Friday, July 1, 2011

जिंदगी एक साँप सीढ़ी है

जिंदगी एक साँप सीढ़ी है

मै जब भी ऊपर जाना चाहता हु

साँप तैयार होता है

मुझे निचे लाने के लिए


कभी ये कर्ज की शक्ल में आता है

तो कभी मर्ज की शक्ल में


वैसे तो मै कोशिश करता हु की

इससे बच जाऊ

पर लगता है

इसकी पांसो से दोस्ती है


अक्सर मै इसकी नजर बचा के

ऊपर निकल गया हु

तब उसने मुझे इस कदर देखा है

जैसे मै ही इसको निगल गया हु


कभी ये

अफसर की अक्ल में होता है

तो कभी

किसी फर्जी दोस्त की शक्ल में


अमूमन

इसके चंगुल से बचना मुश्किल होता है

क्योंकि

जकड़ना इसकी फितरत है

और

शायद फंस जाना

मेरी


खैर

मै भी हारने वालो में से नहीं हु

वक़्त की बिसात पे

अपनी सांसों के पांसे फेकते रहूँगा

और

आज नहीं तो कल

खेल को जीत ही जाऊंगा