खुदकुशी
जिंदगी में कई ब़ार सोचा है की
ख़ुदकुशी कर लू
इस तरह घुट घुट के मरने से तो अच्छा है
एक ही ब़ार में खुद को मुक्त कर लू
पर फिर दिखता है
वो चेहरा जिसने मुझे बांध रखा है
या वो सपने जिन्होंने
ये दिल थाम रखा है
अब भी उम्मीद है
तुमसे मिलने की
जानता हु ये
मृग मरीचिका है
पर कुछ और जीने का
ये बहाना बना रखा है
हर रोज सांसों को बची हुई
रेजगारी की तरह खर्च कर रहा हु
और हर सुबह ऊपर वाले साहूकार से
नया कर्ज मांग रहा हु
जानता हु की ये क़र्ज़ चुका ना पाउँगा
और किसी दिवालिये की तरह
जिंदगी के बाज़ार से उठ जाऊंगा
पर हर रोज जीतने की उम्मीद में नया दाव लगा रहा हु
कभी खुद को तो कभी जिंदगी को आजमां रहा हु
एक गुजारिश है तुझसे
इसके पहले की साहूकार अपना हिसाब मांग ले
मुझसे एक ब़ार मिल जा
ताकि मुझे ख़ुदकुशी से पहले ही
मुक्ति मिल जाये
ज़िंदगी में यूँ निराश नहीं होना चाहिए ...मन के भावों को अभिव्यक्त करती अच्छी रचना
ReplyDeleteशुभागमन...!
ReplyDeleteआपके हिन्दी ब्लागिंग के अभियान को सफलतापूर्वक उन्नति की राह पर बनाये रखने में मददगार 'नजरिया' ब्लाग की पोस्ट नये ब्लाग लेखकों के लिये उपयोगी सुझाव. और ऐसे ही अन्य ब्लागर्स उपयोगी लेखों के साथ ही अपने व अपने परिवार के स्वास्थ्योपयोगी जानकारियों से परिपूर्ण 'स्वास्थ्य-सुख' ब्लाग की पोस्ट बेहतर स्वास्थ्य की संजीवनी- त्रिफला चूर्ण एक बार अवश्य देखें और यदि इन दोनों ब्लाग्स में प्रस्तुत जानकारियां अपने मित्रों व परिजनों सहित आपको अपने जीवन में स्वस्थ व उन्नति की राह में अग्रसर बनाये रखने में मददगार लगे तो भविष्य की उपयोगिता के लिये इन्हें फालो भी अवश्य करें । धन्यवाद के साथ शुभकामनाओं सहित...
शुक्रिया संगीता जी
ReplyDelete