानिंद
कोशिश करते है
खुश होने की
लेकर उधार की जिंदगी
चुकाते रहते है
उस कर्ज को
अपनी सांसों से
और
बाट जोहते है
उस मुक्ति की
जिसे हमने
कब का
जिंदगी के बदले में
गिरवी रख दिया है
Wednesday, August 3, 2011
अल्फाज
अल्फाज
काफी सारे
कुछ तुमने कहे
और शायद कुछ मैंने भी
जो मैंने कहे थे वो अब भी मुझे याद है
और जो तुमने कहे थे
वो तो मै कभी भूल ही नहीं सकता
मुझे तो
वो अल्फाज भी याद है
जो तुमने कभी कहे ही नहीं
उसके लिए तुम्हारी आँखे ही काफी थी
जानता था की ये अल्फाजो का मायाजाल है
फिर भी उसमे उलझना अच्छा लगता था
वो शायद तुम्हारी हंसी का असर था
या फिर तुम्हारी मासूम आँखों का जादू था
जो तुम्हारी जुबां से ज्यादा बोलती थी
मै अब भी तय नहीं कर पा रहा हु की
मै तुम्हारी आँखों में
ज्यादा उलझता था या
तुम्हारी जुल्फों में
काफी सारे
कुछ तुमने कहे
और शायद कुछ मैंने भी
जो मैंने कहे थे वो अब भी मुझे याद है
और जो तुमने कहे थे
वो तो मै कभी भूल ही नहीं सकता
मुझे तो
वो अल्फाज भी याद है
जो तुमने कभी कहे ही नहीं
उसके लिए तुम्हारी आँखे ही काफी थी
जानता था की ये अल्फाजो का मायाजाल है
फिर भी उसमे उलझना अच्छा लगता था
वो शायद तुम्हारी हंसी का असर था
या फिर तुम्हारी मासूम आँखों का जादू था
जो तुम्हारी जुबां से ज्यादा बोलती थी
मै अब भी तय नहीं कर पा रहा हु की
मै तुम्हारी आँखों में
ज्यादा उलझता था या
तुम्हारी जुल्फों में
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