Monday, December 27, 2010

तुम कहा हो.......

बड़ी मुद्दत हो गयी है तुम्हारी आवाज़ सुने हुवे
और उससे भी ज्यादा वक़्त गुजर गया है तुम्हे देखे हुवे

फिर भी क्यों लगता है जैसे ये कल ही की बात हो

वो taxi का लम्बा इंतजार
और डर किसीके देख लेने का

तुम्हारा अविरत बाते करना और
मेरा सिर्फ तुम्हारी और देखते रहना

और कभी कभी वो व्यर्थ की बहस
और फिर लम्बी चुप्पी

हमारा वो निशब्द वार्तालाप

और फिर तकलीफ वक़्त के ख़त्म हो जाने की


वो समंदर का किनारा, चाँद की वो मद्धम रौशनी
शोर मचाती हुवी और हमारे कदमो के निशान मिटाती वो लहरें
हमें डराती तो कभी हमें भिगाती पर फिर भी हमें अपने पास बुलाती

एक एकाकी नाव किसी लहर के इंतजार में
बगैर किसी मल्लाह के

पास ही के पेड़ो पर के वो चंपा के फूल
हमें एक टक निहारते हुवे

ना जाने क्यों हर वक़्त ये लगता है जैसे तुमसे मुलाक़ात होगी
और मै अपने आप को भुला कर फिर करने लगता हु इंतजार

पर लगता है इंतजार की जिंदगी इस जिंदगी से भी लम्बी है

पता नहीं कभी कभी मै तुम्हारी याद में तुम्हारा इंतजार करना भी भूल जाता हु

शायद अब मुझे तुम्हारे बगैर रहने की आदत हो गयी है

या फिर मैंने खुदको धोका देना सीख लिया है

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