सर्दियों में शाम कुछ जल्दी आती है
और अक्सर उदास कर जाती है
दूर कही उठता हुवा वो सिगडी का धुवा
और
सूरज के जाने के बाद तंग करने वाली
ठंडी हवाए
पेड़ो के लम्बे होते हुवे साये
और
बोझिल सन्नाटे में से किसी के गाने की आती हुवी आवाज
इन सब की जैसे अब आदत सी हो गयी है
दिये की लौ कभी कांपती हुवी
तो कभी अडिग हो कर जलती हुवी
मेरे अस्तित्व को चुनौती देती हुवी
मै उसे बुझा देता हु
क्योंकि मै उसकी चुनौती से डरता हु शायद
या फिर शायद
मुझे ये अँधेरा अच्छा लगने लगा है
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