बदहवासी की हालत में
बेतहाशा भागता हुवा वो
कभी आगे तो कभी पीछे देखता हुवा
हर बार लगने वाली ठोकरों से खुद को संभालता हुवा
और पीछे भागने वाली भीड़ से खुद को बचाता हुवा
भीड़ कभी गालिया निकालती तो कभी
पत्थर उछालती
अपने उन्माद को और बढाती हुई
धीरे धीरे भीड़ नजदीक आने लगी
अब उसका भी दम फूलने लगा
जल्दी ही भीड़ ने उसको दबोच लिया
वो निचे था और जनता उसके ऊपर
बड़ी मुश्किल से जतन की हुई
हाथ की रोटी
मिटटी में मिल चुकी थी
और साथ ही में
मिल गयी थी मिटटी में
उसकी भूक
और
आँख से गिरते हुवे आंसू
super like Sir..
ReplyDeleteAbhay..tum mujhe kai baar avaak kar dete ho..
ReplyDeleteधन्यवाद मनीषा दि
ReplyDeleteरोहित बाबु तहे दिल से शुक्रिया
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