गर अब तुम्हारे मिजाज ठीक हो और तुम्हे चंद लम्हों की फुरसत हो
तो जरा  हमें भी याद कर लेना...हम तो तुम्हारी याद में खुद को भुलाये बैठे है  
 
पहले खुद के बारे में सोचने के लिए वक़्त नहीं था
और अब खुद के बारे में सोचने में डर लगता है 
  
वैसे अब मुझे समंदर किनारे चलने से भी डर लगता है 
गिरते वक़्त थामने के लिए तुम्हारा हाथ जो नहीं है 
 
पर फिर मुझे इस बात की परवाह भी नहीं की जिंदगी के कितने लम्हे बचे है  
आरजू है की एक बार सिर्फ एक बार तुम्हारी आँखों को देख सकू  
 
एक शहर जो मेरे लिए अजनबी था उसे तुम्हारी मौजूदगी ने अपना बना दिया 
अब जब तुम ही दूर हो गए हो तो क्या फर्क पड़ता है मै किसी भी शहर में रहू 
 
माना की अब तुम्हारे पास मेरे लिए वक़्त नहीं और अब तुम्हे मेरी जरुरत भी नहीं
पर साथ बिताये लम्हों की याद तुम्हे भी आती तो होगी...सताती भी होगी
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