Wednesday, August 18, 2010

मुझे ये तनहा लम्हे.......

मुझे ये तनहा लम्हे चुभने लगते है
जब भी याद आते है वो लम्हे

लम्हे जो तुम्हारे साथ गुजारे थे........

या फिर तुम्हारे इंतजार में....

वो लम्हे जो समंदर के किनारे चलते हुवे....भीग गए थे

और वो लम्हा जब हम साथ चलते हुवे राह भटक गए थे

वो मंजिल मुजे आज भी नहीं मिली है...........

मुझे ये तनहा लम्हे चुभने लगते है
जब भी याद आते है वो लम्हे

याद है जब बैठे थे ट्रेन के दरवाजे में

और तुम्हे लगा की मै गिरने वाला हु

तुम्हारी बड़ी बड़ी आँखों ने

प्यार, डर, गुस्सा, चिंता सब एक साथ दिखाया था

और जिंदगी में पहली बार

मुझे अपने जिन्दा होने का अर्थ समझ आया था

मुझे ये तनहा लम्हे चुभने लगते है
जब भी याद आते है वो लम्हे

वो वक़्त जो हमने बिताया रूठने मनाने में.......

अब लगता है कोई मतलब नहीं था उसे गवाने में

शायद मै तुमसे दो बाते और कर लेता......

कुछ नहीं तो शायद तुम्हे ...

या तुम्हारी आँखों में ही और देख लेता....

मुझे ये तनहा लम्हे चुभने लगते है
जब भी याद आते है वो लम्हे

मुझे याद है तुम्हारी भीगी पलके और मेरी कोशिश तुम्हे हँसाने की.....


तेरे वो आंसू मुझे आज रुलाते है.....

और अब मेरी पलकों को भीगते है


मै उन लम्हों को भुलाना चाहता हु......

और वो लम्हे मुझे रुलाना चाहते है

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