Tuesday, December 28, 2010

फासले...............................................

फासले कभी मिलो के तो कभी दिलो के
कुछ हमने बनाये हुवे और कुछ हमने मिटाए हुवे

कुछ जिंदगी भर साथ रह कर भी बन जाने वाले
तो कुछ जिंदगी भर साथ साथ चलने वाले

कभी जिंदगी भर एक साथ चार दीवारों के बीच रह कर भी
बन जाने वाले और फिर कभी खत्म ना होने वाले

तो कुछ ऐसे जो मिलो दूर रह कर भी
महसूस ना होने वाले

कई बार मिलो के फासले यु ही तय हो जाते है
तो दिलो के फासलों को मिटाने में जिंदगी निकल जाती है

कई बार समाज इन्हें बढ़ा देता है तो कभी हमारी सोच
और हम उलझ के रह जाते है अपने ही बुने हुवे जाल में

कई ब़ार सांस अटक जाती है तो कई बार अल्फाज नहीं मिलते
वरना ये फासले ना इस तरह से बनते और ना ही बढ़ते


सिर्फ एक कदम, एक अल्फाज, एक नजर, एक मुस्कुराहट
शायद कहानी को बदल देती

ना वो फासले होते ना ये कहानी होती

Monday, December 27, 2010

तुम कहा हो.......

बड़ी मुद्दत हो गयी है तुम्हारी आवाज़ सुने हुवे
और उससे भी ज्यादा वक़्त गुजर गया है तुम्हे देखे हुवे

फिर भी क्यों लगता है जैसे ये कल ही की बात हो

वो taxi का लम्बा इंतजार
और डर किसीके देख लेने का

तुम्हारा अविरत बाते करना और
मेरा सिर्फ तुम्हारी और देखते रहना

और कभी कभी वो व्यर्थ की बहस
और फिर लम्बी चुप्पी

हमारा वो निशब्द वार्तालाप

और फिर तकलीफ वक़्त के ख़त्म हो जाने की


वो समंदर का किनारा, चाँद की वो मद्धम रौशनी
शोर मचाती हुवी और हमारे कदमो के निशान मिटाती वो लहरें
हमें डराती तो कभी हमें भिगाती पर फिर भी हमें अपने पास बुलाती

एक एकाकी नाव किसी लहर के इंतजार में
बगैर किसी मल्लाह के

पास ही के पेड़ो पर के वो चंपा के फूल
हमें एक टक निहारते हुवे

ना जाने क्यों हर वक़्त ये लगता है जैसे तुमसे मुलाक़ात होगी
और मै अपने आप को भुला कर फिर करने लगता हु इंतजार

पर लगता है इंतजार की जिंदगी इस जिंदगी से भी लम्बी है

पता नहीं कभी कभी मै तुम्हारी याद में तुम्हारा इंतजार करना भी भूल जाता हु

शायद अब मुझे तुम्हारे बगैर रहने की आदत हो गयी है

या फिर मैंने खुदको धोका देना सीख लिया है

Friday, December 17, 2010

शराब और सोच

पहले मै काफी सोचता था पीने से पहले

काफी समझाता था अपने आप को

कभी ये की पीना बुरी बात है

और फिर अगले ही पल की ठीक है यार कभी कभी तो पी रहे हो

और फिर पी ही लेता था

और फिर पीने के बाद फिर से सोचता था

कभी लगता था की मैंने ठीक ही किया

और कभी मै अपने आप से नाराज होता था

पर अब मै समझ गया हु की ये सब गलत है

फालतू है , व्यर्थ है और अब मै इस नतीजे पे पंहुचा हु की......

मैंने ये सब छोड़ ही देना चाहिए

इसलिए अब मैंने बार बार सोचना छोड़ दिया है पिने के पहले भी और पिने के बाद भी

अब मै पीता हु और...............

सिर्फ पीने के बारे में सोचता हु

Tuesday, December 14, 2010

काय सांगू आणि कसे सांगू,

काय सांगू आणि कसे सांगू, माझे मलाच काही कलेना

कधीतरी मी विचारतो स्वतालाच प्रश्न

आणि मग शोधत बसतो त्याची उत्तरे

काय सांगू आणि कसे सांगू, माझे मलाच काही कलेना


कधीतरी असे वाटते की समजले आता मला सगले

आणि दुसऱ्याच क्षणी सगले blank होवून जाते

काय सांगू आणि कसे सांगू, माझे मलाच काही कलेना


कधीतरी फिरत असतो असाच आणि शोधत असतो

स्वताला दाही दिशां मधे

आणि नंतर लक्षात येते की मी हरवून बसलोय माझ्यातच

काय सांगू आणि कसे सांगू, माझे मलाच काही कलेना


कधीतरी अथक प्रयत्न करतो जुन्या गोष्टी विसरण्याचा

आणि आनखिनाच अडकत जातो नको त्या आठ्वानिं मधे

सगले प्रयत्न निरर्थक ठरतात

काय सांगू आणि कसे सांगू, माझे मलाच काही कलेना

Sunday, December 12, 2010

घर .....

आलिशान बंगला भी यहाँ घर है

३ Bhk / २ Bhk / १ Bhk / १ RK भी यहाँ घर है

१०*१० का कमरा भी यहाँ घर है

साझे के कमरे में आया हुवा एक पलंग भी यहाँ घर है

और फूटपाथ भी यहाँ घर है

क्योंकि शाम ढलते ही हर बन्दा ये ही कहता है

" चल दोस्त निकलता हु घर जाना है "

Monday, December 6, 2010

जीत है या हार

मुझे पता नहीं है ये मेरी जीत है या हार

तुमसे दूर हो के शायद मै तुमसे तो जीत गया......

पर....... मै खुद से तो हार ही गया हु

और अब न अपनी जीत का जश्न मना पा रहा हु

न ही अपनी हार का मातम.....

Sunday, December 5, 2010

मै फिर सांस लेने लगता हु

मै सांस लेता हु इसलिए मै जिन्दा हु
या शायद मै जिन्दा हु इसलिए मै सांस लेता हु

खैर ये बात तय है की मै जिन्दा हु

अब तक ये बात ना कभी मैंने सोची
और ना ही किसीने मुझे बताई

खैर उससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता है वैसे भी अब तो ये बात खुल ही गयी है

और भी कई बाते है जो अब मेरे समझ में आ रही है
जैसे मै महसूस करता हु या कर सकता हु
मुझे कभी कभी ख़ुशी भी होती है
और कई बार गम भी

हा मुझे दर्द भी होता है
और तकलीफ भी

कभी कभी मुझे लोगो द्वारा की गयी नफरत, खुदगर्जी भी समझ में आ जाती है
और लोगो ने की हुई बेइज्जती भी
अक्सर बेइज्जती जब बड़े लोग ( मै उम्र की बात नहीं कर रहा हु, हैसियत या ओहदे की बात है जनाब ) करते है तो वो उसे स्पष्टवादिता का नाम देते है
और मै भी ऐसा ही समझता हु, और फिर मै उसे ठीक भी मान लेता हु........
....... और फिर सांस लेने लगता हु

कभी मुझे तकलीफ होती है तो कभी मै उसे दरकिनार कर देता हु
अक्सर दरकिनार ही करता हु.......मुझे पता है और कोई चारा नहीं है

शायद मुझे ये पता है की ऐसा नहीं किया तो लोग मुझे ही दरकिनार कर देंगे

अब आप ये मत समझना की मै कोई शिकायत कर रहा हु
क्योंकि मै इतना तो समझता हु की मै वो भी नहीं कर सकता
हम तो युही बात कर रहे है

जब कभी मेरे अपने मुझे आहत करते है
तो मै समझ नहीं पाता की मै क्या करू,
ना मै उनको दर्द पंहुचा सकता हु ना ही मै उनसे नाराज हो सकता हु
मै जानता हु की मेरे अपने काफी कम है और मै उनके बगैर नहीं रह सकता
उस खयाल मात्र से मुझे ज्यादा तकलीफ होने लगती है

तब मै अपने जिन्दा होने को कोसने लगता हु

पर फिर भी मेरी सांस चलती रहती है

मुझे ये भी समझ में आता है की लोग
मुझे चाहते है और मै खुश होता हु या होने की कोशिश करता हु

पर कुछ लोग होते है जो मुझे अक्सर तब तक चाहते है
जब तक उन्हें इस चाहने की जरुरत महसूस होती है
जरुरत के ख़त्म होते ही वो दूर हो जाते है और अगर कभी मै इस बात की शिकायत करता हु तो
वो इसे Understanding , Space जैसे Label लगाने लगते है

ये सब मेरी समझ में नहीं आता है तो मुझे कोफ़्त होने लगती है
पता नहीं क्यों पर फिर भी मै सांस लेता रहता हु


अब मै ये सोच रहा हु की मुझे ये सब समझ में क्यों आता है
शायद सोचना ही इस सारे फसाद की जड़ है
फिर मै सोचने लगता हु की इस सोचने को कैसे बंद करू
और जब मुझे इसका भी जवाब नहीं मिलता है तो

आदतन मै फिर सांस लेने लगता हु और सोचता हु की मै सांस क्यों लेता हु

शायद सांस लेना मेरी मज़बूरी है............
.......... और हा सोचना भी