Sunday, May 15, 2011

खुदकुशी

खुदकुशी

जिंदगी में कई ब़ार सोचा है की

ख़ुदकुशी कर लू

इस तरह घुट घुट के मरने से तो अच्छा है

एक ही ब़ार में खुद को मुक्त कर लू


पर फिर दिखता है

वो चेहरा जिसने मुझे बांध रखा है

या वो सपने जिन्होंने

ये दिल थाम रखा है


अब भी उम्मीद है

तुमसे मिलने की

जानता हु ये

मृग मरीचिका है

पर कुछ और जीने का

ये बहाना बना रखा है



हर रोज सांसों को बची हुई

रेजगारी की तरह खर्च कर रहा हु

और हर सुबह ऊपर वाले साहूकार से

नया कर्ज मांग रहा हु


जानता हु की ये क़र्ज़ चुका ना पाउँगा

और किसी दिवालिये की तरह

जिंदगी के बाज़ार से उठ जाऊंगा


पर हर रोज जीतने की उम्मीद में नया दाव लगा रहा हु

कभी खुद को तो कभी जिंदगी को आजमां रहा हु



एक गुजारिश है तुझसे

इसके पहले की साहूकार अपना हिसाब मांग ले

मुझसे एक ब़ार मिल जा

ताकि मुझे ख़ुदकुशी से पहले ही

मुक्ति मिल जाये

3 comments:

  1. ज़िंदगी में यूँ निराश नहीं होना चाहिए ...मन के भावों को अभिव्यक्त करती अच्छी रचना

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  2. शुभागमन...!
    आपके हिन्दी ब्लागिंग के अभियान को सफलतापूर्वक उन्नति की राह पर बनाये रखने में मददगार 'नजरिया' ब्लाग की पोस्ट नये ब्लाग लेखकों के लिये उपयोगी सुझाव. और ऐसे ही अन्य ब्लागर्स उपयोगी लेखों के साथ ही अपने व अपने परिवार के स्वास्थ्योपयोगी जानकारियों से परिपूर्ण 'स्वास्थ्य-सुख' ब्लाग की पोस्ट बेहतर स्वास्थ्य की संजीवनी- त्रिफला चूर्ण एक बार अवश्य देखें और यदि इन दोनों ब्लाग्स में प्रस्तुत जानकारियां अपने मित्रों व परिजनों सहित आपको अपने जीवन में स्वस्थ व उन्नति की राह में अग्रसर बनाये रखने में मददगार लगे तो भविष्य की उपयोगिता के लिये इन्हें फालो भी अवश्य करें । धन्यवाद के साथ शुभकामनाओं सहित...

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  3. शुक्रिया संगीता जी

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