tag:blogger.com,1999:blog-12830634561173770202024-02-21T04:09:53.016+05:30Meri-ChitthiAbhay Barvehttp://www.blogger.com/profile/01517702941315314820noreply@blogger.comBlogger83125tag:blogger.com,1999:blog-1283063456117377020.post-79089420059284173412012-12-06T21:36:00.000+05:302012-12-06T21:36:09.763+05:30जिंदगी एक धोखा है <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
जिंदगी एक धोखा है <br />
<br />
<br />
<br />
<br />
तुम्हारा होना <br />
<br />
और नहीं होना<br />
<br />
कभी सामने <br />
<br />
कभी ख्वाबो में <br />
<br />
ये सब भी अब धोखा है <br />
<br />
<br />
<br />
तुम्हारी हंसी <br />
<br />
नाराजगी <br />
<br />
तुम्हारी बातें <br />
<br />
वो ख़ामोशी <br />
<br />
कभी रूठना <br />
<br />
कभी खुश होना <br />
<br />
ये भी सब धोखा है <br />
<br />
<br />
<br />
कभी मुझसे लढना <br />
<br />
कभी मेरे लिए रोना <br />
<br />
कभी मुझे याद करना <br />
<br />
तो कभी भूल जाना <br />
<br />
वो लब्जो से घायल करना<br />
<br />
वो आँखों से प्यार करना <br />
<br />
ये भी सब धोखा है <br />
<br />
<br />
<br />
तुम्हारी पदचाप <br />
<br />
तुम्हारा एहसास <br />
<br />
तुम्हारा इंतज़ार <br />
<br />
तुम्हारी परछाई <br />
<br />
तुम्हारी आवाज <br />
<br />
ये भी सब धोखा है <br />
<br />
<br />
<br />
वो मन्नते <br />
<br />
वो मिन्नतें <br />
<br />
मुझे सताना <br />
<br />
फिर <br />
<br />
वो तुम्हारा मिलना <br />
<br />
और <br />
<br />
कसमे खाना <br />
<br />
ये भी सब धोखा है <br />
<br />
<br />
<br />
अब तो लगता है <br />
<br />
मेरी जिंदगी <br />
<br />
मेरी यादें <br />
<br />
मेरे आंसू <br />
<br />
मेरी साँसे <br />
<br />
मेरी उलझने <br />
<br />
ये भी सब धोखा है <br />
<br />
<br />
<br />
~अभय </div>
Abhay Barvehttp://www.blogger.com/profile/01517702941315314820noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1283063456117377020.post-33586936719136351622012-11-18T00:13:00.000+05:302012-11-18T00:13:21.592+05:30एक बारिश <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
एक बारिश <br />
<br />
<br />
अल्हड सी<br />
<br />
मस्ती भरी <br />
<br />
सुहानी <br />
<br />
छुई - मुई सी <br />
<br />
गुदगुदाती <br />
<br />
हसाती <br />
<br />
नाचती -नचाती <br />
<br />
खुशिया बिखेरती <br />
<br />
<br />
<br />
एक बारिश <br />
<br />
बिखरी हुई<br />
<br />
घबरायी सी <br />
<br />
बिलखती सी <br />
<br />
आँसु बहाती <br />
<br />
खुद रोती <br />
<br />
मुझे रुलाती <br />
<br />
<br />
<br />
एक बारिश <br />
<br />
अक्सर घिर के आती <br />
<br />
पर बरस ना पाती <br />
<br />
तडपती <br />
<br />
उलझती<br />
<br />
उलझाती <br />
<br />
इंतज़ार करती <br />
<br />
और करवाती<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
एक बारिश <br />
<br />
क्रोधित सी <br />
<br />
विकराल रूप धारण करती <br />
<br />
गरजती...लरजती <br />
<br />
बरसती.. <br />
<br />
बिजली को अपना शस्त्र बनाती<br />
<br />
धरती पे वो प्रलय लाती <br />
<br />
<br />
<br />
एक बारिश <br />
<br />
<br />
<br />
खेलती <br />
<br />
इठलाती<br />
<br />
मुस्कुराती <br />
<br />
<br />
<br />
बूंदों की धून <br />
<br />
पे पग थिरकाती <br />
<br />
<br />
<br />
बादलों के संग<br />
<br />
ख्वाब बुनती <br />
<br />
धुप के साथ ब्याह रचाती <br />
<br />
इन्द्रधनुष की चुनर ले के <br />
<br />
अपनी हंसी को छुपाती<br />
<br />
<br />
<br />
एक बारिश <br />
<br />
मेरी अपनी <br />
<br />
कभी ऐसी <br />
<br />
तो कभी वैसी <br />
<br />
मुझे हर रूप दिखाती <br />
<br />
पर <br />
<br />
मुझे हर रूप में भाती<br />
<br />
<br />
<br />
एक बारिश <br />
<br />
<br />
<br />
सिर्फ मेरी <br />
<br />
<br />
<br />
मेरी अपनी <br />
<br />
<br />
<br />
~ अभय <br />
<br />
</div>
Abhay Barvehttp://www.blogger.com/profile/01517702941315314820noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1283063456117377020.post-2882338976892380592012-11-02T21:19:00.002+05:302012-11-02T21:19:48.431+05:30मंदिर वही बनायेंगे<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
आओ खोले एक धंदा <br />
<br />
<br />
मै खोजता हु एक पत्थर <br />
<br />
तुम खोजो एक बंदा<br />
<br />
<br />
<br />
पत्थर को सिंदूर लगायेंगे <br />
<br />
फूलों से उसे सजायेंगे <br />
<br />
मंदिर वही बनायेंगे<br />
<br />
<br />
<br />
मै बढ़ाऊंगा दाढ़ी <br />
<br />
चल निकलेगी अपनी गाड़ी <br />
<br />
<br />
<br />
छोटीसी होगी कुटिया <br />
<br />
धीरे से फैलेगा जाल <br />
<br />
बन जायेंगे भू-माफिया <br />
<br />
<br />
<br />
पट्ठे अपने बनायेगे <br />
<br />
धंदा उनको सिखायेंगे <br />
<br />
<br />
<br />
फूल - नारियल का होगा होलसेल <br />
<br />
ताबीज, रुद्राक्ष, लॉकेट और माला <br />
<br />
बुरी नजर वाले तेरा मुह काला <br />
<br />
<br />
<br />
लोगो की होगी भीड़ <br />
<br />
होगी जूतम -पैजार <br />
<br />
खूब मचेगा हाहाकार <br />
<br />
कुछ जेबे कटेंगी <br />
<br />
कुछ इज्जते फटेंगी <br />
<br />
होगी अपराधो की भरमार<br />
<br />
<br />
<br />
कुछ दिमाग कुछ हाथ की सफाई <br />
<br />
खूब दिखायेंगे चमत्कार <br />
<br />
होगा धार्मिक बलात्कार <br />
<br />
<br />
<br />
अन्धविश्वास को देंगे बढ़ावा <br />
<br />
आएगा जमके चढ़ावा<br />
<br />
<br />
<br />
लोग होंगे लाचार <br />
<br />
खूब चमकेगा व्यापार<br />
<br />
भक्त क्या भगवान भी गश खायेंगे<br />
<br />
हम मंदिर वही बनायेंगे <br />
<br />
<br />
<br />
~ अभय </div>
Abhay Barvehttp://www.blogger.com/profile/01517702941315314820noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1283063456117377020.post-70634657785833114242012-08-13T14:42:00.002+05:302012-08-13T14:42:23.729+05:30जिंदगी एक धोखा है <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
तुम्हारा होना <br />
<br />
<br />
और नहीं होना<br />
<br />
कभी सामने <br />
<br />
कभी ख्वाबो में <br />
<br />
ये सब भी अब धोखा है <br />
<br />
<br />
<br />
तुम्हारी हंसी <br />
<br />
नाराजगी <br />
<br />
तुम्हारी बातें <br />
<br />
वो ख़ामोशी <br />
<br />
कभी रूठना <br />
<br />
कभी खुश होना <br />
<br />
ये भी सब धोखा है <br />
<br />
<br />
<br />
कभी मुझसे लढना <br />
<br />
कभी मेरे लिए रोना <br />
<br />
कभी मुझे याद करना <br />
<br />
तो कभी भूल जाना <br />
<br />
वो लब्जो से घायल करना<br />
<br />
वो आँखों से प्यार करना <br />
<br />
ये भी सब धोखा है <br />
<br />
<br />
<br />
तुम्हारी पदचाप <br />
<br />
तुम्हारा एहसास <br />
<br />
तुम्हारा इंतज़ार <br />
<br />
तुम्हारी परछाई <br />
<br />
तुम्हारी आवाज <br />
<br />
ये भी सब धोखा है <br />
<br />
<br />
<br />
वो मन्नते <br />
<br />
वो मिन्नतें <br />
<br />
मुझे सताना <br />
<br />
फिर <br />
<br />
वो तुम्हारा मिलना <br />
<br />
और <br />
<br />
कसमे खाना <br />
<br />
ये भी सब धोखा है <br />
<br />
<br />
<br />
अब तो लगता है <br />
<br />
मेरी जिंदगी <br />
<br />
मेरी यादें <br />
<br />
मेरे आंसू <br />
<br />
मेरी साँसे <br />
<br />
मेरी उलझने <br />
<br />
ये भी सब धोखा है <br />
<br />
<br />
<br />
~अभय </div>
Abhay Barvehttp://www.blogger.com/profile/01517702941315314820noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1283063456117377020.post-37715344219457741722012-07-23T14:16:00.002+05:302012-07-23T14:16:37.497+05:30मै और दरख्त<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
एक लम्बा इंतज़ार <br />
<br />
<br />
सारा का सारा तुम्हारा <br />
<br />
और थोडा बारिश का भी <br />
<br />
<br />
<br />
मेरा लगातार यु ही <br />
<br />
देहलीज पे अटके रहना <br />
<br />
और सामने वाले दरख़्त का <br />
<br />
मुझे घुरना एकटक <br />
<br />
<br />
<br />
पिछले आँगन का सुखा कुवाँ <br />
<br />
वक़्त - बेवक्त मुझे बुलाता है <br />
<br />
उसे मेरे इन्तजार की हदे <br />
<br />
मालूम नहीं है <br />
<br />
शायद <br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
पिछले कुछ सालों से आम मे बौर <br />
<br />
नहीं आते अब <br />
<br />
और कोयल ने भी चुप्पी साध ली है <br />
<br />
अचानक <br />
<br />
<br />
<br />
मेरे जजबातों में जंग लग चुका है <br />
<br />
और मै उन्हें कुरेदना चाहता हु <br />
<br />
<br />
<br />
ताकि एक ब़ार खुल के रो सकू <br />
<br />
बाहर वाले दरख़्त को भींच कर <br />
<br />
अपनी बाँहों में <br />
<br />
<br />
<br />
इसके पहले की <br />
<br />
वक़्त की कुल्हाड़ी उसे <br />
<br />
काट दे <br />
<br />
और मै रह जाऊ <br />
<br />
<br />
<br />
बिलकुल अकेला........ एकाकी <br />
<br />
<br />
<br />
~अभय <br />
<br />
</div>Abhay Barvehttp://www.blogger.com/profile/01517702941315314820noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1283063456117377020.post-30333777692665528902012-07-20T16:25:00.001+05:302012-07-20T16:25:28.241+05:30कशमकश<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
अस्पताल के बरामदे में बैठा वो इंतज़ार कर रहा था <br />
<br />
<br />
पता नहीं किस खबर का ...अच्छी या बुरी <br />
<br />
<br />
<br />
डॉक्टर कहते है<br />
<br />
अब उसके पिताजी का बचना शायद नामुमकिन है <br />
<br />
या फिर वो बच भी सकते है ...सब कुछ उपरवाले के हाथ में है <br />
<br />
<br />
<br />
पर साथ में ये भी कहते है की इलाज करवाते रहो <br />
<br />
शायद कुछ फर्क पड़ ही जाये <br />
<br />
<br />
<br />
उसका दिमाग ये गुत्थी <br />
<br />
सुलझा नहीं पा रहा था <br />
<br />
<br />
<br />
एक तरफ था <br />
<br />
अस्पताल का रोज का घूमता हुवा जबरदस्त मीटर <br />
<br />
सामने वाले मेडिकल का बढ़ता हुवा बिल <br />
<br />
घर में डटे हुवे रिश्तेदारों की खातिरदारी में हो रही <br />
<br />
नुक्कड़ के दुकान वाले बनिए की कमाई <br />
<br />
और <br />
<br />
रोज होने वाली काम की छुट्टी ... बगैर वेतन के <br />
<br />
<br />
<br />
और दूसरी तरफ है <br />
<br />
पिताजी की चिंता ...थोडा प्यार <br />
<br />
और <br />
<br />
मन के किसी कोने में दबी हुई एक कमजोर उम्मीद <br />
<br />
उनके बच जाने की <br />
<br />
<br />
<br />
फिर एक मन कहता है <br />
<br />
की व्यर्थ है ये सब ...१ महीने पहले ही डॉक्टर ने बुला लिया था <br />
<br />
सब रिश्तेदारों को <br />
<br />
तबसे पड़े है सब यही पे मुफ्त की रोटिया तोड़ते हुवे<br />
<br />
और पिताजी तब से देहलीज पे खड़े है <br />
<br />
<br />
<br />
लगता है बंद करो ये सब और ले चलो उन्हें घर <br />
<br />
<br />
<br />
पर सताता है डर <br />
<br />
<br />
<br />
समाज और रिश्तेदारों की उपरोध भरी निगाहों, उपदेश और उलाहनो का <br />
<br />
की बेटा नालायक निकला <br />
<br />
<br />
<br />
ना चाहकर भी एक स्वार्थी विचार उसके मन को छु जाता है <br />
<br />
की शायद प्रकृति ही उसकी सहायता करे <br />
<br />
और सारी समस्याओ का अंत हो जाये <br />
<br />
उनकी भी और मेरी भी <br />
<br />
<br />
<br />
~अभय <br />
<br />
</div>Abhay Barvehttp://www.blogger.com/profile/01517702941315314820noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1283063456117377020.post-71796582624724258792012-06-05T23:10:00.002+05:302012-06-05T23:10:50.260+05:30तबादले<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
जब भी जाना होता है किसी दुसरे शहर <br />
<br />
<br />
तो होता है दर्द अपना शहर छोड़ने का <br />
<br />
<br />
<br />
बड़ी मुश्किल होती है उस शहर को अपनाने में <br />
<br />
और उससे भी ज्यादा अपने शहर को भूल जाने में <br />
<br />
<br />
<br />
कुछ दिक्कते कुछ फासले <br />
<br />
नयी गलिया नए रिश्ते <br />
<br />
थोड़ी दिक्कते बड़ी मुश्किलें <br />
<br />
<br />
<br />
पता नहीं तकलीफ नयी जगह में <br />
<br />
जाने की होती है या <br />
<br />
पुरानी जगह छोड़ने की<br />
<br />
<br />
<br />
कुछ यादें अक्सर <br />
<br />
याद आती है पुराने शहर की <br />
<br />
नए शहर जा के भी <br />
<br />
<br />
<br />
और तकलीफ देते है वो लोग <br />
<br />
जो पुराने शहर में छुट गए है <br />
<br />
<br />
<br />
खैर <br />
<br />
<br />
<br />
अब तो जैसे आदत सी हो गयी है <br />
<br />
हर वक़्त शहर बदलने की <br />
<br />
नए को अपनाने की <br />
<br />
पुराने को भुलाने की <br />
<br />
<br />
<br />
अक्सर कुछ दिनों में <br />
<br />
नया शहर भी समझ में आने लगता है <br />
<br />
कुछ जगह जानी पहचानी लगती है <br />
<br />
और कुछ लोग भी <br />
<br />
<br />
<br />
एक डर सा होता है मन में <br />
<br />
नए रिश्ते बनाते वक़्त <br />
<br />
की <br />
<br />
एक दिन तो आएगा <br />
<br />
जब इनसे भी बिछड़ना होगा <br />
<br />
<br />
<br />
तकलीफ होगी फिर एक ब़ार <br />
<br />
जैसे अक्सर होती है <br />
<br />
<br />
<br />
ओढना होगा नकाब फिर एक ब़ार <br />
<br />
बिंदास रहने का <br />
<br />
छुपानी होंगी तकलीफे <br />
<br />
और करनी होगी तैय्यारी <br />
<br />
<br />
<br />
नए शहर को समझने की <br />
<br />
अपनाने की <br />
<br />
पुराने को भुलाने की <br />
<br />
<br />
<br />
फिर एक ब़ार <br />
<br />
भीड़ में खो जाने की <br />
<br />
<br />
<br />
~ अभय </div>Abhay Barvehttp://www.blogger.com/profile/01517702941315314820noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1283063456117377020.post-18868284368237601392012-05-20T00:47:00.003+05:302012-05-20T00:47:43.678+05:30याद है तुमने उस दिन क्या कहा था ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
याद है तुमने उस दिन क्या कहा था ? <br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
जब हम चल रहे थे समंदर की ठंडी रेत पर <br />
<br />
<br />
चाँद की मद्धम रोशनी में <br />
<br />
लहरों की आवाज को सुनते हुवे <br />
<br />
किनारे की नाव को देखते हुवे <br />
<br />
<br />
<br />
याद है तुमने उस दिन क्या कहा था ? <br />
<br />
<br />
<br />
जब हम खड़े थे रास्ते पे करते हुवे taxi का इंतजार <br />
<br />
और बड़े लम्बे समय तक हमें taxi ना मिली<br />
<br />
बातों में मशगुल हमें याद ही ना रहा <br />
<br />
की हम वहा किसलिए खड़े है <br />
<br />
<br />
<br />
याद है तुमने उस दिन क्या कहा था ? <br />
<br />
<br />
<br />
जब मैंने अपने आंसुओं को रोक कर <br />
<br />
तुम्हे रोने से मना किया था <br />
<br />
और हमारे सामने की Ice - cream पिघल गयी थी <br />
<br />
काश वक़्त की दिवार भी इसी तरह पिघल जाती <br />
<br />
<br />
<br />
याद है तुमने उस दिन क्या कहा था ?<br />
<br />
<br />
<br />
जब मै तुम्हारे घर तक आया था <br />
<br />
और फिर लौट गया था बाहर से ही <br />
<br />
फिर कभी घर आने का वादा करके <br />
<br />
मै अब तक उस वादे को पूरा ना कर सका हु <br />
<br />
<br />
<br />
याद है तुमने उस दिन क्या कहा था ?<br />
<br />
<br />
<br />
जब मुझसे फ़ोन पे बात करती हुई <br />
<br />
तुम सो गयी थी <br />
<br />
और मै कर रहा था तुम्हारा इंतजार <br />
<br />
सुनते हुवे तुम्हारे सांसों की लय को <br />
<br />
<br />
<br />
वो लय मुझे अब तक याद है <br />
<br />
मुझे अब भी वो वादा पूरा करना है <br />
<br />
मुझे अब भी वक़्त से शिकायत है <br />
<br />
मुझे अब भी उस Taxi का इंतजार है <br />
<br />
मै अब भी समंदर की रेत पे <br />
<br />
तुम्हारा इंतजार कर रहा हु <br />
<br />
<br />
<br />
मुझे अब भी याद है तुमने उस दिन क्या कहा था <br />
<br />
<br />
<br />
~ अbhay </div>Abhay Barvehttp://www.blogger.com/profile/01517702941315314820noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1283063456117377020.post-26920326395541250322012-05-15T22:30:00.002+05:302012-05-15T22:30:38.568+05:30गर्मी की दोपहर<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
गर्मी की दोपहर <br />
<br />
<br />
<br />
<br />
गरम हवा के झोके <br />
<br />
<br />
<br />
लम्बी वीरान सड़के <br />
<br />
<br />
<br />
धुल भरी आंधी <br />
<br />
<br />
<br />
जलती हुई आँखें <br />
<br />
<br />
<br />
पीठ पर बहता हुवा पसीना <br />
<br />
<br />
<br />
एक और प्याली गरम चाय <br />
<br />
<br />
<br />
डिब्बी में बची हुई <br />
<br />
<br />
<br />
आखरी सिगरेट <br />
<br />
<br />
<br />
बारिश का इंतजार <br />
<br />
<br />
<br />
और तेरा भी <br />
<br />
<br />
<br />
~ अbhay </div>Abhay Barvehttp://www.blogger.com/profile/01517702941315314820noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1283063456117377020.post-34260474941033604782012-05-14T01:00:00.000+05:302012-05-14T01:00:58.601+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मेरी जिंदगी <br />
<br />
<br />
<br />
<br />
बड़ी अजीब सी जिंदगी है <br />
<br />
<br />
<br />
रोज मै सुबह उठ के काम पे जाता हु <br />
<br />
पर अक्सर ऐसा भी होता है <br />
<br />
जब मै खुद को काम पे ले के जाता हु <br />
<br />
एक अजीब सा एहसास होता है <br />
<br />
<br />
<br />
मै पुरे दिन अपने आप को <br />
<br />
खोजने की कोशिश करता हु <br />
<br />
कभी कंप्यूटर की स्क्रीन में <br />
<br />
तो कभी साथ वालो की अपरिचित निगाहों में <br />
<br />
<br />
<br />
एक बोझिल सा दिन होता है वो <br />
<br />
जिसे मै धकेलता हु अपने जिजीविषा से <br />
<br />
सिर्फ इसी उम्मीद में <br />
<br />
की शायद इसके खत्म होने पर <br />
<br />
कुछ तो राहत मिलेगी की <br />
<br />
या तो अगला दिन कुछ सौगात लायेगा <br />
<br />
या फिर मुझे वो दिन देखने की जिल्लत ना उठानी होगी <br />
<br />
<br />
<br />
खैर <br />
<br />
बेतरतीब सा जब लौटता हु अपने कमरे पे <br />
<br />
तो पाता हु खाली दीवारों पे टिकी हुवी एक छत<br />
<br />
और टेबल पे पड़ी हुवी एक घडी <br />
<br />
बेवजह अपनी मौजूदगी दर्ज कराती हुवे<br />
<br />
<br />
<br />
तब मै खोजने लगता हु अपने वजूद को<br />
<br />
उस घडी की टिक टिक में <br />
<br />
जिसके काटें भागते है एक दुसरे के पीछे बेवजह <br />
<br />
एक अंधी दौड़ में <br />
<br />
अपने होने की सार्थकता को साबित करने की होड़ में <br />
<br />
<br />
<br />
लगता है जैसे मेरी जिंदगी भी किसी <br />
<br />
घडी के मानिंद उलझी हुई है <br />
<br />
जबरन दौड़ती हुई एक चक्कर में <br />
<br />
बगैर किसी मंजिल के<br />
<br />
<br />
<br />
या फिर खाली दीवारों के जैसी <br />
<br />
किसी छत का बोझ उठाये हुवे <br />
<br />
जिनका होना वैसे तो जरुरी है <br />
<br />
और वैसे देखे तो वो खाली है <br />
<br />
<br />
<br />
फिर एक दिन <br />
<br />
फिर एक उम्मीद <br />
<br />
सुबह उठ के <br />
<br />
काम पे जाना <br />
<br />
या फिर <br />
<br />
अपने आप को काम पे ले जाना <br />
<br />
एक अविरत सिलसिला <br />
<br />
कई वर्षो से चल रहा है <br />
<br />
पता नहीं कब तक चलेगा <br />
<br />
<br />
<br />
शायद जब तक घडी की <br />
<br />
टिक टिक चल रही है <br />
<br />
तब तक <br />
<br />
या फिर जब तक <br />
<br />
नियति इस घडी को <br />
<br />
चला रही है <br />
<br />
तब तक <br />
<br />
</div>Abhay Barvehttp://www.blogger.com/profile/01517702941315314820noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1283063456117377020.post-79027901122917350472012-05-09T21:59:00.000+05:302012-05-09T21:59:20.342+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<br />
जिंदगी......जिंदगी के बगैर <br />
<br />
<br />
कभी तेरी ख़ामोशी <br />
<br />
<br />
कभी तेरा गुस्सा <br />
<br />
<br />
<br />
कभी तेरी आँखें<br />
<br />
और <br />
<br />
उनमे झलकता प्यार <br />
<br />
<br />
<br />
कभी तेरा इनकार<br />
<br />
कभी तेरा इकरार <br />
<br />
<br />
<br />
कभी तेरी यादें <br />
<br />
कभी तेरे ख्वाब <br />
<br />
<br />
<br />
कभी तेरी चिठ्ठी <br />
<br />
कभी तेरी तस्वीर <br />
<br />
<br />
<br />
कभी तेरा ख्याल <br />
<br />
और <br />
<br />
कभी उसका जाल <br />
<br />
<br />
<br />
कभी सिर्फ तेरा अहसास <br />
<br />
तो <br />
<br />
कभी तेरी गर्म सांस <br />
<br />
<br />
<br />
कभी लगता है की ये सच है <br />
<br />
पर <br />
<br />
कभी लगता है ये छलावा है <br />
<br />
<br />
<br />
जो भी है <br />
<br />
<br />
<br />
पर <br />
<br />
<br />
<br />
तेरे बिना जीना तो <br />
<br />
<br />
<br />
मुश्किल है <br />
<br />
<br />
<br />
जिंदगी <br />
<br />
<br />
<br />
~ अbhay </div>Abhay Barvehttp://www.blogger.com/profile/01517702941315314820noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1283063456117377020.post-58813736688837294152012-04-17T00:09:00.001+05:302012-04-17T00:11:34.049+05:30जिंदगी की Fileकई बार मैंने सोचा <br />की जिंदगी को Hibernate कर दू<br /> <br />चलती रहेगी जिंदगी की साँस <br />पर थोड़ी battery तो save कर लू <br /> <br />Files तो सारी खुली ही रहेंगी <br />पर उसे जमाने के लिए तो बंद ही कर दू <br /> <br />खैर क्या फर्क पड़ता है <br />Files खुली हो या बंद <br /> <br />सिवाय एक File के <br /><br />जिसे <br /><br />ना तो मै खुला छोड़ सकता हु <br /><br />और <br /><br />ना ही बंद कर सकता हु <br /> <br />~अbhayAbhay Barvehttp://www.blogger.com/profile/01517702941315314820noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1283063456117377020.post-28890757577677133672012-04-14T14:48:00.000+05:302012-04-14T14:52:32.734+05:30फिर ..एक...ब़ारहर सवाल का का जवाब नहीं होता <br />पर फिर भी हम सवाल पूछते है <br /><br />कभी खुदसे कभी दुसरो से<br />पर अक्सर खुद ही जवाब देते है <br />दूसरो से पूछे सवालो का भी <br />या फिर उम्मीद करते है <br />की वो भी वही जवाब दे <br /><br /><br />हर उम्मीद पूरी नहीं होती है <br />फिर भी हम उम्मीद करते है <br /><br />कभी खुदसे कभी दूसरो से <br />पर अक्सर दुसरो से ज्यादा <br />और फिर सपने देखते है <br />उम्मीदे पूरी होने के <br /><br /><br />हर सपना सच नहीं होता है <br />चाहे छोटा हो या बड़ा हो <br /><br />फिर भी हम सपने देखते है <br />और सपनो में खो जाते है <br />जब तक की कोई उसे तोड़ <br />के हमें धरती पे ना गिरा दे <br />और फिर हम जख्म पाते है <br /><br /><br />हर जख्म ठीक नहीं होता <br />चाहे सतही हो या गहरा हो <br /><br />फिर भी हम वक़्त की दुहाई देते है <br />की वक़्त के साथ हर जख्म भर ही जायेगा <br /><br />और फिर एक ब़ार <br /><br />सवाल पूछते है <br /><br />उम्मीद करते है<br /><br />सपने देखते है <br /><br />नए जख्म पाते है <br /><br />क्योंकि <br /><br />जिंदगी है <br /><br />और हम <br /><br />जिंदगी के <br /><br />हाथो मजबूर है <br /><br />~ अभयAbhay Barvehttp://www.blogger.com/profile/01517702941315314820noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1283063456117377020.post-50592258931370855302012-03-23T21:13:00.001+05:302012-03-23T21:14:40.413+05:30अब मैंने बरदाश्त करना सीख लिया हैअब मैंने बरदाश्त करना सीख लिया है <br />इस अकेलेपन को <br />इस तनहाई को<br />सुनी दीवारों को <br />इस अँधेरे को <br /> <br />लोगो के तानो को <br />अपनों के उलाहनो को <br />अब मैंने बरदाश्त करना सीख लिया है<br /> <br />दुश्मन की चाल को <br />अपनों के जाल को <br />अब मैंने बरदाश्त करना सीख लिया है <br /> <br /> परायों के जुल्म को <br />अपनों के इल्म को <br />अब मैंने बरदाश्त करना सीख लिया है <br /> <br />दूसरो के वार को <br />अपनों के प्यार को <br />मैंने हर " नकाब " को बरदाश्त करना सीख लिया है <br /> <br />" नकाबो " की मुस्कुराहटो को<br />उनके " अपनेपन " को <br />अब मैंने बरदाश्त करना सीख लिया है <br /> <br />और भी काफी कुछ सीखा है मैंने<br /> <br />जैसे <br /> <br />खुद से नफरत करना <br /> <br />जजबातों का गला घोटना<br /> <br />खुद से अजनबी होना <br /> <br />साँस लेना <br /> <br />और <br /> <br />उसे याद रखना<br /> <br />की साँस लेना है <br /> <br />और फिर <br /> <br /> <br />कुछ देर और <br /> <br />जिन्दा रहना <br /> <br />बस नहीं <br /> <br />सीख पाया हु <br /> <br />मै अब तक<br /> <br />तुम्हे भूलना<br /> <br />और <br /> <br />तुम्हारे बगैर जीना <br /> <br />और शायद सीख भी नहीं पाउँगा <br /> <br />~ अभयAbhay Barvehttp://www.blogger.com/profile/01517702941315314820noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1283063456117377020.post-17494650009679296312012-03-10T10:56:00.002+05:302012-03-10T11:03:36.362+05:30जिंदगी का पहियाउस चौराहे पे खड़ी वो कार <br />जब भी देखती है दूसरी कारों को <br />और सोचती है उनके बारे में <br />तो समझ नहीं पाती है<br />उनकी जिंदगी को <br />और उलझ जाती है <br />अपने खयालो में<br /> <br />बाजु वाली कार सफ़ेद रंग की <br />रोज सुबह जाती है ठीक ९ बजे <br />और लौट आती है शाम को ५ बजे <br />जैसे जिंदगी की रेखाए खीच दी हो<br /> <br />और वो दूसरी कार गुलाबी बंगले वाली <br />जाती है हर वीक एंड पे कही दूर <br />और आ कर सुनाती है किस्से <br />अपनी ऐय्याशी के<br />मानो वो ही उसकी जिंदगी का मकसद हो <br /> <br />या फिर सामने वाली बड़ी सी कार <br />जो हमेशा जाती है घुमने कभी पहाड़ो में <br />तो कभी समुन्दर के पास<br />पर रहती है अक्सर उदास वो <br />जैसे ये ही उसकी फितरत हो <br /> <br />उसे रश्क हो चला है <br />उन कारों की किस्मत पर<br />या तो है उलझन<br />खुद ही की जिंदगी पर <br /> <br />वैसे <br />उसे अक्सर दया आती है <br />उस पुरानी फियाट पे <br />जो अक्सर खड़ी होती है<br />पिछली पार्किंग में <br />उसे कोई नहीं निकालता<br />और ना ही कोई <br />पोछता भी है <br />जैसे उसका कोई <br />अस्तित्व ही ना हो <br /> <br /> <br />उसने हमेशा चाहा है <br />फर्राटे से सडको पे दौड़ना <br />और चाहा है <br />बेलगाम घूमना <br /><br />पर शायद ये उसकी <br />किस्मत में नहीं <br /><br />उसकी किस्मत में तो लिखा है <br />कभी कभी दौड़ना <br />सिर्फ पेट के लिए <br /><br />या फिर घंटो खड़े <br />रहना इंतजार में <br />किसी के <br />इस उम्मीद में<br />की कोई बुलाये <br />और <br />उसकी जिदगी<br />सफल हो जाये<br /><br />अब भी शायद उसे <br />कार <br />और <br />टेक्सी <br />के बीच <br />का फर्क <br />समझ में <br />नहीं <br />आया <br />है <br />शायदAbhay Barvehttp://www.blogger.com/profile/01517702941315314820noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1283063456117377020.post-4168476302468910322012-02-14T21:06:00.000+05:302012-02-14T21:08:49.236+05:30वक़्त की गलतीजब भी मैंने मिलना चाहा, तो तुम्हारे पास वक़्त नहीं था <br /><br />शायद ही कभी तुमने मिलना चाहा <br /><br />पर तब भी तुम्हारे पास वक़्त नहीं था <br /><br />कभी हम दोनों ने मिलना चाहा पर वक़्त को ये मंजूर नहीं था <br /> <br /><br /><br />मै जानता हु ये सिर्फ वक़्त की गलती हैAbhay Barvehttp://www.blogger.com/profile/01517702941315314820noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1283063456117377020.post-71680809129012214562011-12-29T16:33:00.002+05:302011-12-29T16:40:58.692+05:30जख्मअब जब जख्म भर चले है तो <br /><br />क्यों तुम मुझे याद आते हो <br /><br /> <br /> अब जाकर मै इस भुलावे में आया था <br /><br />की मै तुम्हे भूलने लगा हु <br /><br /> <br /> फिर एक ब़ार मेरे जिंदगी में आ के <br /><br />क्यों मुझे सताते हो <br /><br /> <br /> जानता हु ये द्वन्द है मेरा.. मेरे मन से ही <br /><br />चेतन मन का अचेतन मन से <br /><br /> <br /> बड़ी मुश्किल से इस मन ने उस मन को समझाया है <br /><br />अब फिर से क्यों उसे रुलाते हो <br /><br /> <br /> अब जब जख्म भर चले है तो <br /><br />क्यों तुम मुझे याद आते हो <br /><br /> <br /> जिंदगी के लम्हों को उलझा के <br /><br />मैंने इन सांसों को सुलझाया है <br /><br /> <br /> फिर एक ब़ार अपनी निगाहों से <br /><br />सुलझी सांसों को क्यों उलझाते हो <br /><br /> <br /> अब जब जख्म भर चले है तो <br /><br />क्यों तुम मुझे याद आते हो <br /><br /> <br /> अब मै लहरों से दोस्ती करके <br /><br />समंदर के आगोश में जाना चाहता हु <br /><br /> <br /> तो फिर क्यों आवाज दे के <br /><br />मुझे वापस बुलाते हो <br /><br /> <br /> अब जब जख्म भर चले है तो <br /><br />क्यों तुम मुझे याद आते होAbhay Barvehttp://www.blogger.com/profile/01517702941315314820noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1283063456117377020.post-8112542302859043932011-12-16T21:39:00.001+05:302011-12-16T21:42:16.890+05:30तुम्हारी याद में...........................जिंदगी किसी नदी के मानिंद अविरत ... अविचल बहती जा रही थी <br /><br />की अचानक तुम्हारे मिल जाने से ये जैसे ये अपना रास्ता भूल गयी <br /><br /> <br />चाहा तो कभी ना था इसने उस रास्ते पे चलना <br /><br />जिस राह पे ये यु ही अचानक मूड गयी <br /><br /> <br />अब तो आगे बढ़ने के सिवाय कोई चारा ना था <br /><br />वैसे भी पीछे लौटना मेरी जिंदगी ने कभी सिखा ही नहीं<br /><br /> <br />कभी सपने देखने की जिद तो कभी फ़ना होने का जूनून <br /><br />संभल कर चलना तो इसने कभी सोचा ही नहीं <br /><br /> <br />जिंदगी के ये दो किनारे किसे छोडू किसके साथ चलता रहू <br /><br />ये तो शायद मुझे नदी से ही सीखना होगा <br /> <br /><br />नदी भी तो जिंदगी भर दो किनारों के साथ चलती हैAbhay Barvehttp://www.blogger.com/profile/01517702941315314820noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1283063456117377020.post-9361667594933090702011-11-26T23:09:00.001+05:302011-11-26T23:11:37.286+05:30जिंदगी तेरे नामसर्दियों की शाम अक्सर उदास होती है <br /><br />एक अजीब सा सन्नाटा होता है <br /><br />जो मुझे झझकोर देता है <br /><br />और मै बैचैनी से <br /><br />ढूंढने लगता हु <br /><br />उस सूरज को <br /><br />जिससे <br /><br />अपने हिस्से <br /><br />की मुट्ठी भर<br /><br />धुप ले सकू<br /><br />जिसकी <br /><br />नर्म गर्माहट<br /><br />मुझे तेरी <br /><br />याद दिलाये <br /><br />ताकि <br /><br />मै <br /><br />कुछ दिन <br /><br />और <br /><br />साँस ले सकूAbhay Barvehttp://www.blogger.com/profile/01517702941315314820noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1283063456117377020.post-86197096121124833052011-11-15T22:56:00.000+05:302011-11-15T22:57:29.122+05:30पहेलीदिल अक्सर तुमसे खफा होता है <br /><br />और फिर<br /><br />तुम्हे मनाने का तरीका भी ढूंढ़ता है <br /><br /><br />ये बागी रहता तो मेरे सीने में है<br /><br />पर हरवक्त तुम्हारे इशारो पर धड़कता हैAbhay Barvehttp://www.blogger.com/profile/01517702941315314820noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1283063456117377020.post-86504412005919458602011-11-06T00:02:00.002+05:302011-11-06T00:05:00.331+05:30अँधेरासर्दियों में शाम कुछ जल्दी आती है <br /><br />और अक्सर उदास कर जाती है <br /> <br />दूर कही उठता हुवा वो सिगडी का धुवा <br /><br />और <br /><br />सूरज के जाने के बाद तंग करने वाली <br /><br />ठंडी हवाए <br /> <br /><br />पेड़ो के लम्बे होते हुवे साये <br /><br />और <br /><br />बोझिल सन्नाटे में से किसी के गाने की आती हुवी आवाज<br /> <br /><br />इन सब की जैसे अब आदत सी हो गयी है <br /><br /><br />दिये की लौ कभी कांपती हुवी <br /><br />तो कभी अडिग हो कर जलती हुवी <br /> <br /><br />मेरे अस्तित्व को चुनौती देती हुवी <br /><br />मै उसे बुझा देता हु <br /><br />क्योंकि मै उसकी चुनौती से डरता हु शायद <br /><br />या फिर शायद <br /><br />मुझे ये अँधेरा अच्छा लगने लगा हैAbhay Barvehttp://www.blogger.com/profile/01517702941315314820noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1283063456117377020.post-12551714010162432702011-08-23T14:06:00.002+05:302011-08-23T14:08:42.138+05:30डरमै तब जैसा था
<br />
<br />आज भी
<br />
<br />वैसा ही हु
<br />
<br />पर शायद
<br />
<br />अब
<br />
<br />तुम्हारा नजरिया ही बदल गया है
<br />
<br />वैसे और भी कुछ बदला है
<br />
<br />मेरी जिंदगी में
<br />
<br />अब मैंने समंदर पे जाना छोड़ दिया है
<br />
<br />मुझे डर है कही
<br />
<br />वो अकेली नाव
<br />
<br />किनारे की ठंडी रेत
<br />
<br />नारियल के वो पेड़
<br />
<br />समंदर की लहरें
<br />
<br />चंपा के मासूम फूल
<br />
<br />वो अजनबी जिसने हमें रास्ता बताया था
<br />
<br />और वो पुलिस वाला जिसने हमें धमकाया था
<br />
<br />हमने इकट्ठी की हुई सीपिया
<br />
<br />रात की तनहाई
<br />
<br />सुबह का सूरज
<br />
<br />ये सब
<br />
<br />तुम्हारे बारे में ना पुछ ले
<br />
<br />क्या जवाब दूंगा मै उन्हें
<br />
<br />की मैंने तुम्हे खो दिया
<br />
<br />या अपने आप को
<br />
<br />या की अब मै
<br />
<br />खुद ही को नहीं
<br />
<br />पहचानता
<br />Abhay Barvehttp://www.blogger.com/profile/01517702941315314820noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1283063456117377020.post-56545367316602908092011-08-06T15:58:00.003+05:302011-08-06T16:04:02.816+05:30उधार की जिंदगीपता नहीं <br /><br />क्यों <br /><br />हम अपनी <br /><br />मजबूरियों को <br /><br />समझदारी का नाम देते है<br /><br /> <br />घोट देते है गला <br /><br />अपनी आकांक्षाओ का <br /><br />ओढ़ कर लबादा <br /><br />अपनी जवाबदारियों का <br /><br /> <br />दबा देते है <br /><br />अपनी अभिव्यक्ति को <br /><br />पहन कर मुखौटा <br /><br />किताबी लब्जों का <br /><br /> <br />खरीदना चाहते है <br /><br />खुशियों को <br /><br />चंद रुपयों के बदले में <br /><br />किसी सब्जी के मानिंद <br /><br /> <br /> <br />कोशिश करते है <br /><br />खुश होने की <br /><br />लेकर उधार की जिंदगी<br /><br /> <br />चुकाते रहते है <br /><br />उस कर्ज को <br /><br />अपनी सांसों से <br /> <br /><br />और <br /><br /> <br />बाट जोहते है<br /><br />उस मुक्ति की <br /> <br />जिसे हमने <br /><br /> <br />कब का <br /><br /> <br />जिंदगी के बदले में <br /><br />गिरवी रख दिया हैAbhay Barvehttp://www.blogger.com/profile/01517702941315314820noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1283063456117377020.post-20404200291724981102011-08-03T00:30:00.001+05:302011-08-03T00:30:54.146+05:30अल्फाजअल्फाज <br /> <br />काफी सारे <br /><br />कुछ तुमने कहे <br /><br />और शायद कुछ मैंने भी<br /><br />जो मैंने कहे थे वो अब भी मुझे याद है<br /><br />और जो तुमने कहे थे <br /><br />वो तो मै कभी भूल ही नहीं सकता<br /> <br /><br />मुझे तो <br /><br />वो अल्फाज भी याद है <br /><br />जो तुमने कभी कहे ही नहीं <br /><br />उसके लिए तुम्हारी आँखे ही काफी थी <br /> <br />जानता था की ये अल्फाजो का मायाजाल है<br /><br />फिर भी उसमे उलझना अच्छा लगता था<br /> <br /><br />वो शायद तुम्हारी हंसी का असर था <br /><br />या फिर तुम्हारी मासूम आँखों का जादू था <br /><br />जो तुम्हारी जुबां से ज्यादा बोलती थी <br /><br /><br />मै अब भी तय नहीं कर पा रहा हु की <br /><br />मै तुम्हारी आँखों में <br /><br />ज्यादा उलझता था या <br /><br />तुम्हारी जुल्फों मेंAbhay Barvehttp://www.blogger.com/profile/01517702941315314820noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1283063456117377020.post-88737914757419592472011-07-01T21:31:00.001+05:302011-07-01T21:34:05.287+05:30जिंदगी एक साँप सीढ़ी हैजिंदगी एक साँप सीढ़ी है <br /><br />मै जब भी ऊपर जाना चाहता हु <br /><br />साँप तैयार होता है <br /><br />मुझे निचे लाने के लिए <br /><br /> <br />कभी ये कर्ज की शक्ल में आता है <br /><br />तो कभी मर्ज की शक्ल में <br /><br /> <br />वैसे तो मै कोशिश करता हु की <br /><br />इससे बच जाऊ <br /><br />पर लगता है <br /><br />इसकी पांसो से दोस्ती है <br /><br /> <br />अक्सर मै इसकी नजर बचा के <br /><br />ऊपर निकल गया हु <br /><br />तब उसने मुझे इस कदर देखा है <br /><br />जैसे मै ही इसको निगल गया हु <br /><br /> <br />कभी ये <br /><br />अफसर की अक्ल में होता है <br /><br />तो कभी <br /><br />किसी फर्जी दोस्त की शक्ल में<br /> <br /><br />अमूमन <br /><br />इसके चंगुल से बचना मुश्किल होता है <br /><br />क्योंकि <br /><br />जकड़ना इसकी फितरत है <br /><br />और<br /><br />शायद फंस जाना <br /><br />मेरी <br /><br /> <br />खैर <br /><br />मै भी हारने वालो में से नहीं हु<br /><br />वक़्त की बिसात पे <br /><br />अपनी सांसों के पांसे फेकते रहूँगा <br /><br />और <br /><br />आज नहीं तो कल <br /><br />खेल को जीत ही जाऊंगाAbhay Barvehttp://www.blogger.com/profile/01517702941315314820noreply@blogger.com0