Monday, July 23, 2012

मै और दरख्त

एक लम्बा इंतज़ार


सारा का सारा तुम्हारा

और थोडा बारिश का भी



मेरा लगातार यु ही

देहलीज पे अटके रहना

और सामने वाले दरख़्त का

मुझे घुरना एकटक



पिछले आँगन का सुखा कुवाँ

वक़्त - बेवक्त मुझे बुलाता है

उसे मेरे इन्तजार की हदे

मालूम नहीं है

शायद





पिछले कुछ सालों से आम मे बौर

नहीं आते अब

और कोयल ने भी चुप्पी साध ली है

अचानक



मेरे जजबातों में जंग लग चुका है

और मै उन्हें कुरेदना चाहता हु



ताकि एक ब़ार खुल के रो सकू

बाहर वाले दरख़्त को भींच कर

अपनी बाँहों में



इसके पहले की

वक़्त की कुल्हाड़ी उसे

काट दे

और मै रह जाऊ



बिलकुल अकेला........ एकाकी



~अभय

Friday, July 20, 2012

कशमकश

अस्पताल के बरामदे में बैठा वो इंतज़ार कर रहा था


पता नहीं किस खबर का ...अच्छी या बुरी



डॉक्टर कहते है

अब उसके पिताजी का बचना शायद नामुमकिन है

या फिर वो बच भी सकते है ...सब कुछ उपरवाले के हाथ में है



पर साथ में ये भी कहते है की इलाज करवाते रहो

शायद कुछ फर्क पड़ ही जाये



उसका दिमाग ये गुत्थी

सुलझा नहीं पा रहा था



एक तरफ था

अस्पताल का रोज का घूमता हुवा जबरदस्त मीटर

सामने वाले मेडिकल का बढ़ता हुवा बिल

घर में डटे हुवे रिश्तेदारों की खातिरदारी में हो रही

नुक्कड़ के दुकान वाले बनिए की कमाई

और

रोज होने वाली काम की छुट्टी ... बगैर वेतन के



और दूसरी तरफ है

पिताजी की चिंता ...थोडा प्यार

और

मन के किसी कोने में दबी हुई एक कमजोर उम्मीद

उनके बच जाने की



फिर एक मन कहता है

की व्यर्थ है ये सब ...१ महीने पहले ही डॉक्टर ने बुला लिया था

सब रिश्तेदारों को

तबसे पड़े है सब यही पे मुफ्त की रोटिया तोड़ते हुवे

और पिताजी तब से देहलीज पे खड़े है



लगता है बंद करो ये सब और ले चलो उन्हें घर 



पर सताता है डर



समाज और रिश्तेदारों की उपरोध भरी निगाहों, उपदेश और उलाहनो का

की बेटा नालायक निकला



ना चाहकर भी एक स्वार्थी विचार उसके मन को छु जाता है

की शायद प्रकृति ही उसकी सहायता करे

और सारी समस्याओ का अंत हो जाये

उनकी भी और मेरी भी



~अभय