Wednesday, May 18, 2011

चाँद

तेरा मेरा हमराज ये चाँद

इस काली स्याह रात में

राह भटकता होगा चाँद

कभी तुम्हे तो कभी मुझे

याद करता होगा चाँद

कभी समंदर की लहरों में

अपने आप को खोजता होगा चाँद

तो कभी चंपा के फूलों के पीछे

आंसू बहाता होगा चाँद


तेरे मेरे जिंदगी के कितना करीब है ये चाँद


वैसे तो मैंने चाँद को

हर रोज तिल तिल टूटते हुवे देखा है

कभी खुदसे तो कभी

दुसरो से रुठते हुवे देखा है


शायद उसकी उम्मीद

उसे फिर ले आती है

कभी उसे

तो कभी मुझे रुलाती है


शायद..... शायद

मेरी उम्मीदों का चाँद भी

कुछ इस कदर ही

बनता बिखरता होगा

कभी खुद रोता तो

कभी मुझे रुलाता होगा

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