तेरा मेरा हमराज ये चाँद
इस काली स्याह रात में
राह भटकता होगा चाँद
कभी तुम्हे तो कभी मुझे
याद करता होगा चाँद
कभी समंदर की लहरों में
अपने आप को खोजता होगा चाँद
तो कभी चंपा के फूलों के पीछे
आंसू बहाता होगा चाँद
तेरे मेरे जिंदगी के कितना करीब है ये चाँद
वैसे तो मैंने चाँद को
हर रोज तिल तिल टूटते हुवे देखा है
कभी खुदसे तो कभी
दुसरो से रुठते हुवे देखा है
शायद उसकी उम्मीद
उसे फिर ले आती है
कभी उसे
तो कभी मुझे रुलाती है
शायद..... शायद
मेरी उम्मीदों का चाँद भी
कुछ इस कदर ही
बनता बिखरता होगा
कभी खुद रोता तो
कभी मुझे रुलाता होगा
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