अब जब जख्म भर चले है तो
क्यों तुम मुझे याद आते हो
अब जाकर मै इस भुलावे में आया था
की मै तुम्हे भूलने लगा हु
फिर एक ब़ार मेरे जिंदगी में आ के
क्यों मुझे सताते हो
जानता हु ये द्वन्द है मेरा.. मेरे मन से ही
चेतन मन का अचेतन मन से
बड़ी मुश्किल से इस मन ने उस मन को समझाया है
अब फिर से क्यों उसे रुलाते हो
अब जब जख्म भर चले है तो
क्यों तुम मुझे याद आते हो
जिंदगी के लम्हों को उलझा के
मैंने इन सांसों को सुलझाया है
फिर एक ब़ार अपनी निगाहों से
सुलझी सांसों को क्यों उलझाते हो
अब जब जख्म भर चले है तो
क्यों तुम मुझे याद आते हो
अब मै लहरों से दोस्ती करके
समंदर के आगोश में जाना चाहता हु
तो फिर क्यों आवाज दे के
मुझे वापस बुलाते हो
अब जब जख्म भर चले है तो
क्यों तुम मुझे याद आते हो
Thursday, December 29, 2011
Friday, December 16, 2011
तुम्हारी याद में...........................
जिंदगी किसी नदी के मानिंद अविरत ... अविचल बहती जा रही थी
की अचानक तुम्हारे मिल जाने से ये जैसे ये अपना रास्ता भूल गयी
चाहा तो कभी ना था इसने उस रास्ते पे चलना
जिस राह पे ये यु ही अचानक मूड गयी
अब तो आगे बढ़ने के सिवाय कोई चारा ना था
वैसे भी पीछे लौटना मेरी जिंदगी ने कभी सिखा ही नहीं
कभी सपने देखने की जिद तो कभी फ़ना होने का जूनून
संभल कर चलना तो इसने कभी सोचा ही नहीं
जिंदगी के ये दो किनारे किसे छोडू किसके साथ चलता रहू
ये तो शायद मुझे नदी से ही सीखना होगा
नदी भी तो जिंदगी भर दो किनारों के साथ चलती है
की अचानक तुम्हारे मिल जाने से ये जैसे ये अपना रास्ता भूल गयी
चाहा तो कभी ना था इसने उस रास्ते पे चलना
जिस राह पे ये यु ही अचानक मूड गयी
अब तो आगे बढ़ने के सिवाय कोई चारा ना था
वैसे भी पीछे लौटना मेरी जिंदगी ने कभी सिखा ही नहीं
कभी सपने देखने की जिद तो कभी फ़ना होने का जूनून
संभल कर चलना तो इसने कभी सोचा ही नहीं
जिंदगी के ये दो किनारे किसे छोडू किसके साथ चलता रहू
ये तो शायद मुझे नदी से ही सीखना होगा
नदी भी तो जिंदगी भर दो किनारों के साथ चलती है
Saturday, November 26, 2011
जिंदगी तेरे नाम
सर्दियों की शाम अक्सर उदास होती है
एक अजीब सा सन्नाटा होता है
जो मुझे झझकोर देता है
और मै बैचैनी से
ढूंढने लगता हु
उस सूरज को
जिससे
अपने हिस्से
की मुट्ठी भर
धुप ले सकू
जिसकी
नर्म गर्माहट
मुझे तेरी
याद दिलाये
ताकि
मै
कुछ दिन
और
साँस ले सकू
एक अजीब सा सन्नाटा होता है
जो मुझे झझकोर देता है
और मै बैचैनी से
ढूंढने लगता हु
उस सूरज को
जिससे
अपने हिस्से
की मुट्ठी भर
धुप ले सकू
जिसकी
नर्म गर्माहट
मुझे तेरी
याद दिलाये
ताकि
मै
कुछ दिन
और
साँस ले सकू
Tuesday, November 15, 2011
पहेली
दिल अक्सर तुमसे खफा होता है
और फिर
तुम्हे मनाने का तरीका भी ढूंढ़ता है
ये बागी रहता तो मेरे सीने में है
पर हरवक्त तुम्हारे इशारो पर धड़कता है
और फिर
तुम्हे मनाने का तरीका भी ढूंढ़ता है
ये बागी रहता तो मेरे सीने में है
पर हरवक्त तुम्हारे इशारो पर धड़कता है
Sunday, November 6, 2011
अँधेरा
सर्दियों में शाम कुछ जल्दी आती है
और अक्सर उदास कर जाती है
दूर कही उठता हुवा वो सिगडी का धुवा
और
सूरज के जाने के बाद तंग करने वाली
ठंडी हवाए
पेड़ो के लम्बे होते हुवे साये
और
बोझिल सन्नाटे में से किसी के गाने की आती हुवी आवाज
इन सब की जैसे अब आदत सी हो गयी है
दिये की लौ कभी कांपती हुवी
तो कभी अडिग हो कर जलती हुवी
मेरे अस्तित्व को चुनौती देती हुवी
मै उसे बुझा देता हु
क्योंकि मै उसकी चुनौती से डरता हु शायद
या फिर शायद
मुझे ये अँधेरा अच्छा लगने लगा है
और अक्सर उदास कर जाती है
दूर कही उठता हुवा वो सिगडी का धुवा
और
सूरज के जाने के बाद तंग करने वाली
ठंडी हवाए
पेड़ो के लम्बे होते हुवे साये
और
बोझिल सन्नाटे में से किसी के गाने की आती हुवी आवाज
इन सब की जैसे अब आदत सी हो गयी है
दिये की लौ कभी कांपती हुवी
तो कभी अडिग हो कर जलती हुवी
मेरे अस्तित्व को चुनौती देती हुवी
मै उसे बुझा देता हु
क्योंकि मै उसकी चुनौती से डरता हु शायद
या फिर शायद
मुझे ये अँधेरा अच्छा लगने लगा है
Tuesday, August 23, 2011
डर
मै तब जैसा था
आज भी
वैसा ही हु
पर शायद
अब
तुम्हारा नजरिया ही बदल गया है
वैसे और भी कुछ बदला है
मेरी जिंदगी में
अब मैंने समंदर पे जाना छोड़ दिया है
मुझे डर है कही
वो अकेली नाव
किनारे की ठंडी रेत
नारियल के वो पेड़
समंदर की लहरें
चंपा के मासूम फूल
वो अजनबी जिसने हमें रास्ता बताया था
और वो पुलिस वाला जिसने हमें धमकाया था
हमने इकट्ठी की हुई सीपिया
रात की तनहाई
सुबह का सूरज
ये सब
तुम्हारे बारे में ना पुछ ले
क्या जवाब दूंगा मै उन्हें
की मैंने तुम्हे खो दिया
या अपने आप को
या की अब मै
खुद ही को नहीं
पहचानता
आज भी
वैसा ही हु
पर शायद
अब
तुम्हारा नजरिया ही बदल गया है
वैसे और भी कुछ बदला है
मेरी जिंदगी में
अब मैंने समंदर पे जाना छोड़ दिया है
मुझे डर है कही
वो अकेली नाव
किनारे की ठंडी रेत
नारियल के वो पेड़
समंदर की लहरें
चंपा के मासूम फूल
वो अजनबी जिसने हमें रास्ता बताया था
और वो पुलिस वाला जिसने हमें धमकाया था
हमने इकट्ठी की हुई सीपिया
रात की तनहाई
सुबह का सूरज
ये सब
तुम्हारे बारे में ना पुछ ले
क्या जवाब दूंगा मै उन्हें
की मैंने तुम्हे खो दिया
या अपने आप को
या की अब मै
खुद ही को नहीं
पहचानता
Saturday, August 6, 2011
उधार की जिंदगी
पता नहीं
क्यों
हम अपनी
मजबूरियों को
समझदारी का नाम देते है
घोट देते है गला
अपनी आकांक्षाओ का
ओढ़ कर लबादा
अपनी जवाबदारियों का
दबा देते है
अपनी अभिव्यक्ति को
पहन कर मुखौटा
किताबी लब्जों का
खरीदना चाहते है
खुशियों को
चंद रुपयों के बदले में
किसी सब्जी के मानिंद
कोशिश करते है
खुश होने की
लेकर उधार की जिंदगी
चुकाते रहते है
उस कर्ज को
अपनी सांसों से
और
बाट जोहते है
उस मुक्ति की
जिसे हमने
कब का
जिंदगी के बदले में
गिरवी रख दिया है
क्यों
हम अपनी
मजबूरियों को
समझदारी का नाम देते है
घोट देते है गला
अपनी आकांक्षाओ का
ओढ़ कर लबादा
अपनी जवाबदारियों का
दबा देते है
अपनी अभिव्यक्ति को
पहन कर मुखौटा
किताबी लब्जों का
खरीदना चाहते है
खुशियों को
चंद रुपयों के बदले में
किसी सब्जी के मानिंद
कोशिश करते है
खुश होने की
लेकर उधार की जिंदगी
चुकाते रहते है
उस कर्ज को
अपनी सांसों से
और
बाट जोहते है
उस मुक्ति की
जिसे हमने
कब का
जिंदगी के बदले में
गिरवी रख दिया है
Wednesday, August 3, 2011
अल्फाज
अल्फाज
काफी सारे
कुछ तुमने कहे
और शायद कुछ मैंने भी
जो मैंने कहे थे वो अब भी मुझे याद है
और जो तुमने कहे थे
वो तो मै कभी भूल ही नहीं सकता
मुझे तो
वो अल्फाज भी याद है
जो तुमने कभी कहे ही नहीं
उसके लिए तुम्हारी आँखे ही काफी थी
जानता था की ये अल्फाजो का मायाजाल है
फिर भी उसमे उलझना अच्छा लगता था
वो शायद तुम्हारी हंसी का असर था
या फिर तुम्हारी मासूम आँखों का जादू था
जो तुम्हारी जुबां से ज्यादा बोलती थी
मै अब भी तय नहीं कर पा रहा हु की
मै तुम्हारी आँखों में
ज्यादा उलझता था या
तुम्हारी जुल्फों में
काफी सारे
कुछ तुमने कहे
और शायद कुछ मैंने भी
जो मैंने कहे थे वो अब भी मुझे याद है
और जो तुमने कहे थे
वो तो मै कभी भूल ही नहीं सकता
मुझे तो
वो अल्फाज भी याद है
जो तुमने कभी कहे ही नहीं
उसके लिए तुम्हारी आँखे ही काफी थी
जानता था की ये अल्फाजो का मायाजाल है
फिर भी उसमे उलझना अच्छा लगता था
वो शायद तुम्हारी हंसी का असर था
या फिर तुम्हारी मासूम आँखों का जादू था
जो तुम्हारी जुबां से ज्यादा बोलती थी
मै अब भी तय नहीं कर पा रहा हु की
मै तुम्हारी आँखों में
ज्यादा उलझता था या
तुम्हारी जुल्फों में
Friday, July 1, 2011
जिंदगी एक साँप सीढ़ी है
जिंदगी एक साँप सीढ़ी है
मै जब भी ऊपर जाना चाहता हु
साँप तैयार होता है
मुझे निचे लाने के लिए
कभी ये कर्ज की शक्ल में आता है
तो कभी मर्ज की शक्ल में
वैसे तो मै कोशिश करता हु की
इससे बच जाऊ
पर लगता है
इसकी पांसो से दोस्ती है
अक्सर मै इसकी नजर बचा के
ऊपर निकल गया हु
तब उसने मुझे इस कदर देखा है
जैसे मै ही इसको निगल गया हु
कभी ये
अफसर की अक्ल में होता है
तो कभी
किसी फर्जी दोस्त की शक्ल में
अमूमन
इसके चंगुल से बचना मुश्किल होता है
क्योंकि
जकड़ना इसकी फितरत है
और
शायद फंस जाना
मेरी
खैर
मै भी हारने वालो में से नहीं हु
वक़्त की बिसात पे
अपनी सांसों के पांसे फेकते रहूँगा
और
आज नहीं तो कल
खेल को जीत ही जाऊंगा
मै जब भी ऊपर जाना चाहता हु
साँप तैयार होता है
मुझे निचे लाने के लिए
कभी ये कर्ज की शक्ल में आता है
तो कभी मर्ज की शक्ल में
वैसे तो मै कोशिश करता हु की
इससे बच जाऊ
पर लगता है
इसकी पांसो से दोस्ती है
अक्सर मै इसकी नजर बचा के
ऊपर निकल गया हु
तब उसने मुझे इस कदर देखा है
जैसे मै ही इसको निगल गया हु
कभी ये
अफसर की अक्ल में होता है
तो कभी
किसी फर्जी दोस्त की शक्ल में
अमूमन
इसके चंगुल से बचना मुश्किल होता है
क्योंकि
जकड़ना इसकी फितरत है
और
शायद फंस जाना
मेरी
खैर
मै भी हारने वालो में से नहीं हु
वक़्त की बिसात पे
अपनी सांसों के पांसे फेकते रहूँगा
और
आज नहीं तो कल
खेल को जीत ही जाऊंगा
Friday, June 24, 2011
हालात
पथप्रदर्शक हो गए है पथभ्रष्ट
अब तो खुले आसमां के निचे भी दम घुटता है
जिनकी खातिर हम थे मरने को तैयार
उन्होंने खुदगर्जी में हमें कत्ल करना चाहा
अब तो खुले आसमां के निचे भी दम घुटता है
हालातो ने खीच दी है खरोचे सबके दिल पे
इन्सान की नियत ने इंसानियत पे कलंक लगा दिया है
अब तो खुले आसमां के निचे भी दम घुटता है
जिन्हें कभी देखते थे हम सर उठा के
आज उनकी वजह से सर झुकाना पड़ रहा है
पथप्रदर्शक हो गए है पथभ्रष्ट
अब तो खुले आसमां के निचे भी दम घुटता है
राहे हो गयी है अब अनजानी
और शक्ले हो गयी है अब अजनबी सी
अब तो खुले आसमां के निचे भी दम घुटता है
जिंदगी अब डरती है सांस लेने में
कही हवाँ में घुला जहर,
जेहन में ना उतर जाये
अब तो खुले आसमां के निचे भी दम घुटता है
पथप्रदर्शक हो गए है पथभ्रष्ट
अब तो खुले आसमां के निचे भी दम घुटता है
अब तो खुले आसमां के निचे भी दम घुटता है
जिनकी खातिर हम थे मरने को तैयार
उन्होंने खुदगर्जी में हमें कत्ल करना चाहा
अब तो खुले आसमां के निचे भी दम घुटता है
हालातो ने खीच दी है खरोचे सबके दिल पे
इन्सान की नियत ने इंसानियत पे कलंक लगा दिया है
अब तो खुले आसमां के निचे भी दम घुटता है
जिन्हें कभी देखते थे हम सर उठा के
आज उनकी वजह से सर झुकाना पड़ रहा है
पथप्रदर्शक हो गए है पथभ्रष्ट
अब तो खुले आसमां के निचे भी दम घुटता है
राहे हो गयी है अब अनजानी
और शक्ले हो गयी है अब अजनबी सी
अब तो खुले आसमां के निचे भी दम घुटता है
जिंदगी अब डरती है सांस लेने में
कही हवाँ में घुला जहर,
जेहन में ना उतर जाये
अब तो खुले आसमां के निचे भी दम घुटता है
पथप्रदर्शक हो गए है पथभ्रष्ट
अब तो खुले आसमां के निचे भी दम घुटता है
Saturday, June 11, 2011
एक " बारिश " मेरी अपनी.....
मुझे बारिशो में रोना अच्छा लगता है
ये बुँदे उन बूंदों में समां जाती है
और तुम्हे पता भी नहीं चलता है
ना सहा जाता है
और ना ही कहा जाता है
बस अब रहा नहीं जाता है
मेरे सपने मेरे आंसुओ में धुल जाते है
जब भी मै बारिशो में रोता हु
मेरे गम उन बूंदों में घुल जाते है
जब भी मै बारिशो में रोता हु
मुझे बारिशो में रोना अच्छा लगता है
ये बुँदे उन बूंदों में समां जाती है
और तुम्हे पता भी नहीं चलता है
मै कभी बारिशो में रोता हु
और कभी " बारिश " के लिए
जो भी है " बारिश " हर वक़्त मेरे जेहन में होती है
दिल में, दिमाग में और अक्सर
मेरे आंसुओ में
मुझे बारिशो में रोना अच्छा लगता है
ये बुँदे उन बूंदों में समां जाती है
और तुम्हे पता भी नहीं चलता है
उम्मीद है ये बारिश ख़ुशी के आंसू भी लाएगी
इस जिंदगी में ना सही
अगली जिंदगी में तो आएगी
मुझे बारिशो में रोना अच्छा लगता है
ये बुँदे उन बूंदों में समां जाती है
और तुम्हे पता भी नहीं चलता है
ये बुँदे उन बूंदों में समां जाती है
और तुम्हे पता भी नहीं चलता है
ना सहा जाता है
और ना ही कहा जाता है
बस अब रहा नहीं जाता है
मेरे सपने मेरे आंसुओ में धुल जाते है
जब भी मै बारिशो में रोता हु
मेरे गम उन बूंदों में घुल जाते है
जब भी मै बारिशो में रोता हु
मुझे बारिशो में रोना अच्छा लगता है
ये बुँदे उन बूंदों में समां जाती है
और तुम्हे पता भी नहीं चलता है
मै कभी बारिशो में रोता हु
और कभी " बारिश " के लिए
जो भी है " बारिश " हर वक़्त मेरे जेहन में होती है
दिल में, दिमाग में और अक्सर
मेरे आंसुओ में
मुझे बारिशो में रोना अच्छा लगता है
ये बुँदे उन बूंदों में समां जाती है
और तुम्हे पता भी नहीं चलता है
उम्मीद है ये बारिश ख़ुशी के आंसू भी लाएगी
इस जिंदगी में ना सही
अगली जिंदगी में तो आएगी
मुझे बारिशो में रोना अच्छा लगता है
ये बुँदे उन बूंदों में समां जाती है
और तुम्हे पता भी नहीं चलता है
Tuesday, May 24, 2011
मै और तुम
जब भी
मै तुझसे
खफा होता हु
तो सोचता हु की
अब
तुझसे
कभी बात नहीं करूँगा
ठान लेता हु
बस
अब बहुत हो चुका
पर
हर बार
हार जाता हु
तुझसे भी
और
अपने आप से भी
पर वो हार भी
तो
कही अन्दर से
मुझे अच्छी लगती है
शायद
मै हर वक़्त
यही
मन्नत मांगता हु
की मै कभी
कभी भी
तुम से
जीत ना पाऊ
और
खुद से
भी
मै तुझसे
खफा होता हु
तो सोचता हु की
अब
तुझसे
कभी बात नहीं करूँगा
ठान लेता हु
बस
अब बहुत हो चुका
पर
हर बार
हार जाता हु
तुझसे भी
और
अपने आप से भी
पर वो हार भी
तो
कही अन्दर से
मुझे अच्छी लगती है
शायद
मै हर वक़्त
यही
मन्नत मांगता हु
की मै कभी
कभी भी
तुम से
जीत ना पाऊ
और
खुद से
भी
Sunday, May 22, 2011
आग
बस्ती जल रही थी
आग फैली थी
चारो तरफ
सिर्फ
आग
बस
आग
भड़क रही थी
हर तरफ
बस्ती में
पेट में
मन में
आग
दुःख की
गुस्से की
प्रतिशोध की
पर
ना तो वो आग
उनके आंसू सुखा पा रही थी
और
ना ही उनके आंसू
उस आग को बुझा पा रहे थे
आग फैली थी
चारो तरफ
सिर्फ
आग
बस
आग
भड़क रही थी
हर तरफ
बस्ती में
पेट में
मन में
आग
दुःख की
गुस्से की
प्रतिशोध की
पर
ना तो वो आग
उनके आंसू सुखा पा रही थी
और
ना ही उनके आंसू
उस आग को बुझा पा रहे थे
Wednesday, May 18, 2011
चाँद
तेरा मेरा हमराज ये चाँद
इस काली स्याह रात में
राह भटकता होगा चाँद
कभी तुम्हे तो कभी मुझे
याद करता होगा चाँद
कभी समंदर की लहरों में
अपने आप को खोजता होगा चाँद
तो कभी चंपा के फूलों के पीछे
आंसू बहाता होगा चाँद
तेरे मेरे जिंदगी के कितना करीब है ये चाँद
वैसे तो मैंने चाँद को
हर रोज तिल तिल टूटते हुवे देखा है
कभी खुदसे तो कभी
दुसरो से रुठते हुवे देखा है
शायद उसकी उम्मीद
उसे फिर ले आती है
कभी उसे
तो कभी मुझे रुलाती है
शायद..... शायद
मेरी उम्मीदों का चाँद भी
कुछ इस कदर ही
बनता बिखरता होगा
कभी खुद रोता तो
कभी मुझे रुलाता होगा
इस काली स्याह रात में
राह भटकता होगा चाँद
कभी तुम्हे तो कभी मुझे
याद करता होगा चाँद
कभी समंदर की लहरों में
अपने आप को खोजता होगा चाँद
तो कभी चंपा के फूलों के पीछे
आंसू बहाता होगा चाँद
तेरे मेरे जिंदगी के कितना करीब है ये चाँद
वैसे तो मैंने चाँद को
हर रोज तिल तिल टूटते हुवे देखा है
कभी खुदसे तो कभी
दुसरो से रुठते हुवे देखा है
शायद उसकी उम्मीद
उसे फिर ले आती है
कभी उसे
तो कभी मुझे रुलाती है
शायद..... शायद
मेरी उम्मीदों का चाँद भी
कुछ इस कदर ही
बनता बिखरता होगा
कभी खुद रोता तो
कभी मुझे रुलाता होगा
बारिश
जिंदगी भर झुलसता ही रहा
कभी सूरज की अगन से
तो कभी मन की तपन से
चार दिनों के लिए आई थी तुम बारिश बन के
अब वही यादें
आंसू बन कर
मेरी आँखों को भीगा रहे है
कभी सूरज की अगन से
तो कभी मन की तपन से
चार दिनों के लिए आई थी तुम बारिश बन के
अब वही यादें
आंसू बन कर
मेरी आँखों को भीगा रहे है
Sunday, May 15, 2011
खुदकुशी
खुदकुशी
जिंदगी में कई ब़ार सोचा है की
ख़ुदकुशी कर लू
इस तरह घुट घुट के मरने से तो अच्छा है
एक ही ब़ार में खुद को मुक्त कर लू
पर फिर दिखता है
वो चेहरा जिसने मुझे बांध रखा है
या वो सपने जिन्होंने
ये दिल थाम रखा है
अब भी उम्मीद है
तुमसे मिलने की
जानता हु ये
मृग मरीचिका है
पर कुछ और जीने का
ये बहाना बना रखा है
हर रोज सांसों को बची हुई
रेजगारी की तरह खर्च कर रहा हु
और हर सुबह ऊपर वाले साहूकार से
नया कर्ज मांग रहा हु
जानता हु की ये क़र्ज़ चुका ना पाउँगा
और किसी दिवालिये की तरह
जिंदगी के बाज़ार से उठ जाऊंगा
पर हर रोज जीतने की उम्मीद में नया दाव लगा रहा हु
कभी खुद को तो कभी जिंदगी को आजमां रहा हु
एक गुजारिश है तुझसे
इसके पहले की साहूकार अपना हिसाब मांग ले
मुझसे एक ब़ार मिल जा
ताकि मुझे ख़ुदकुशी से पहले ही
मुक्ति मिल जाये
जिंदगी में कई ब़ार सोचा है की
ख़ुदकुशी कर लू
इस तरह घुट घुट के मरने से तो अच्छा है
एक ही ब़ार में खुद को मुक्त कर लू
पर फिर दिखता है
वो चेहरा जिसने मुझे बांध रखा है
या वो सपने जिन्होंने
ये दिल थाम रखा है
अब भी उम्मीद है
तुमसे मिलने की
जानता हु ये
मृग मरीचिका है
पर कुछ और जीने का
ये बहाना बना रखा है
हर रोज सांसों को बची हुई
रेजगारी की तरह खर्च कर रहा हु
और हर सुबह ऊपर वाले साहूकार से
नया कर्ज मांग रहा हु
जानता हु की ये क़र्ज़ चुका ना पाउँगा
और किसी दिवालिये की तरह
जिंदगी के बाज़ार से उठ जाऊंगा
पर हर रोज जीतने की उम्मीद में नया दाव लगा रहा हु
कभी खुद को तो कभी जिंदगी को आजमां रहा हु
एक गुजारिश है तुझसे
इसके पहले की साहूकार अपना हिसाब मांग ले
मुझसे एक ब़ार मिल जा
ताकि मुझे ख़ुदकुशी से पहले ही
मुक्ति मिल जाये
Monday, May 9, 2011
रिश्ता
मेरा,
जिंदगी और दर्द से अजीब सा रिश्ता है
जिंदगी ने मुझे दर्द दिया
और अब
दर्द मुझसे जिंदगी ले लेगा
जिंदगी और दर्द से अजीब सा रिश्ता है
जिंदगी ने मुझे दर्द दिया
और अब
दर्द मुझसे जिंदगी ले लेगा
Sunday, May 8, 2011
वो एक बहती हुई नदी
वो एक बहती हुई नदी
बिलकुल मेरी जिंदगी के मानिंद
वो एक बहती हुई नदी
अविरत - अविचल अपने गंतव्य की और बढती हुई
जैसे किसी से मिलने की आस में
दौड़ रही है वो प्यासी नदी
लहराती बलखाती अपने ही मस्ती में बढती हुई
मानो सूरज का आना और जाना उसने देखा ना हो
कभी एकदम शांत और सोच में डूबी हुई
तो कभी विकराल रूप धारण करके फुफकारती हुई
कभी ख़ुशी में आ के सबके साथ अठखेलिया करती
और कभी गुस्से में उफन के सबको मिटाने को दौड़ती
कभी सबको अपने आगोश में लेती
तो कभी अपने आप में सिमट के ख़ामोशी से बहती हुई
वो एक बहती हुई नदी
बिलकुल मेरी जिंदगी के मानिंद
दोनों किनारों के बिच में बहती हुई
जैसे दोहरी जिंदगी जी रही हो
बिलकुल मेरी जिंदगी के मानिंद
अपने आप में उलझी हुई
थोड़ी सी खोई हुई
कुछ अलसाई सी
थोड़ी सी सोई हुई
कभी अचानक जागती सी
थोड़ी बोखलाई सी
पर एकदम अकेली सी
वो एक बहती हुई नदी
बिलकुल मेरी जिंदगी के मानिंद
बिलकुल मेरी जिंदगी के मानिंद
वो एक बहती हुई नदी
अविरत - अविचल अपने गंतव्य की और बढती हुई
जैसे किसी से मिलने की आस में
दौड़ रही है वो प्यासी नदी
लहराती बलखाती अपने ही मस्ती में बढती हुई
मानो सूरज का आना और जाना उसने देखा ना हो
कभी एकदम शांत और सोच में डूबी हुई
तो कभी विकराल रूप धारण करके फुफकारती हुई
कभी ख़ुशी में आ के सबके साथ अठखेलिया करती
और कभी गुस्से में उफन के सबको मिटाने को दौड़ती
कभी सबको अपने आगोश में लेती
तो कभी अपने आप में सिमट के ख़ामोशी से बहती हुई
वो एक बहती हुई नदी
बिलकुल मेरी जिंदगी के मानिंद
दोनों किनारों के बिच में बहती हुई
जैसे दोहरी जिंदगी जी रही हो
बिलकुल मेरी जिंदगी के मानिंद
अपने आप में उलझी हुई
थोड़ी सी खोई हुई
कुछ अलसाई सी
थोड़ी सी सोई हुई
कभी अचानक जागती सी
थोड़ी बोखलाई सी
पर एकदम अकेली सी
वो एक बहती हुई नदी
बिलकुल मेरी जिंदगी के मानिंद
Tuesday, May 3, 2011
क़र्ज़
एक कोशिश है तेरी यादों का क़र्ज़ मेरे आंसुओ से चुकाने की
सिर्फ एक कोशिश ही है कामयाबी की उम्मीद नहीं
वैसे भी मुझे पता है मै तेरा क़र्ज़ ना उतार पाउँगा
और ये भी चाहता हु की ताउम्र तेरा कर्जदार रहू
तेरी हंसी तेरी आँखें उनकी यादें बड़ी अनमोल है
जिंदगी भी लुटा दू एक कतरा ना चुका पाउँगा
मेरे इंतजार को रश्क है उस मल्लाह से
जो किनारे पे करता है इंतजार लहरों का
तकलीफ मुझे तेरे इंतजार से नहीं
डरता हु कही सांस दगा ना दे जाये
सिर्फ एक तेरा हक है मेरी जिंदगी पे
या तो इसे अपना ले
या फिर
कर दे रिहा इसे अपनी कैद से
सिर्फ एक कोशिश ही है कामयाबी की उम्मीद नहीं
वैसे भी मुझे पता है मै तेरा क़र्ज़ ना उतार पाउँगा
और ये भी चाहता हु की ताउम्र तेरा कर्जदार रहू
तेरी हंसी तेरी आँखें उनकी यादें बड़ी अनमोल है
जिंदगी भी लुटा दू एक कतरा ना चुका पाउँगा
मेरे इंतजार को रश्क है उस मल्लाह से
जो किनारे पे करता है इंतजार लहरों का
तकलीफ मुझे तेरे इंतजार से नहीं
डरता हु कही सांस दगा ना दे जाये
सिर्फ एक तेरा हक है मेरी जिंदगी पे
या तो इसे अपना ले
या फिर
कर दे रिहा इसे अपनी कैद से
Monday, April 25, 2011
खानाबदोश
मानो तो ये जिंदगी मस्त है न मानो तो पस्त है
हर कदम पे तूफान है तो उसे पार करने की ताकत भी है
हर अगले मोड़ पे धोका है तो
कभी कभी ठंडी हवा का झोका भी है
कभी फाकों में भी मस्ती का आलम है
तो कभी भरे पेट भी किसी बात का गम है
कभी यारों का साथ है
और कभी दुश्मनों की बारात है
वैसे तो ये जिंदगी का दस्तूर है
पर शायद ये बेवजह ही मगरूर है
खैर जिंदगी तो जिंदगी है
इसपे मरना मेरी बंदगी है
शायद इसकी बेरुखी मेरी जान लेगी
या फिर
इसकी चाहत में मै दम तोडूंगा
हर कदम पे तूफान है तो उसे पार करने की ताकत भी है
हर अगले मोड़ पे धोका है तो
कभी कभी ठंडी हवा का झोका भी है
कभी फाकों में भी मस्ती का आलम है
तो कभी भरे पेट भी किसी बात का गम है
कभी यारों का साथ है
और कभी दुश्मनों की बारात है
वैसे तो ये जिंदगी का दस्तूर है
पर शायद ये बेवजह ही मगरूर है
खैर जिंदगी तो जिंदगी है
इसपे मरना मेरी बंदगी है
शायद इसकी बेरुखी मेरी जान लेगी
या फिर
इसकी चाहत में मै दम तोडूंगा
Sunday, April 17, 2011
रोटी
बदहवासी की हालत में
बेतहाशा भागता हुवा वो
कभी आगे तो कभी पीछे देखता हुवा
हर बार लगने वाली ठोकरों से खुद को संभालता हुवा
और पीछे भागने वाली भीड़ से खुद को बचाता हुवा
भीड़ कभी गालिया निकालती तो कभी
पत्थर उछालती
अपने उन्माद को और बढाती हुई
धीरे धीरे भीड़ नजदीक आने लगी
अब उसका भी दम फूलने लगा
जल्दी ही भीड़ ने उसको दबोच लिया
वो निचे था और जनता उसके ऊपर
बड़ी मुश्किल से जतन की हुई
हाथ की रोटी
मिटटी में मिल चुकी थी
और साथ ही में
मिल गयी थी मिटटी में
उसकी भूक
और
आँख से गिरते हुवे आंसू
बेतहाशा भागता हुवा वो
कभी आगे तो कभी पीछे देखता हुवा
हर बार लगने वाली ठोकरों से खुद को संभालता हुवा
और पीछे भागने वाली भीड़ से खुद को बचाता हुवा
भीड़ कभी गालिया निकालती तो कभी
पत्थर उछालती
अपने उन्माद को और बढाती हुई
धीरे धीरे भीड़ नजदीक आने लगी
अब उसका भी दम फूलने लगा
जल्दी ही भीड़ ने उसको दबोच लिया
वो निचे था और जनता उसके ऊपर
बड़ी मुश्किल से जतन की हुई
हाथ की रोटी
मिटटी में मिल चुकी थी
और साथ ही में
मिल गयी थी मिटटी में
उसकी भूक
और
आँख से गिरते हुवे आंसू
Tuesday, April 12, 2011
काफी जिद्दी सी मेरी जिंदगी
बड़ी अजीब है मेरी जिंदगी
कभी हसाती कभी रुलाती
कभी खुद रूठती
तो कभी मुझे सताती
काफी जिद्दी सी मेरी जिंदगी
कभी सूरज में तपती
तो कभी बारिश में भीगती
कभी शहद से भी मीठी तो
कभी समंदर से भी नमकीन मेरी जिंदगी
काफी जिद्दी सी मेरी जिंदगी
कभी बेतहाशा दौड़ती
और कभी मुझे दौड़ाती
अपने नखरो से मुझे
लुभाती ये जिंदगी
काफी जिद्दी सी मेरी जिंदगी
कभी हसाती कभी रुलाती
कभी खुद रूठती
तो कभी मुझे सताती
काफी जिद्दी सी मेरी जिंदगी
कभी सूरज में तपती
तो कभी बारिश में भीगती
कभी शहद से भी मीठी तो
कभी समंदर से भी नमकीन मेरी जिंदगी
काफी जिद्दी सी मेरी जिंदगी
कभी बेतहाशा दौड़ती
और कभी मुझे दौड़ाती
अपने नखरो से मुझे
लुभाती ये जिंदगी
काफी जिद्दी सी मेरी जिंदगी
Sunday, April 10, 2011
और फिर खुद को खत्म कर लूँगा
फिर एक दिन तमाम हुवा
और तेरी चाहत को पाने में
मै फिर नाकाम हुवा
रोज की तरह
मेरी आरजू तेरी
बेरुखी की वजह से
तड़पती रही
रोज की तरह
सूरज का आना और
चाँद के आने तक रुकना
ऐसा लगता है
मानो मेरे अकेलेपन का
अहसास उसे भी हो चुका है
तुझे शायद लगे ना लगे
पर मुझे पता है की
ये पल जैसे
तेजाब की बुँदे
बन कर मेरे
वजूद को जला रहे है
पर मै हर रोज आऊंगा
अपने आप को जलाऊंगा
कोई तो दिन होगा जब
जब तुझे मेरी याद आएगी
मेरे आंसू
मेरी मुहोब्बत
तुझे जलाएगी
और अगर तू समझ ना पाई
तो मै समझ लूँगा
सिर्फ और सिर्फ एक ब़ार
तुझे याद करूँगा
और फिर खुद को
खत्म कर लूँगा
और तेरी चाहत को पाने में
मै फिर नाकाम हुवा
रोज की तरह
मेरी आरजू तेरी
बेरुखी की वजह से
तड़पती रही
रोज की तरह
सूरज का आना और
चाँद के आने तक रुकना
ऐसा लगता है
मानो मेरे अकेलेपन का
अहसास उसे भी हो चुका है
तुझे शायद लगे ना लगे
पर मुझे पता है की
ये पल जैसे
तेजाब की बुँदे
बन कर मेरे
वजूद को जला रहे है
पर मै हर रोज आऊंगा
अपने आप को जलाऊंगा
कोई तो दिन होगा जब
जब तुझे मेरी याद आएगी
मेरे आंसू
मेरी मुहोब्बत
तुझे जलाएगी
और अगर तू समझ ना पाई
तो मै समझ लूँगा
सिर्फ और सिर्फ एक ब़ार
तुझे याद करूँगा
और फिर खुद को
खत्म कर लूँगा
Friday, April 8, 2011
जैसा की अक्सर होता है
जैसा की अक्सर होता है
कल भी पूरी रात मै सो न सका
कोशिश करता रहा
सपने देखने की
पर उसके लिए
नींद का आना भी तो जरुरी है ना
और वो तो जैसे मुझसे नाराज हो गयी थी
बिलकुल तुम्हारी तरह
मेरा उसको मनाने का भी कोई फायदा नहीं हो रहा था
वो भी रूठी हुवी थी
बिलकुल तुम्हारी तरह
कुछ देर बाद समझ में आया
नींद ना आने की वजह
उसकी नाराजगी नहीं
बल्कि तुम्हारी मौजूदगी है
वैसे तुम्हारी मौजूदगी के लिए
तुम्हारा होना जरुरी नहीं होता
तुम हर वक़्त मेरे पास ही होती हो
नहीं तुम तो........
तुम तो जैसे मेरे वजूद का एक हिस्सा हो
या फिर शायद मै तुम्हारे वजूद का हिस्सा हु
खैर .........
उलझ गया था अपने आप से
तय नहीं कर पा रहा था
की तुम्हारे नर्म हाथों पे लगी ताजी मेहंदी की खुशबु मुझे दीवाना बनाती है या
फिर तुम्हारे गेसुओ में लिपटे हुवो फूलों की महक
तुम्हारी हंसी
मेरे पागलपन की वजह है या
तुम्हारी आँखें
एक बात तो जरुर है
कभी तुम
कभी तुम्हारी हंसी
कभी गीली मेहँदी की खुशबु
कभी जुल्फों की महक
कभी तुम्हारी आँखों का जादू
एक एक करके मुझे सताते है
और
रोज मुझे जगाते है
बस अब
मेरी तुमसे एक ही गुजारिश है
एक ब़ार आने की
थोडा वक़्त बिताने की
वादा करता हु
ज्यादा वक़्त नहीं लूँगा
तुम्हारे आगोश में जाते ही
हमेशा के लिए सो जाऊंगा
कल भी पूरी रात मै सो न सका
कोशिश करता रहा
सपने देखने की
पर उसके लिए
नींद का आना भी तो जरुरी है ना
और वो तो जैसे मुझसे नाराज हो गयी थी
बिलकुल तुम्हारी तरह
मेरा उसको मनाने का भी कोई फायदा नहीं हो रहा था
वो भी रूठी हुवी थी
बिलकुल तुम्हारी तरह
कुछ देर बाद समझ में आया
नींद ना आने की वजह
उसकी नाराजगी नहीं
बल्कि तुम्हारी मौजूदगी है
वैसे तुम्हारी मौजूदगी के लिए
तुम्हारा होना जरुरी नहीं होता
तुम हर वक़्त मेरे पास ही होती हो
नहीं तुम तो........
तुम तो जैसे मेरे वजूद का एक हिस्सा हो
या फिर शायद मै तुम्हारे वजूद का हिस्सा हु
खैर .........
उलझ गया था अपने आप से
तय नहीं कर पा रहा था
की तुम्हारे नर्म हाथों पे लगी ताजी मेहंदी की खुशबु मुझे दीवाना बनाती है या
फिर तुम्हारे गेसुओ में लिपटे हुवो फूलों की महक
तुम्हारी हंसी
मेरे पागलपन की वजह है या
तुम्हारी आँखें
एक बात तो जरुर है
कभी तुम
कभी तुम्हारी हंसी
कभी गीली मेहँदी की खुशबु
कभी जुल्फों की महक
कभी तुम्हारी आँखों का जादू
एक एक करके मुझे सताते है
और
रोज मुझे जगाते है
बस अब
मेरी तुमसे एक ही गुजारिश है
एक ब़ार आने की
थोडा वक़्त बिताने की
वादा करता हु
ज्यादा वक़्त नहीं लूँगा
तुम्हारे आगोश में जाते ही
हमेशा के लिए सो जाऊंगा
Monday, April 4, 2011
फासले
फासले
कुछ चाहे
कुछ अनचाहे
धीरे धीरे बढ़ते हुवे
तुम्हारे मेरे दरमियान
और मेरी सांसो के बिच भी
कई ब़ार मै तय नहीं कर पाता हू
की सांस लेना ज्यादा मुश्किल है
या फिर तुमसे मिलने की कोशिश करना
वैसे एक बात तो तय है
अगर मै तुमसे नहीं मिल सकता तो
मुझे सांस लेने की भी जरुरत नहीं है
पता नहीं अब कितना वक़्त बचा है
सोचता हु सांस लेने से बेहतर है
एक ब़ार फिर तुमसे मिलने की कोशिश ही कर लू
इस उम्मीद के साथ की शायद
आंखरी सांस तुम्हारी बाँहों में ले लू
और सारे फासले खत्म हो जाये
कुछ चाहे
कुछ अनचाहे
धीरे धीरे बढ़ते हुवे
तुम्हारे मेरे दरमियान
और मेरी सांसो के बिच भी
कई ब़ार मै तय नहीं कर पाता हू
की सांस लेना ज्यादा मुश्किल है
या फिर तुमसे मिलने की कोशिश करना
वैसे एक बात तो तय है
अगर मै तुमसे नहीं मिल सकता तो
मुझे सांस लेने की भी जरुरत नहीं है
पता नहीं अब कितना वक़्त बचा है
सोचता हु सांस लेने से बेहतर है
एक ब़ार फिर तुमसे मिलने की कोशिश ही कर लू
इस उम्मीद के साथ की शायद
आंखरी सांस तुम्हारी बाँहों में ले लू
और सारे फासले खत्म हो जाये
वादे
हर ब़ार एक नयी उम्मीद लेकर आता हु तेरे शहर में
की शायद इस ब़ार तो तुझसे मुलाकात हो जाये
और फिर हमेशा की तरह मायूस हो के चला जाता हु
अगली ब़ार मिलने का सपना देखते हुवे
जानता हु फिर भी हर ब़ार उम्मीद लगाता हु
और हर ब़ार वो ही भूल करता हु
तेरे वादे पे ऐतबार करने की
की शायद इस ब़ार तो तुझसे मुलाकात हो जाये
और फिर हमेशा की तरह मायूस हो के चला जाता हु
अगली ब़ार मिलने का सपना देखते हुवे
जानता हु फिर भी हर ब़ार उम्मीद लगाता हु
और हर ब़ार वो ही भूल करता हु
तेरे वादे पे ऐतबार करने की
Sunday, April 3, 2011
मैंने देखा था एक ख्वाब
मैंने देखा था एक ख्वाब
झील सी आँखों का
खनकती हंसी का
शहद सी बोली का
अब भी रखा है उसे सहेज के
अपने तकिये के निचे
मन के किसी कोने में
यादों की चौकट में
मेरी सांसो में
मेरी धड़कन में
तुम्हारी हंसी में
मेरे आँसुओ में
देखता हु उसे निकाल के
जब भी होता हु अकेला
या फिर
जब होना चाहता हु अकेला,
यादों में तुम्हारी खोने के लिए
झील सी आँखों का
खनकती हंसी का
शहद सी बोली का
अब भी रखा है उसे सहेज के
अपने तकिये के निचे
मन के किसी कोने में
यादों की चौकट में
मेरी सांसो में
मेरी धड़कन में
तुम्हारी हंसी में
मेरे आँसुओ में
देखता हु उसे निकाल के
जब भी होता हु अकेला
या फिर
जब होना चाहता हु अकेला,
यादों में तुम्हारी खोने के लिए
Wednesday, March 9, 2011
मैंने कई बार चाहा है
मैंने कई बार चाहा है
खुद ही खुद को खत्म करना
और कोशिश भी की है
नहीं मै आत्महत्या की बात नहीं कर रहा हु
जानता हु वो बुजदिलो का काम है
मै तो बात कर रहा हु
शायद कही उससे आगे
जब जरुरत होती है
अपने विचारो का गला घोटने की
अपनी अभिव्यक्ति को मिटाने की
जानता हु की वो सबसे बड़ी हार है
शायद वो सब करना भी मेरी मज़बूरी थी
या अब भी है
या फिर समझोता था
कुछ खुद से और कुछ ज़माने से
कुछ सांसे उधार लेने का
ताकि जिंदगी चला सकू
अगली लढाई के लिए
जो मै लढ़ रहा हु
ताकि मेरी अगली नस्ल
साँस ले सके
और उन्हें जरुरत न पड़े
लढने की
अपने आप से
और इस समाज से
छोटी छोटी बातों के लिए
और गिरना न पड़े
अपनी ही नजरो में
जैसे मै गिरा हु
कई बार
फिर से उठने के लिए
खुद ही खुद को खत्म करना
और कोशिश भी की है
नहीं मै आत्महत्या की बात नहीं कर रहा हु
जानता हु वो बुजदिलो का काम है
मै तो बात कर रहा हु
शायद कही उससे आगे
जब जरुरत होती है
अपने विचारो का गला घोटने की
अपनी अभिव्यक्ति को मिटाने की
जानता हु की वो सबसे बड़ी हार है
शायद वो सब करना भी मेरी मज़बूरी थी
या अब भी है
या फिर समझोता था
कुछ खुद से और कुछ ज़माने से
कुछ सांसे उधार लेने का
ताकि जिंदगी चला सकू
अगली लढाई के लिए
जो मै लढ़ रहा हु
ताकि मेरी अगली नस्ल
साँस ले सके
और उन्हें जरुरत न पड़े
लढने की
अपने आप से
और इस समाज से
छोटी छोटी बातों के लिए
और गिरना न पड़े
अपनी ही नजरो में
जैसे मै गिरा हु
कई बार
फिर से उठने के लिए
Tuesday, March 1, 2011
परीक्षा
जब अक्सर चलने लगती है धुल भरी आंधिया
और गिरने लगते है पेड़ो से अनवरत पत्ते,
भरी दोपहरी में आती है
पत्तो के पीछे से कोयल की आवाज,
या फिर २ पंक्तिया पढने के बाद ही
अक्षर होने लगते है धुंधले !
जब साइकिल के चक्के करने लगते है
दोस्ती सड़क के डामर से,
और आते जाते मन बहका जाती है
पकी इमली की खुशबु ,
कभी सिर्फ सुनाई देती है
कुल्फी वाले के घंटी की आवाज
या फिर...........
पानी पीते ही लगने लगती है प्यास
तो ऐसा लगता है
मानो पेपर बिघड गया हो
और गिरने लगते है पेड़ो से अनवरत पत्ते,
भरी दोपहरी में आती है
पत्तो के पीछे से कोयल की आवाज,
या फिर २ पंक्तिया पढने के बाद ही
अक्षर होने लगते है धुंधले !
जब साइकिल के चक्के करने लगते है
दोस्ती सड़क के डामर से,
और आते जाते मन बहका जाती है
पकी इमली की खुशबु ,
कभी सिर्फ सुनाई देती है
कुल्फी वाले के घंटी की आवाज
या फिर...........
पानी पीते ही लगने लगती है प्यास
तो ऐसा लगता है
मानो पेपर बिघड गया हो
Monday, February 14, 2011
जिंदगी एक सराय है
जिंदगी एक सराय है और मै एक मुसाफिर
भटक रहा हु यहाँ से वहा जिंदगी की तलाश में
जंगल, परबत, नदी, नाले, खेत, खलिहान
गाँव, शहर, समंदर, रेगिस्तान,
कभी अपनों की छाव में
तो कभी परायो के गाँव में
जहा भी मिला वहा डेरा जमाया
कभी खुद से पकाया तो कभी दूसरो ने खिलाया
कभी पेड़ो के निचे तो कभी तालाब के किनारे
धरती पे पड़ा आसमान को ओढा
कभी अँधेरी रातो में जागा
तो कभी चांदनी रातो से भागा
कभी मेले में तो कभी अकेले में
हरवक्त खुद को ढूंडा पर
शायद ही कभी खुद को पाया
जिंदगी एक सराय है और मै एक मुसाफिर
भटक रहा हु यहाँ से वहा जिंदगी की तलाश में
जब भी देखा तो मुझे खुदमे
उसका ही साया नजर आया
मंदिर, मस्जिद, गिरजा, गुरूद्वारे
हर जगह ढूंडा उसको मारे मारे
किसीने कहा उसने देखा है उसे
तो किसी ने उसका पता बताया
मैंने तो उसे पाया है हर उस जगह पे....
छोटे भाई को गोद में उठाके गुब्बारे बेचती उस छोटी लड़की में
खेत में हल चलाके थक के मेढ़ पे बैठे उस किसान में
जंगल में मवेशियों को चराते हुवे उस चरवाहे में
माँ के हाथ की बनी हुवी रोटी में
दोस्त के गुस्से में
पैर में चुभे हुवे कांटे में
मधुमक्खी के डंक में
अकेली नाव में बैठे उस मल्लाह के गाने में
पानी में पड़ी चाँद की परछाई में
तेरी आँखों में तेरी हंसी में
शायद..... मैंने पाया है या फिर खोया है......
जिंदगी को जिंदगी में
भटक रहा हु यहाँ से वहा जिंदगी की तलाश में
जंगल, परबत, नदी, नाले, खेत, खलिहान
गाँव, शहर, समंदर, रेगिस्तान,
कभी अपनों की छाव में
तो कभी परायो के गाँव में
जहा भी मिला वहा डेरा जमाया
कभी खुद से पकाया तो कभी दूसरो ने खिलाया
कभी पेड़ो के निचे तो कभी तालाब के किनारे
धरती पे पड़ा आसमान को ओढा
कभी अँधेरी रातो में जागा
तो कभी चांदनी रातो से भागा
कभी मेले में तो कभी अकेले में
हरवक्त खुद को ढूंडा पर
शायद ही कभी खुद को पाया
जिंदगी एक सराय है और मै एक मुसाफिर
भटक रहा हु यहाँ से वहा जिंदगी की तलाश में
जब भी देखा तो मुझे खुदमे
उसका ही साया नजर आया
मंदिर, मस्जिद, गिरजा, गुरूद्वारे
हर जगह ढूंडा उसको मारे मारे
किसीने कहा उसने देखा है उसे
तो किसी ने उसका पता बताया
मैंने तो उसे पाया है हर उस जगह पे....
छोटे भाई को गोद में उठाके गुब्बारे बेचती उस छोटी लड़की में
खेत में हल चलाके थक के मेढ़ पे बैठे उस किसान में
जंगल में मवेशियों को चराते हुवे उस चरवाहे में
माँ के हाथ की बनी हुवी रोटी में
दोस्त के गुस्से में
पैर में चुभे हुवे कांटे में
मधुमक्खी के डंक में
अकेली नाव में बैठे उस मल्लाह के गाने में
पानी में पड़ी चाँद की परछाई में
तेरी आँखों में तेरी हंसी में
शायद..... मैंने पाया है या फिर खोया है......
जिंदगी को जिंदगी में
Friday, February 11, 2011
अपने हिस्से का सूरज
घर में ही रह पाता काश मै
बेघर हो गया रोटी की तलाश में
चाहता था लाना साथ में अपनी जमीं भी
पर सिर्फ ला पाया मुट्ठी भर आकाश मै
थोड़ी सी यादें भी है कुछ अच्छी कुछ बुरी
थोडा दर्द और उसके काफी ज्यादा अहसास भी
और लाया हु अपने हिस्से का सूरज
जिसकी तपन में जला रहा हु अपने अहसास मै
बेघर हो गया रोटी की तलाश में
चाहता था लाना साथ में अपनी जमीं भी
पर सिर्फ ला पाया मुट्ठी भर आकाश मै
थोड़ी सी यादें भी है कुछ अच्छी कुछ बुरी
थोडा दर्द और उसके काफी ज्यादा अहसास भी
और लाया हु अपने हिस्से का सूरज
जिसकी तपन में जला रहा हु अपने अहसास मै
Sunday, February 6, 2011
पहाड़ो में रात कुछ जल्दी आती है
आज कुछ यु ही भटकता रहा दिन भर पहाडियों में
मै भी और मेरा मन भी
चलता रहा उन पगडंडियों पर जो शायद बनी है
चरवाहों के रोज एक ही राह पे चलने से
शायद भेड़ो के साथ रह रह के वो भी एक ही राह चलने लगे है
अब तो लगता है मै भी कुछ उसी राह पे चल रहा हु
मै हर उस राह पर चला जो मुझे तुम्हारी ओर ले जाती थी
या फिर शायद मेरी हर राह तुम्हारी ओर ही जाती है
कई बार मै यु ही गिनता रहा देवदार के उन दरख्तों को
जो अब भी अविचल खड़े है ओर लगता है सदियों तक ऐसे ही खड़े रहेंगे
मुझे रश्क हो आया उनकी दीवानगी पे
पता नहीं किसका इंतजार कर रहे है वो
देवदार मुझे बड़ी अजीब निगाहों से देखते रहे
जैसे उन्हें भी मेरी दीवानगी समझ में आ रही हो
पता नहीं कब तक यु ही सोचते हुवे भटकता रहा
या भटकते हुवे सोचता रहा
सुनाई दी जब दूर से गिरजे की घंटिया तब पाया
की शाम के धुंधलके में साये लम्बे होने लगे है
ओर किसी पहाड़ी के ऊपर उठ रही है धुवे की लकीरे
इसके पहले की चाँद आकर मुझसे सवाल पूछे
मुझे अब वापस लौट जाना चाहिए
लगता है शायद अब तुम भी नहीं आओगे
वैसे गलती तुम्हारी नहीं है
पहाड़ो में रात कुछ जल्दी आती है
मै भी और मेरा मन भी
चलता रहा उन पगडंडियों पर जो शायद बनी है
चरवाहों के रोज एक ही राह पे चलने से
शायद भेड़ो के साथ रह रह के वो भी एक ही राह चलने लगे है
अब तो लगता है मै भी कुछ उसी राह पे चल रहा हु
मै हर उस राह पर चला जो मुझे तुम्हारी ओर ले जाती थी
या फिर शायद मेरी हर राह तुम्हारी ओर ही जाती है
कई बार मै यु ही गिनता रहा देवदार के उन दरख्तों को
जो अब भी अविचल खड़े है ओर लगता है सदियों तक ऐसे ही खड़े रहेंगे
मुझे रश्क हो आया उनकी दीवानगी पे
पता नहीं किसका इंतजार कर रहे है वो
देवदार मुझे बड़ी अजीब निगाहों से देखते रहे
जैसे उन्हें भी मेरी दीवानगी समझ में आ रही हो
पता नहीं कब तक यु ही सोचते हुवे भटकता रहा
या भटकते हुवे सोचता रहा
सुनाई दी जब दूर से गिरजे की घंटिया तब पाया
की शाम के धुंधलके में साये लम्बे होने लगे है
ओर किसी पहाड़ी के ऊपर उठ रही है धुवे की लकीरे
इसके पहले की चाँद आकर मुझसे सवाल पूछे
मुझे अब वापस लौट जाना चाहिए
लगता है शायद अब तुम भी नहीं आओगे
वैसे गलती तुम्हारी नहीं है
पहाड़ो में रात कुछ जल्दी आती है
Saturday, February 5, 2011
मन फिर भागता है बचपन की ओर
मन फिर भागता है बचपन की ओर
वो गली में खेलना गिल्ली डंडा और कंचे
या फिर भागते रहना एक दुसरे के पीछे
बार बार गिरना और घुटनों का फूटना
और तकलीफ दर्द की नहीं सिर्फ माँ के डाटने की
अँधेरा गहराते ही डर सताता था अँधेरे का नहीं
घर में पिताजी पढाई के बारे में पूछेंगे उसका
बड़ा अच्छा था वो बचपन जब साथी
सब कुछ लगते थे.... शायद
माँ बाप से भी बढ़कर क्योंकि
वो नहीं पूछते थे पढाई के बारे में
और शायद ही किसी को तकलीफ़ हुई हो
किसी और के नंबर १ होने की
ये तो अब हम जलते है एक दूसरे से एक दूसरे की
तरक्की से और उसे professional approach कहते है
अब भी याद है गर्मियों की रात
जब आता था वो कुल्फी वाला
मटके में लेकर कुल्फी जिसके चारो और होता था
लपेटा हूवा वो लाल कपड़ा
और लालटेन की रोशनी से दमकता हुवा उसका चेहरा
बड़े प्यार से हमें कुल्फी खिलाता था वो
पता नहीं जिंदगी में बचपन सिर्फ एक ब़ार क्यों
आता है और वो भी सिर्फ थोड़े समय के लिए
मन फिर भागता है बचपन की ओर
वो गली में खेलना गिल्ली डंडा और कंचे
या फिर भागते रहना एक दुसरे के पीछे
बार बार गिरना और घुटनों का फूटना
और तकलीफ दर्द की नहीं सिर्फ माँ के डाटने की
अँधेरा गहराते ही डर सताता था अँधेरे का नहीं
घर में पिताजी पढाई के बारे में पूछेंगे उसका
बड़ा अच्छा था वो बचपन जब साथी
सब कुछ लगते थे.... शायद
माँ बाप से भी बढ़कर क्योंकि
वो नहीं पूछते थे पढाई के बारे में
और शायद ही किसी को तकलीफ़ हुई हो
किसी और के नंबर १ होने की
ये तो अब हम जलते है एक दूसरे से एक दूसरे की
तरक्की से और उसे professional approach कहते है
अब भी याद है गर्मियों की रात
जब आता था वो कुल्फी वाला
मटके में लेकर कुल्फी जिसके चारो और होता था
लपेटा हूवा वो लाल कपड़ा
और लालटेन की रोशनी से दमकता हुवा उसका चेहरा
बड़े प्यार से हमें कुल्फी खिलाता था वो
पता नहीं जिंदगी में बचपन सिर्फ एक ब़ार क्यों
आता है और वो भी सिर्फ थोड़े समय के लिए
मन फिर भागता है बचपन की ओर
Friday, February 4, 2011
कुछ कही कुछ अनकही
गर अब तुम्हारे मिजाज ठीक हो और तुम्हे चंद लम्हों की फुरसत हो
तो जरा हमें भी याद कर लेना...हम तो तुम्हारी याद में खुद को भुलाये बैठे है
पहले खुद के बारे में सोचने के लिए वक़्त नहीं था
और अब खुद के बारे में सोचने में डर लगता है
वैसे अब मुझे समंदर किनारे चलने से भी डर लगता है
गिरते वक़्त थामने के लिए तुम्हारा हाथ जो नहीं है
पर फिर मुझे इस बात की परवाह भी नहीं की जिंदगी के कितने लम्हे बचे है
आरजू है की एक बार सिर्फ एक बार तुम्हारी आँखों को देख सकू
एक शहर जो मेरे लिए अजनबी था उसे तुम्हारी मौजूदगी ने अपना बना दिया
अब जब तुम ही दूर हो गए हो तो क्या फर्क पड़ता है मै किसी भी शहर में रहू
माना की अब तुम्हारे पास मेरे लिए वक़्त नहीं और अब तुम्हे मेरी जरुरत भी नहीं
पर साथ बिताये लम्हों की याद तुम्हे भी आती तो होगी...सताती भी होगी
तो जरा हमें भी याद कर लेना...हम तो तुम्हारी याद में खुद को भुलाये बैठे है
पहले खुद के बारे में सोचने के लिए वक़्त नहीं था
और अब खुद के बारे में सोचने में डर लगता है
वैसे अब मुझे समंदर किनारे चलने से भी डर लगता है
गिरते वक़्त थामने के लिए तुम्हारा हाथ जो नहीं है
पर फिर मुझे इस बात की परवाह भी नहीं की जिंदगी के कितने लम्हे बचे है
आरजू है की एक बार सिर्फ एक बार तुम्हारी आँखों को देख सकू
एक शहर जो मेरे लिए अजनबी था उसे तुम्हारी मौजूदगी ने अपना बना दिया
अब जब तुम ही दूर हो गए हो तो क्या फर्क पड़ता है मै किसी भी शहर में रहू
माना की अब तुम्हारे पास मेरे लिए वक़्त नहीं और अब तुम्हे मेरी जरुरत भी नहीं
पर साथ बिताये लम्हों की याद तुम्हे भी आती तो होगी...सताती भी होगी
Monday, January 17, 2011
अगली सुबह तक
एक अकेली लम्बी उदास शाम
अंतहीन सन्नाटे से और भी लम्बी होती हुवी
और अपनी बोझिल रफ़्तार से रात की और बढती हुवी
गली में दूर दूर तक कोई नहीं
ना इस छोर पे ना ही उस छोर पे
दूर कोने के खम्बे पे जलता हुवा एक मद्धिम बल्ब
अपनी पीली बीमार रोशनी (?) से माहोल को और बीमार बनाता हुवा
गली का एक मात्र पेड़ भी अपने अकेलेपन से बचने के लिए इधर उधर देख रहा है
जैसे किसी आवारा कुत्ते को तलाश रहा हो
कभी कभी सन्नाटे को चीरती हुवी चौकीदार की सिटी या फिर
डंडे को जमीं पे पटकने की आवाज़
ये कभी दिखाई नहीं देता.... कभी भी
खुद ही के वजूद से जूझता हुवा
मानो उसका होना भी एक धोखा है
इस सन्नाटे से बचने के लिए मै लौट जाता हु अपने कमरे पे
काफी बोझिल कदमो से जैसे अपने आप को धकेल रहा हु उस सन्नाटे से दूर
पर जब कमरे के अन्दर देखता हु तो लगता है जैसे सिर्फ दृश्य बदला है माहोल नहीं
खाली कमरे के अन्दर का वो तनहा सन्नाटा गोया
बाहर के सन्नाटे से अपने वजूद को बड़ा करता हुवा
बड़ा अजीब सा कभी कभी जैसे सन्नाटा भी खाली लगता है
मानो वो भी खाली खाली महसुस कर रहा हो
अपने आप में सिमटा हुवा
खाली कमरे की खाली दीवारे
वैसे एक अकेली छिपकली है जो कभी कभी
दिवार के अकेलेपन को दूर करने की कोशिश करती है
या फिर दिवार से मिल के खुद के अकेलेपन को पता नहीं
दरवाजे के खुलने के आवाज से मै खुद ही चौक जाता हु
जैसे कही जबरदस्ती घुस रहा हु
फिर वही रोज की कोशिश दीवारों को पहचानने की
और खुद से ही अपनापन जताने की
शायद........ शायद..........
एक थकी हुई सी कोशिश खुद को बहलाने की
अगली सुबह तक खुद को उलझाने की
ताकि फिर एक बार सूरज मुझे
मदद करे खुद को पहचानने में
और ले चले एक बार फिर जिंदगी की और
जिसके इंतजार में सुबह की शाम हुई है
ये जिंदगी तमाम हुई है
अंतहीन सन्नाटे से और भी लम्बी होती हुवी
और अपनी बोझिल रफ़्तार से रात की और बढती हुवी
गली में दूर दूर तक कोई नहीं
ना इस छोर पे ना ही उस छोर पे
दूर कोने के खम्बे पे जलता हुवा एक मद्धिम बल्ब
अपनी पीली बीमार रोशनी (?) से माहोल को और बीमार बनाता हुवा
गली का एक मात्र पेड़ भी अपने अकेलेपन से बचने के लिए इधर उधर देख रहा है
जैसे किसी आवारा कुत्ते को तलाश रहा हो
कभी कभी सन्नाटे को चीरती हुवी चौकीदार की सिटी या फिर
डंडे को जमीं पे पटकने की आवाज़
ये कभी दिखाई नहीं देता.... कभी भी
खुद ही के वजूद से जूझता हुवा
मानो उसका होना भी एक धोखा है
इस सन्नाटे से बचने के लिए मै लौट जाता हु अपने कमरे पे
काफी बोझिल कदमो से जैसे अपने आप को धकेल रहा हु उस सन्नाटे से दूर
पर जब कमरे के अन्दर देखता हु तो लगता है जैसे सिर्फ दृश्य बदला है माहोल नहीं
खाली कमरे के अन्दर का वो तनहा सन्नाटा गोया
बाहर के सन्नाटे से अपने वजूद को बड़ा करता हुवा
बड़ा अजीब सा कभी कभी जैसे सन्नाटा भी खाली लगता है
मानो वो भी खाली खाली महसुस कर रहा हो
अपने आप में सिमटा हुवा
खाली कमरे की खाली दीवारे
वैसे एक अकेली छिपकली है जो कभी कभी
दिवार के अकेलेपन को दूर करने की कोशिश करती है
या फिर दिवार से मिल के खुद के अकेलेपन को पता नहीं
दरवाजे के खुलने के आवाज से मै खुद ही चौक जाता हु
जैसे कही जबरदस्ती घुस रहा हु
फिर वही रोज की कोशिश दीवारों को पहचानने की
और खुद से ही अपनापन जताने की
शायद........ शायद..........
एक थकी हुई सी कोशिश खुद को बहलाने की
अगली सुबह तक खुद को उलझाने की
ताकि फिर एक बार सूरज मुझे
मदद करे खुद को पहचानने में
और ले चले एक बार फिर जिंदगी की और
जिसके इंतजार में सुबह की शाम हुई है
ये जिंदगी तमाम हुई है
Sunday, January 16, 2011
राग
कधी तरी मी असाच रागावतो कुणावर ही
आणि मग विचार करतो
की मी का रागावलो
नंतर मला कळते की मी स्वत वरच रागावलो आहे
पण ते कळे पर्यंत उशीर झालेला असतो
कुणाला तरी काही तरी बोललो असतो
कुठे तरी काही तरी बिनसले असते
राग येतो मला माझा आणि बहुतेक तुझा ही
नाही फक्त माझाच येतो
आणि मग मी विसरायचा प्रयत्न करतो
सगळेच जे आपल्यात घडले आहे ते
आणि जे घडायचे राहून गेले ते पण
पण ते विसरता येत नाही
का ते माहित नाही
आणि मग अजून राग येतो तुझा
पण रागावतो मी माझ्यावरच
कारण तुझ्यावर अजूनही रागावता येतच नाही मला
आणि मग विचार करतो
की मी का रागावलो
नंतर मला कळते की मी स्वत वरच रागावलो आहे
पण ते कळे पर्यंत उशीर झालेला असतो
कुणाला तरी काही तरी बोललो असतो
कुठे तरी काही तरी बिनसले असते
राग येतो मला माझा आणि बहुतेक तुझा ही
नाही फक्त माझाच येतो
आणि मग मी विसरायचा प्रयत्न करतो
सगळेच जे आपल्यात घडले आहे ते
आणि जे घडायचे राहून गेले ते पण
पण ते विसरता येत नाही
का ते माहित नाही
आणि मग अजून राग येतो तुझा
पण रागावतो मी माझ्यावरच
कारण तुझ्यावर अजूनही रागावता येतच नाही मला
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