Wednesday, March 9, 2011

मैंने कई बार चाहा है

मैंने कई बार चाहा है
खुद ही खुद को खत्म करना

और कोशिश भी की है

नहीं मै आत्महत्या की बात नहीं कर रहा हु

जानता हु वो बुजदिलो का काम है

मै तो बात कर रहा हु

शायद कही उससे आगे

जब जरुरत होती है

अपने विचारो का गला घोटने की

अपनी अभिव्यक्ति को मिटाने की

जानता हु की वो सबसे बड़ी हार है

शायद वो सब करना भी मेरी मज़बूरी थी

या अब भी है

या फिर समझोता था

कुछ खुद से और कुछ ज़माने से

कुछ सांसे उधार लेने का

ताकि जिंदगी चला सकू

अगली लढाई के लिए


जो मै लढ़ रहा हु

ताकि मेरी अगली नस्ल

साँस ले सके

और उन्हें जरुरत न पड़े

लढने की

अपने आप से

और इस समाज से

छोटी छोटी बातों के लिए

और गिरना न पड़े

अपनी ही नजरो में

जैसे मै गिरा हु

कई बार

फिर से उठने के लिए

Tuesday, March 1, 2011

परीक्षा

जब अक्सर चलने लगती है धुल भरी आंधिया

और गिरने लगते है पेड़ो से अनवरत पत्ते,


भरी दोपहरी में आती है

पत्तो के पीछे से कोयल की आवाज,


या फिर २ पंक्तिया पढने के बाद ही

अक्षर होने लगते है धुंधले !


जब साइकिल के चक्के करने लगते है

दोस्ती सड़क के डामर से,


और आते जाते मन बहका जाती है

पकी इमली की खुशबु ,


कभी सिर्फ सुनाई देती है

कुल्फी वाले के घंटी की आवाज


या फिर...........

पानी पीते ही लगने लगती है प्यास


तो ऐसा लगता है

मानो पेपर बिघड गया हो