बस्ती जल रही थी
आग फैली थी
चारो तरफ
सिर्फ
आग
बस
आग
भड़क रही थी
हर तरफ
बस्ती में
पेट में
मन में
आग
दुःख की
गुस्से की
प्रतिशोध की
पर
ना तो वो आग
उनके आंसू सुखा पा रही थी
और
ना ही उनके आंसू
उस आग को बुझा पा रहे थे
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