Sunday, May 20, 2012

याद है तुमने उस दिन क्या कहा था ?

याद है तुमने उस दिन क्या कहा था ?





जब हम चल रहे थे समंदर की ठंडी रेत पर


चाँद की मद्धम रोशनी में

लहरों की आवाज को सुनते हुवे

किनारे की नाव को देखते हुवे



याद है तुमने उस दिन क्या कहा था ?



जब हम खड़े थे रास्ते पे करते हुवे taxi का इंतजार

और बड़े लम्बे समय तक हमें taxi ना मिली

बातों में मशगुल हमें याद ही ना रहा

की हम वहा किसलिए खड़े है



याद है तुमने उस दिन क्या कहा था ?



जब मैंने अपने आंसुओं को रोक कर

तुम्हे रोने से मना किया था

और हमारे सामने की Ice - cream पिघल गयी थी

काश वक़्त की दिवार भी इसी तरह पिघल जाती



याद है तुमने उस दिन क्या कहा था ?



जब मै तुम्हारे घर तक आया था

और फिर लौट गया था बाहर से ही

फिर कभी घर आने का वादा करके

मै अब तक उस वादे को पूरा ना कर सका हु



याद है तुमने उस दिन क्या कहा था ?



जब मुझसे फ़ोन पे बात करती हुई

तुम सो गयी थी

और मै कर रहा था तुम्हारा इंतजार

सुनते हुवे तुम्हारे सांसों की लय को



वो लय मुझे अब तक याद है

मुझे अब भी वो वादा पूरा करना है

मुझे अब भी वक़्त से शिकायत है

मुझे अब भी उस Taxi का इंतजार है

मै अब भी समंदर की रेत पे

तुम्हारा इंतजार कर रहा हु



मुझे अब भी याद है तुमने उस दिन क्या कहा था



~ अbhay

Tuesday, May 15, 2012

गर्मी की दोपहर

गर्मी की दोपहर




गरम हवा के झोके



लम्बी वीरान सड़के



धुल भरी आंधी



जलती हुई आँखें



पीठ पर बहता हुवा पसीना



एक और प्याली गरम चाय



डिब्बी में बची हुई



आखरी सिगरेट



बारिश का इंतजार



और तेरा भी



~ अbhay

Monday, May 14, 2012

मेरी जिंदगी




बड़ी अजीब सी जिंदगी है



रोज मै सुबह उठ के काम पे जाता हु

पर अक्सर ऐसा भी होता है

जब मै खुद को काम पे ले के जाता हु

एक अजीब सा एहसास होता है



मै पुरे दिन अपने आप को

खोजने की कोशिश करता हु

कभी कंप्यूटर की स्क्रीन में

तो कभी साथ वालो की अपरिचित निगाहों में



एक बोझिल सा दिन होता है वो

जिसे मै धकेलता हु अपने जिजीविषा से

सिर्फ इसी उम्मीद में

की शायद इसके खत्म होने पर

कुछ तो राहत मिलेगी की

या तो अगला दिन कुछ सौगात लायेगा

या फिर मुझे वो दिन देखने की जिल्लत ना उठानी होगी



खैर

बेतरतीब सा जब लौटता हु अपने कमरे पे

तो पाता हु खाली दीवारों पे टिकी हुवी एक छत

और टेबल पे पड़ी हुवी एक घडी

बेवजह अपनी मौजूदगी दर्ज कराती हुवे



तब मै खोजने लगता हु अपने वजूद को

उस घडी की टिक टिक में

जिसके काटें भागते है एक दुसरे के पीछे बेवजह

एक अंधी दौड़ में

अपने होने की सार्थकता को साबित करने की होड़ में



लगता है जैसे मेरी जिंदगी भी किसी

घडी के मानिंद उलझी हुई है

जबरन दौड़ती हुई एक चक्कर में

बगैर किसी मंजिल के



या फिर खाली दीवारों के जैसी

किसी छत का बोझ उठाये हुवे

जिनका होना वैसे तो जरुरी है

और वैसे देखे तो वो खाली है



फिर एक दिन

फिर एक उम्मीद

सुबह उठ के

काम पे जाना

या फिर

अपने आप को काम पे ले जाना

एक अविरत सिलसिला

कई वर्षो से चल रहा है

पता नहीं कब तक चलेगा



शायद जब तक घडी की

टिक टिक चल रही है

तब तक

या फिर जब तक

नियति इस घडी को

चला रही है

तब तक

Wednesday, May 9, 2012



जिंदगी......जिंदगी के बगैर


कभी तेरी ख़ामोशी


कभी तेरा गुस्सा



कभी तेरी आँखें

और

उनमे झलकता प्यार



कभी तेरा इनकार

कभी तेरा इकरार



कभी तेरी यादें

कभी तेरे ख्वाब



कभी तेरी चिठ्ठी

कभी तेरी तस्वीर



कभी तेरा ख्याल

और

कभी उसका जाल



कभी सिर्फ तेरा अहसास

तो

कभी तेरी गर्म सांस



कभी लगता है की ये सच है

पर

कभी लगता है ये छलावा है



जो भी है



पर



तेरे बिना जीना तो



मुश्किल है



जिंदगी



~ अbhay