अब जब जख्म भर चले है तो
क्यों तुम मुझे याद आते हो
अब जाकर मै इस भुलावे में आया था
की मै तुम्हे भूलने लगा हु
फिर एक ब़ार मेरे जिंदगी में आ के
क्यों मुझे सताते हो
जानता हु ये द्वन्द है मेरा.. मेरे मन से ही
चेतन मन का अचेतन मन से
बड़ी मुश्किल से इस मन ने उस मन को समझाया है
अब फिर से क्यों उसे रुलाते हो
अब जब जख्म भर चले है तो
क्यों तुम मुझे याद आते हो
जिंदगी के लम्हों को उलझा के
मैंने इन सांसों को सुलझाया है
फिर एक ब़ार अपनी निगाहों से
सुलझी सांसों को क्यों उलझाते हो
अब जब जख्म भर चले है तो
क्यों तुम मुझे याद आते हो
अब मै लहरों से दोस्ती करके
समंदर के आगोश में जाना चाहता हु
तो फिर क्यों आवाज दे के
मुझे वापस बुलाते हो
अब जब जख्म भर चले है तो
क्यों तुम मुझे याद आते हो
Thursday, December 29, 2011
Friday, December 16, 2011
तुम्हारी याद में...........................
जिंदगी किसी नदी के मानिंद अविरत ... अविचल बहती जा रही थी
की अचानक तुम्हारे मिल जाने से ये जैसे ये अपना रास्ता भूल गयी
चाहा तो कभी ना था इसने उस रास्ते पे चलना
जिस राह पे ये यु ही अचानक मूड गयी
अब तो आगे बढ़ने के सिवाय कोई चारा ना था
वैसे भी पीछे लौटना मेरी जिंदगी ने कभी सिखा ही नहीं
कभी सपने देखने की जिद तो कभी फ़ना होने का जूनून
संभल कर चलना तो इसने कभी सोचा ही नहीं
जिंदगी के ये दो किनारे किसे छोडू किसके साथ चलता रहू
ये तो शायद मुझे नदी से ही सीखना होगा
नदी भी तो जिंदगी भर दो किनारों के साथ चलती है
की अचानक तुम्हारे मिल जाने से ये जैसे ये अपना रास्ता भूल गयी
चाहा तो कभी ना था इसने उस रास्ते पे चलना
जिस राह पे ये यु ही अचानक मूड गयी
अब तो आगे बढ़ने के सिवाय कोई चारा ना था
वैसे भी पीछे लौटना मेरी जिंदगी ने कभी सिखा ही नहीं
कभी सपने देखने की जिद तो कभी फ़ना होने का जूनून
संभल कर चलना तो इसने कभी सोचा ही नहीं
जिंदगी के ये दो किनारे किसे छोडू किसके साथ चलता रहू
ये तो शायद मुझे नदी से ही सीखना होगा
नदी भी तो जिंदगी भर दो किनारों के साथ चलती है
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