सर्दियों की शाम अक्सर उदास होती है
एक अजीब सा सन्नाटा होता है
जो मुझे झझकोर देता है
और मै बैचैनी से
ढूंढने लगता हु
उस सूरज को
जिससे
अपने हिस्से
की मुट्ठी भर
धुप ले सकू
जिसकी
नर्म गर्माहट
मुझे तेरी
याद दिलाये
ताकि
मै
कुछ दिन
और
साँस ले सकू
No comments:
Post a Comment