फासले कभी मिलो के तो कभी दिलो के 
कुछ हमने बनाये हुवे और कुछ हमने मिटाए हुवे 
 
कुछ जिंदगी भर साथ रह कर भी बन जाने वाले 
तो कुछ जिंदगी भर साथ साथ चलने वाले 
 
कभी जिंदगी भर एक साथ चार दीवारों के बीच  रह कर भी 
बन जाने वाले और फिर कभी खत्म ना होने वाले 
 
तो कुछ ऐसे जो मिलो दूर रह कर भी 
महसूस ना होने वाले 
कई बार मिलो के फासले यु ही  तय हो जाते है 
तो  दिलो के फासलों को मिटाने में जिंदगी निकल जाती है 
 
कई बार समाज इन्हें बढ़ा देता है तो कभी हमारी सोच  
और हम उलझ  के रह जाते है अपने ही बुने हुवे जाल में 
 
कई ब़ार सांस अटक जाती है तो कई बार अल्फाज नहीं मिलते 
वरना ये फासले ना इस तरह से बनते और ना ही बढ़ते 
सिर्फ एक कदम, एक अल्फाज, एक नजर, एक मुस्कुराहट 
शायद कहानी को बदल देती 
 
ना वो फासले होते ना ये कहानी होती
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