Monday, November 15, 2010

समंदर के किनारे................

आज फिर मै उस समंदर के किनारे गया था

वो मुझे कुछ बदला बदला सा लगा

ना तो उसकी लहरों में वो संगीत था

और ना ही सबको अपने आगोश में लेने का वो जोश

पता नहीं ये सच में हुवा है या मुझे ऐसा लगा

मैंने वहा उस boat को भी देखा वो उसी तरह खड़ी थी

जैसे हम उसे उस रात छोड़ के आये थे एकदम अकेली

आज मुझे ऐसा लगा जैसे मै उसके दर्द को समझता हु

मै भी उसकी तरह ही हो गया हु तनहा

और कर रहा हु इंतजार

की तुम लहर बन कर आओगी

और मुझे फिर एक बार अपने होने का अहसास होगा

और इसी आस में मै समंदर की हर लहर को देख रहा हु

पता नहीं किसमे तुम्हारा अक्स नजर आ जाये

तुम जल्दी आओ, मुझे डर है

कही मेरे पैरो के निचे से रेत ना खिसक जाये

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