Tuesday, March 1, 2011

परीक्षा

जब अक्सर चलने लगती है धुल भरी आंधिया

और गिरने लगते है पेड़ो से अनवरत पत्ते,


भरी दोपहरी में आती है

पत्तो के पीछे से कोयल की आवाज,


या फिर २ पंक्तिया पढने के बाद ही

अक्षर होने लगते है धुंधले !


जब साइकिल के चक्के करने लगते है

दोस्ती सड़क के डामर से,


और आते जाते मन बहका जाती है

पकी इमली की खुशबु ,


कभी सिर्फ सुनाई देती है

कुल्फी वाले के घंटी की आवाज


या फिर...........

पानी पीते ही लगने लगती है प्यास


तो ऐसा लगता है

मानो पेपर बिघड गया हो

1 comment:

  1. Ha ha ha ...bahot surile...mujhe to ghabrahat bhi hone lagi...vo pankhe ki ghar ghar karti aawaaz sunai dene lagi..

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