Monday, February 14, 2011

जिंदगी एक सराय है

जिंदगी एक सराय है और मै एक मुसाफिर

भटक रहा हु यहाँ से वहा जिंदगी की तलाश में


जंगल, परबत, नदी, नाले, खेत, खलिहान

गाँव, शहर, समंदर, रेगिस्तान,


कभी अपनों की छाव में

तो कभी परायो के गाँव में


जहा भी मिला वहा डेरा जमाया

कभी खुद से पकाया तो कभी दूसरो ने खिलाया

कभी पेड़ो के निचे तो कभी तालाब के किनारे

धरती पे पड़ा आसमान को ओढा


कभी अँधेरी रातो में जागा

तो कभी चांदनी रातो से भागा

कभी मेले में तो कभी अकेले में

हरवक्त खुद को ढूंडा पर

शायद ही कभी खुद को पाया


जिंदगी एक सराय है और मै एक मुसाफिर

भटक रहा हु यहाँ से वहा जिंदगी की तलाश में


जब भी देखा तो मुझे खुदमे

उसका ही साया नजर आया


मंदिर, मस्जिद, गिरजा, गुरूद्वारे

हर जगह ढूंडा उसको मारे मारे


किसीने कहा उसने देखा है उसे

तो किसी ने उसका पता बताया


मैंने तो उसे पाया है हर उस जगह पे....

छोटे भाई को गोद में उठाके गुब्बारे बेचती उस छोटी लड़की में

खेत में हल चलाके थक के मेढ़ पे बैठे उस किसान में

जंगल में मवेशियों को चराते हुवे उस चरवाहे में

माँ के हाथ की बनी हुवी रोटी में

दोस्त के गुस्से में

पैर में चुभे हुवे कांटे में

मधुमक्खी के डंक में

अकेली नाव में बैठे उस मल्लाह के गाने में

पानी में पड़ी चाँद की परछाई में

तेरी आँखों में तेरी हंसी में

शायद..... मैंने पाया है या फिर खोया है......


जिंदगी को जिंदगी में

Friday, February 11, 2011

अपने हिस्से का सूरज

घर में ही रह पाता काश मै
बेघर हो गया रोटी की तलाश में

चाहता था लाना साथ में अपनी जमीं भी
पर सिर्फ ला पाया मुट्ठी भर आकाश मै

थोड़ी सी यादें भी है कुछ अच्छी कुछ बुरी
थोडा दर्द और उसके काफी ज्यादा अहसास भी

और लाया हु अपने हिस्से का सूरज
जिसकी तपन में जला रहा हु अपने अहसास मै

Sunday, February 6, 2011

पहाड़ो में रात कुछ जल्दी आती है

आज कुछ यु ही भटकता रहा दिन भर पहाडियों में
मै भी और मेरा मन भी

चलता रहा उन पगडंडियों पर जो शायद बनी है
चरवाहों के रोज एक ही राह पे चलने से
शायद भेड़ो के साथ रह रह के वो भी एक ही राह चलने लगे है
अब तो लगता है मै भी कुछ उसी राह पे चल रहा हु

मै हर उस राह पर चला जो मुझे तुम्हारी ओर ले जाती थी
या फिर शायद मेरी हर राह तुम्हारी ओर ही जाती है

कई बार मै यु ही गिनता रहा देवदार के उन दरख्तों को
जो अब भी अविचल खड़े है ओर लगता है सदियों तक ऐसे ही खड़े रहेंगे

मुझे रश्क हो आया उनकी दीवानगी पे
पता नहीं किसका इंतजार कर रहे है वो

देवदार मुझे बड़ी अजीब निगाहों से देखते रहे
जैसे उन्हें भी मेरी दीवानगी समझ में आ रही हो

पता नहीं कब तक यु ही सोचते हुवे भटकता रहा
या भटकते हुवे सोचता रहा

सुनाई दी जब दूर से गिरजे की घंटिया तब पाया
की शाम के धुंधलके में साये लम्बे होने लगे है
ओर किसी पहाड़ी के ऊपर उठ रही है धुवे की लकीरे

इसके पहले की चाँद आकर मुझसे सवाल पूछे
मुझे अब वापस लौट जाना चाहिए

लगता है शायद अब तुम भी नहीं आओगे
वैसे गलती तुम्हारी नहीं है

पहाड़ो में रात कुछ जल्दी आती है

Saturday, February 5, 2011

मन फिर भागता है बचपन की ओर

मन फिर भागता है बचपन की ओर

वो गली में खेलना गिल्ली डंडा और कंचे

या फिर भागते रहना एक दुसरे के पीछे

बार बार गिरना और घुटनों का फूटना

और तकलीफ दर्द की नहीं सिर्फ माँ के डाटने की

अँधेरा गहराते ही डर सताता था अँधेरे का नहीं

घर में पिताजी पढाई के बारे में पूछेंगे उसका



बड़ा अच्छा था वो बचपन जब साथी

सब कुछ लगते थे.... शायद

माँ बाप से भी बढ़कर क्योंकि

वो नहीं पूछते थे पढाई के बारे में

और शायद ही किसी को तकलीफ़ हुई हो

किसी और के नंबर १ होने की

ये तो अब हम जलते है एक दूसरे से एक दूसरे की

तरक्की से और उसे professional approach कहते है



अब भी याद है गर्मियों की रात

जब आता था वो कुल्फी वाला

मटके में लेकर कुल्फी जिसके चारो और होता था

लपेटा हूवा वो लाल कपड़ा

और लालटेन की रोशनी से दमकता हुवा उसका चेहरा

बड़े प्यार से हमें कुल्फी खिलाता था वो



पता नहीं जिंदगी में बचपन सिर्फ एक ब़ार क्यों

आता है और वो भी सिर्फ थोड़े समय के लिए


मन फिर भागता है बचपन की ओर

Friday, February 4, 2011

कुछ कही कुछ अनकही

गर अब तुम्हारे मिजाज ठीक हो और तुम्हे चंद लम्हों की फुरसत हो
तो जरा हमें भी याद कर लेना...हम तो तुम्हारी याद में खुद को भुलाये बैठे है

पहले खुद के बारे में सोचने के लिए वक़्त नहीं था
और अब खुद के बारे में सोचने में डर लगता है

वैसे अब मुझे समंदर किनारे चलने से भी डर लगता है
गिरते वक़्त थामने के लिए तुम्हारा हाथ जो नहीं है

पर फिर मुझे इस बात की परवाह भी नहीं की जिंदगी के कितने लम्हे बचे है
आरजू है की एक बार सिर्फ एक बार तुम्हारी आँखों को देख सकू

एक शहर जो मेरे लिए अजनबी था उसे तुम्हारी मौजूदगी ने अपना बना दिया
अब जब तुम ही दूर हो गए हो तो क्या फर्क पड़ता है मै किसी भी शहर में रहू

माना की अब तुम्हारे पास मेरे लिए वक़्त नहीं और अब तुम्हे मेरी जरुरत भी नहीं
पर साथ बिताये लम्हों की याद तुम्हे भी आती तो होगी...सताती भी होगी