Friday, March 23, 2012

अब मैंने बरदाश्त करना सीख लिया है

अब मैंने बरदाश्त करना सीख लिया है
इस अकेलेपन को
इस तनहाई को
सुनी दीवारों को
इस अँधेरे को

लोगो के तानो को
अपनों के उलाहनो को
अब मैंने बरदाश्त करना सीख लिया है

दुश्मन की चाल को
अपनों के जाल को
अब मैंने बरदाश्त करना सीख लिया है

परायों के जुल्म को
अपनों के इल्म को
अब मैंने बरदाश्त करना सीख लिया है

दूसरो के वार को
अपनों के प्यार को
मैंने हर " नकाब " को बरदाश्त करना सीख लिया है

" नकाबो " की मुस्कुराहटो को
उनके " अपनेपन " को
अब मैंने बरदाश्त करना सीख लिया है

और भी काफी कुछ सीखा है मैंने

जैसे

खुद से नफरत करना

जजबातों का गला घोटना

खुद से अजनबी होना

साँस लेना

और

उसे याद रखना

की साँस लेना है

और फिर


कुछ देर और

जिन्दा रहना

बस नहीं

सीख पाया हु

मै अब तक

तुम्हे भूलना

और

तुम्हारे बगैर जीना

और शायद सीख भी नहीं पाउँगा

~ अभय

Saturday, March 10, 2012

जिंदगी का पहिया

उस चौराहे पे खड़ी वो कार
जब भी देखती है दूसरी कारों को
और सोचती है उनके बारे में
तो समझ नहीं पाती है
उनकी जिंदगी को
और उलझ जाती है
अपने खयालो में

बाजु वाली कार सफ़ेद रंग की
रोज सुबह जाती है ठीक ९ बजे
और लौट आती है शाम को ५ बजे
जैसे जिंदगी की रेखाए खीच दी हो

और वो दूसरी कार गुलाबी बंगले वाली
जाती है हर वीक एंड पे कही दूर
और आ कर सुनाती है किस्से
अपनी ऐय्याशी के
मानो वो ही उसकी जिंदगी का मकसद हो

या फिर सामने वाली बड़ी सी कार
जो हमेशा जाती है घुमने कभी पहाड़ो में
तो कभी समुन्दर के पास
पर रहती है अक्सर उदास वो
जैसे ये ही उसकी फितरत हो

उसे रश्क हो चला है
उन कारों की किस्मत पर
या तो है उलझन
खुद ही की जिंदगी पर

वैसे
उसे अक्सर दया आती है
उस पुरानी फियाट पे
जो अक्सर खड़ी होती है
पिछली पार्किंग में
उसे कोई नहीं निकालता
और ना ही कोई
पोछता भी है
जैसे उसका कोई
अस्तित्व ही ना हो


उसने हमेशा चाहा है
फर्राटे से सडको पे दौड़ना
और चाहा है
बेलगाम घूमना

पर शायद ये उसकी
किस्मत में नहीं

उसकी किस्मत में तो लिखा है
कभी कभी दौड़ना
सिर्फ पेट के लिए

या फिर घंटो खड़े
रहना इंतजार में
किसी के
इस उम्मीद में
की कोई बुलाये
और
उसकी जिदगी
सफल हो जाये

अब भी शायद उसे
कार
और
टेक्सी
के बीच
का फर्क
समझ में
नहीं
आया
है
शायद