Thursday, December 6, 2012

जिंदगी एक धोखा है

जिंदगी एक धोखा है




तुम्हारा होना

और नहीं होना

कभी सामने

कभी ख्वाबो में

ये सब भी अब धोखा है



तुम्हारी हंसी

नाराजगी

तुम्हारी बातें

वो ख़ामोशी

कभी रूठना

कभी खुश होना

ये भी सब धोखा है



कभी मुझसे लढना

कभी मेरे लिए रोना

कभी मुझे याद करना

तो कभी भूल जाना

वो लब्जो से घायल करना

वो आँखों से प्यार करना

ये भी सब धोखा है



तुम्हारी पदचाप

तुम्हारा एहसास

तुम्हारा इंतज़ार

तुम्हारी परछाई

तुम्हारी आवाज

ये भी सब धोखा है



वो मन्नते

वो मिन्नतें

मुझे सताना

फिर

वो तुम्हारा मिलना

और

कसमे खाना

ये भी सब धोखा है



अब तो लगता है

मेरी जिंदगी

मेरी यादें

मेरे आंसू

मेरी साँसे

मेरी उलझने

ये भी सब धोखा है



~अभय

Sunday, November 18, 2012

एक बारिश

एक बारिश


अल्हड सी

मस्ती भरी

सुहानी

छुई - मुई सी

गुदगुदाती

हसाती

नाचती -नचाती

खुशिया बिखेरती



एक बारिश

बिखरी हुई

घबरायी सी

बिलखती सी

आँसु बहाती

खुद रोती

मुझे रुलाती



एक बारिश

अक्सर घिर के आती

पर बरस ना पाती

तडपती

उलझती

उलझाती

इंतज़ार करती

और करवाती





एक बारिश

क्रोधित सी

विकराल रूप धारण करती

गरजती...लरजती

बरसती..

बिजली को अपना शस्त्र बनाती

धरती पे वो प्रलय लाती



एक बारिश



खेलती

इठलाती

मुस्कुराती



बूंदों की धून

पे पग थिरकाती



बादलों के संग

ख्वाब बुनती

धुप के साथ ब्याह रचाती

इन्द्रधनुष की चुनर ले के

अपनी हंसी को छुपाती



एक बारिश

मेरी अपनी

कभी ऐसी

तो कभी वैसी

मुझे हर रूप दिखाती

पर

मुझे हर रूप में भाती



एक बारिश



सिर्फ मेरी



मेरी अपनी



~ अभय

Friday, November 2, 2012

मंदिर वही बनायेंगे

आओ खोले एक धंदा


मै खोजता हु एक पत्थर

तुम खोजो एक बंदा



पत्थर को सिंदूर लगायेंगे

फूलों से उसे सजायेंगे

मंदिर वही बनायेंगे



मै बढ़ाऊंगा दाढ़ी

चल निकलेगी अपनी गाड़ी



छोटीसी होगी कुटिया

धीरे से फैलेगा जाल

बन जायेंगे भू-माफिया



पट्ठे अपने बनायेगे

धंदा उनको सिखायेंगे



फूल - नारियल का होगा होलसेल

ताबीज, रुद्राक्ष, लॉकेट और माला

बुरी नजर वाले तेरा मुह काला



लोगो की होगी भीड़

होगी जूतम -पैजार

खूब मचेगा हाहाकार

कुछ जेबे कटेंगी

कुछ इज्जते फटेंगी

होगी अपराधो की भरमार



कुछ दिमाग कुछ हाथ की सफाई

खूब दिखायेंगे चमत्कार

होगा धार्मिक बलात्कार



अन्धविश्वास को देंगे बढ़ावा

आएगा जमके चढ़ावा



लोग होंगे लाचार

खूब चमकेगा व्यापार

भक्त क्या भगवान भी गश खायेंगे

हम मंदिर वही बनायेंगे



~ अभय

Monday, August 13, 2012

जिंदगी एक धोखा है

तुम्हारा होना


और नहीं होना

कभी सामने

कभी ख्वाबो में

ये सब भी अब धोखा है



तुम्हारी हंसी

नाराजगी

तुम्हारी बातें

वो ख़ामोशी

कभी रूठना

कभी खुश होना

ये भी सब धोखा है



कभी मुझसे लढना

कभी मेरे लिए रोना

कभी मुझे याद करना

तो कभी भूल जाना

वो लब्जो से घायल करना

वो आँखों से प्यार करना

ये भी सब धोखा है



तुम्हारी पदचाप

तुम्हारा एहसास

तुम्हारा इंतज़ार

तुम्हारी परछाई

तुम्हारी आवाज

ये भी सब धोखा है



वो मन्नते

वो मिन्नतें

मुझे सताना

फिर

वो तुम्हारा मिलना

और

कसमे खाना

ये भी सब धोखा है



अब तो लगता है

मेरी जिंदगी

मेरी यादें

मेरे आंसू

मेरी साँसे

मेरी उलझने

ये भी सब धोखा है



~अभय

Monday, July 23, 2012

मै और दरख्त

एक लम्बा इंतज़ार


सारा का सारा तुम्हारा

और थोडा बारिश का भी



मेरा लगातार यु ही

देहलीज पे अटके रहना

और सामने वाले दरख़्त का

मुझे घुरना एकटक



पिछले आँगन का सुखा कुवाँ

वक़्त - बेवक्त मुझे बुलाता है

उसे मेरे इन्तजार की हदे

मालूम नहीं है

शायद





पिछले कुछ सालों से आम मे बौर

नहीं आते अब

और कोयल ने भी चुप्पी साध ली है

अचानक



मेरे जजबातों में जंग लग चुका है

और मै उन्हें कुरेदना चाहता हु



ताकि एक ब़ार खुल के रो सकू

बाहर वाले दरख़्त को भींच कर

अपनी बाँहों में



इसके पहले की

वक़्त की कुल्हाड़ी उसे

काट दे

और मै रह जाऊ



बिलकुल अकेला........ एकाकी



~अभय

Friday, July 20, 2012

कशमकश

अस्पताल के बरामदे में बैठा वो इंतज़ार कर रहा था


पता नहीं किस खबर का ...अच्छी या बुरी



डॉक्टर कहते है

अब उसके पिताजी का बचना शायद नामुमकिन है

या फिर वो बच भी सकते है ...सब कुछ उपरवाले के हाथ में है



पर साथ में ये भी कहते है की इलाज करवाते रहो

शायद कुछ फर्क पड़ ही जाये



उसका दिमाग ये गुत्थी

सुलझा नहीं पा रहा था



एक तरफ था

अस्पताल का रोज का घूमता हुवा जबरदस्त मीटर

सामने वाले मेडिकल का बढ़ता हुवा बिल

घर में डटे हुवे रिश्तेदारों की खातिरदारी में हो रही

नुक्कड़ के दुकान वाले बनिए की कमाई

और

रोज होने वाली काम की छुट्टी ... बगैर वेतन के



और दूसरी तरफ है

पिताजी की चिंता ...थोडा प्यार

और

मन के किसी कोने में दबी हुई एक कमजोर उम्मीद

उनके बच जाने की



फिर एक मन कहता है

की व्यर्थ है ये सब ...१ महीने पहले ही डॉक्टर ने बुला लिया था

सब रिश्तेदारों को

तबसे पड़े है सब यही पे मुफ्त की रोटिया तोड़ते हुवे

और पिताजी तब से देहलीज पे खड़े है



लगता है बंद करो ये सब और ले चलो उन्हें घर 



पर सताता है डर



समाज और रिश्तेदारों की उपरोध भरी निगाहों, उपदेश और उलाहनो का

की बेटा नालायक निकला



ना चाहकर भी एक स्वार्थी विचार उसके मन को छु जाता है

की शायद प्रकृति ही उसकी सहायता करे

और सारी समस्याओ का अंत हो जाये

उनकी भी और मेरी भी



~अभय

Tuesday, June 5, 2012

तबादले

जब भी जाना होता है किसी दुसरे शहर


तो होता है दर्द अपना शहर छोड़ने का



बड़ी मुश्किल होती है उस शहर को अपनाने में

और उससे भी ज्यादा अपने शहर को भूल जाने में



कुछ दिक्कते कुछ फासले

नयी गलिया नए रिश्ते

थोड़ी दिक्कते बड़ी मुश्किलें



पता नहीं तकलीफ नयी जगह में

जाने की होती है या

पुरानी जगह छोड़ने की



कुछ यादें अक्सर

याद आती है पुराने शहर की

नए शहर जा के भी



और तकलीफ देते है वो लोग

जो पुराने शहर में छुट गए है



खैर



अब तो जैसे आदत सी हो गयी है

हर वक़्त शहर बदलने की

नए को अपनाने की

पुराने को भुलाने की



अक्सर कुछ दिनों में

नया शहर भी समझ में आने लगता है

कुछ जगह जानी पहचानी लगती है

और कुछ लोग भी



एक डर सा होता है मन में

नए रिश्ते बनाते वक़्त

की

एक दिन तो आएगा

जब इनसे भी बिछड़ना होगा



तकलीफ होगी फिर एक ब़ार

जैसे अक्सर होती है



ओढना होगा नकाब फिर एक ब़ार

बिंदास रहने का

छुपानी होंगी तकलीफे

और करनी होगी तैय्यारी



नए शहर को समझने की

अपनाने की

पुराने को भुलाने की



फिर एक ब़ार

भीड़ में खो जाने की



~ अभय

Sunday, May 20, 2012

याद है तुमने उस दिन क्या कहा था ?

याद है तुमने उस दिन क्या कहा था ?





जब हम चल रहे थे समंदर की ठंडी रेत पर


चाँद की मद्धम रोशनी में

लहरों की आवाज को सुनते हुवे

किनारे की नाव को देखते हुवे



याद है तुमने उस दिन क्या कहा था ?



जब हम खड़े थे रास्ते पे करते हुवे taxi का इंतजार

और बड़े लम्बे समय तक हमें taxi ना मिली

बातों में मशगुल हमें याद ही ना रहा

की हम वहा किसलिए खड़े है



याद है तुमने उस दिन क्या कहा था ?



जब मैंने अपने आंसुओं को रोक कर

तुम्हे रोने से मना किया था

और हमारे सामने की Ice - cream पिघल गयी थी

काश वक़्त की दिवार भी इसी तरह पिघल जाती



याद है तुमने उस दिन क्या कहा था ?



जब मै तुम्हारे घर तक आया था

और फिर लौट गया था बाहर से ही

फिर कभी घर आने का वादा करके

मै अब तक उस वादे को पूरा ना कर सका हु



याद है तुमने उस दिन क्या कहा था ?



जब मुझसे फ़ोन पे बात करती हुई

तुम सो गयी थी

और मै कर रहा था तुम्हारा इंतजार

सुनते हुवे तुम्हारे सांसों की लय को



वो लय मुझे अब तक याद है

मुझे अब भी वो वादा पूरा करना है

मुझे अब भी वक़्त से शिकायत है

मुझे अब भी उस Taxi का इंतजार है

मै अब भी समंदर की रेत पे

तुम्हारा इंतजार कर रहा हु



मुझे अब भी याद है तुमने उस दिन क्या कहा था



~ अbhay

Tuesday, May 15, 2012

गर्मी की दोपहर

गर्मी की दोपहर




गरम हवा के झोके



लम्बी वीरान सड़के



धुल भरी आंधी



जलती हुई आँखें



पीठ पर बहता हुवा पसीना



एक और प्याली गरम चाय



डिब्बी में बची हुई



आखरी सिगरेट



बारिश का इंतजार



और तेरा भी



~ अbhay

Monday, May 14, 2012

मेरी जिंदगी




बड़ी अजीब सी जिंदगी है



रोज मै सुबह उठ के काम पे जाता हु

पर अक्सर ऐसा भी होता है

जब मै खुद को काम पे ले के जाता हु

एक अजीब सा एहसास होता है



मै पुरे दिन अपने आप को

खोजने की कोशिश करता हु

कभी कंप्यूटर की स्क्रीन में

तो कभी साथ वालो की अपरिचित निगाहों में



एक बोझिल सा दिन होता है वो

जिसे मै धकेलता हु अपने जिजीविषा से

सिर्फ इसी उम्मीद में

की शायद इसके खत्म होने पर

कुछ तो राहत मिलेगी की

या तो अगला दिन कुछ सौगात लायेगा

या फिर मुझे वो दिन देखने की जिल्लत ना उठानी होगी



खैर

बेतरतीब सा जब लौटता हु अपने कमरे पे

तो पाता हु खाली दीवारों पे टिकी हुवी एक छत

और टेबल पे पड़ी हुवी एक घडी

बेवजह अपनी मौजूदगी दर्ज कराती हुवे



तब मै खोजने लगता हु अपने वजूद को

उस घडी की टिक टिक में

जिसके काटें भागते है एक दुसरे के पीछे बेवजह

एक अंधी दौड़ में

अपने होने की सार्थकता को साबित करने की होड़ में



लगता है जैसे मेरी जिंदगी भी किसी

घडी के मानिंद उलझी हुई है

जबरन दौड़ती हुई एक चक्कर में

बगैर किसी मंजिल के



या फिर खाली दीवारों के जैसी

किसी छत का बोझ उठाये हुवे

जिनका होना वैसे तो जरुरी है

और वैसे देखे तो वो खाली है



फिर एक दिन

फिर एक उम्मीद

सुबह उठ के

काम पे जाना

या फिर

अपने आप को काम पे ले जाना

एक अविरत सिलसिला

कई वर्षो से चल रहा है

पता नहीं कब तक चलेगा



शायद जब तक घडी की

टिक टिक चल रही है

तब तक

या फिर जब तक

नियति इस घडी को

चला रही है

तब तक

Wednesday, May 9, 2012



जिंदगी......जिंदगी के बगैर


कभी तेरी ख़ामोशी


कभी तेरा गुस्सा



कभी तेरी आँखें

और

उनमे झलकता प्यार



कभी तेरा इनकार

कभी तेरा इकरार



कभी तेरी यादें

कभी तेरे ख्वाब



कभी तेरी चिठ्ठी

कभी तेरी तस्वीर



कभी तेरा ख्याल

और

कभी उसका जाल



कभी सिर्फ तेरा अहसास

तो

कभी तेरी गर्म सांस



कभी लगता है की ये सच है

पर

कभी लगता है ये छलावा है



जो भी है



पर



तेरे बिना जीना तो



मुश्किल है



जिंदगी



~ अbhay

Tuesday, April 17, 2012

जिंदगी की File

कई बार मैंने सोचा
की जिंदगी को Hibernate कर दू

चलती रहेगी जिंदगी की साँस
पर थोड़ी battery तो save कर लू

Files तो सारी खुली ही रहेंगी
पर उसे जमाने के लिए तो बंद ही कर दू

खैर क्या फर्क पड़ता है
Files खुली हो या बंद

सिवाय एक File के

जिसे

ना तो मै खुला छोड़ सकता हु

और

ना ही बंद कर सकता हु

~अbhay

Saturday, April 14, 2012

फिर ..एक...ब़ार

हर सवाल का का जवाब नहीं होता
पर फिर भी हम सवाल पूछते है

कभी खुदसे कभी दुसरो से
पर अक्सर खुद ही जवाब देते है
दूसरो से पूछे सवालो का भी
या फिर उम्मीद करते है
की वो भी वही जवाब दे


हर उम्मीद पूरी नहीं होती है
फिर भी हम उम्मीद करते है

कभी खुदसे कभी दूसरो से
पर अक्सर दुसरो से ज्यादा
और फिर सपने देखते है
उम्मीदे पूरी होने के


हर सपना सच नहीं होता है
चाहे छोटा हो या बड़ा हो

फिर भी हम सपने देखते है
और सपनो में खो जाते है
जब तक की कोई उसे तोड़
के हमें धरती पे ना गिरा दे
और फिर हम जख्म पाते है


हर जख्म ठीक नहीं होता
चाहे सतही हो या गहरा हो

फिर भी हम वक़्त की दुहाई देते है
की वक़्त के साथ हर जख्म भर ही जायेगा

और फिर एक ब़ार

सवाल पूछते है

उम्मीद करते है

सपने देखते है

नए जख्म पाते है

क्योंकि

जिंदगी है

और हम

जिंदगी के

हाथो मजबूर है

~ अभय

Friday, March 23, 2012

अब मैंने बरदाश्त करना सीख लिया है

अब मैंने बरदाश्त करना सीख लिया है
इस अकेलेपन को
इस तनहाई को
सुनी दीवारों को
इस अँधेरे को

लोगो के तानो को
अपनों के उलाहनो को
अब मैंने बरदाश्त करना सीख लिया है

दुश्मन की चाल को
अपनों के जाल को
अब मैंने बरदाश्त करना सीख लिया है

परायों के जुल्म को
अपनों के इल्म को
अब मैंने बरदाश्त करना सीख लिया है

दूसरो के वार को
अपनों के प्यार को
मैंने हर " नकाब " को बरदाश्त करना सीख लिया है

" नकाबो " की मुस्कुराहटो को
उनके " अपनेपन " को
अब मैंने बरदाश्त करना सीख लिया है

और भी काफी कुछ सीखा है मैंने

जैसे

खुद से नफरत करना

जजबातों का गला घोटना

खुद से अजनबी होना

साँस लेना

और

उसे याद रखना

की साँस लेना है

और फिर


कुछ देर और

जिन्दा रहना

बस नहीं

सीख पाया हु

मै अब तक

तुम्हे भूलना

और

तुम्हारे बगैर जीना

और शायद सीख भी नहीं पाउँगा

~ अभय

Saturday, March 10, 2012

जिंदगी का पहिया

उस चौराहे पे खड़ी वो कार
जब भी देखती है दूसरी कारों को
और सोचती है उनके बारे में
तो समझ नहीं पाती है
उनकी जिंदगी को
और उलझ जाती है
अपने खयालो में

बाजु वाली कार सफ़ेद रंग की
रोज सुबह जाती है ठीक ९ बजे
और लौट आती है शाम को ५ बजे
जैसे जिंदगी की रेखाए खीच दी हो

और वो दूसरी कार गुलाबी बंगले वाली
जाती है हर वीक एंड पे कही दूर
और आ कर सुनाती है किस्से
अपनी ऐय्याशी के
मानो वो ही उसकी जिंदगी का मकसद हो

या फिर सामने वाली बड़ी सी कार
जो हमेशा जाती है घुमने कभी पहाड़ो में
तो कभी समुन्दर के पास
पर रहती है अक्सर उदास वो
जैसे ये ही उसकी फितरत हो

उसे रश्क हो चला है
उन कारों की किस्मत पर
या तो है उलझन
खुद ही की जिंदगी पर

वैसे
उसे अक्सर दया आती है
उस पुरानी फियाट पे
जो अक्सर खड़ी होती है
पिछली पार्किंग में
उसे कोई नहीं निकालता
और ना ही कोई
पोछता भी है
जैसे उसका कोई
अस्तित्व ही ना हो


उसने हमेशा चाहा है
फर्राटे से सडको पे दौड़ना
और चाहा है
बेलगाम घूमना

पर शायद ये उसकी
किस्मत में नहीं

उसकी किस्मत में तो लिखा है
कभी कभी दौड़ना
सिर्फ पेट के लिए

या फिर घंटो खड़े
रहना इंतजार में
किसी के
इस उम्मीद में
की कोई बुलाये
और
उसकी जिदगी
सफल हो जाये

अब भी शायद उसे
कार
और
टेक्सी
के बीच
का फर्क
समझ में
नहीं
आया
है
शायद

Tuesday, February 14, 2012

वक़्त की गलती

जब भी मैंने मिलना चाहा, तो तुम्हारे पास वक़्त नहीं था

शायद ही कभी तुमने मिलना चाहा

पर तब भी तुम्हारे पास वक़्त नहीं था

कभी हम दोनों ने मिलना चाहा पर वक़्त को ये मंजूर नहीं था



मै जानता हु ये सिर्फ वक़्त की गलती है