Sunday, May 8, 2011

वो एक बहती हुई नदी

वो एक बहती हुई नदी
बिलकुल मेरी जिंदगी के मानिंद

वो एक बहती हुई नदी
अविरत - अविचल अपने गंतव्य की और बढती हुई

जैसे किसी से मिलने की आस में
दौड़ रही है वो प्यासी नदी

लहराती बलखाती अपने ही मस्ती में बढती हुई
मानो सूरज का आना और जाना उसने देखा ना हो

कभी एकदम शांत और सोच में डूबी हुई
तो कभी विकराल रूप धारण करके फुफकारती हुई

कभी ख़ुशी में आ के सबके साथ अठखेलिया करती
और कभी गुस्से में उफन के सबको मिटाने को दौड़ती

कभी सबको अपने आगोश में लेती
तो कभी अपने आप में सिमट के ख़ामोशी से बहती हुई

वो एक बहती हुई नदी
बिलकुल मेरी जिंदगी के मानिंद

दोनों किनारों के बिच में बहती हुई

जैसे दोहरी जिंदगी जी रही हो

बिलकुल मेरी जिंदगी के मानिंद

अपने आप में उलझी हुई

थोड़ी सी खोई हुई

कुछ अलसाई सी

थोड़ी सी सोई हुई

कभी अचानक जागती सी

थोड़ी बोखलाई सी



पर एकदम अकेली सी

वो एक बहती हुई नदी
बिलकुल मेरी जिंदगी के मानिंद

2 comments:

  1. बहुत खूब लाइने लिख दी हैं आपने...

    nice post

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  2. धन्यवाद संदीप जी

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