Monday, July 23, 2012

मै और दरख्त

एक लम्बा इंतज़ार


सारा का सारा तुम्हारा

और थोडा बारिश का भी



मेरा लगातार यु ही

देहलीज पे अटके रहना

और सामने वाले दरख़्त का

मुझे घुरना एकटक



पिछले आँगन का सुखा कुवाँ

वक़्त - बेवक्त मुझे बुलाता है

उसे मेरे इन्तजार की हदे

मालूम नहीं है

शायद





पिछले कुछ सालों से आम मे बौर

नहीं आते अब

और कोयल ने भी चुप्पी साध ली है

अचानक



मेरे जजबातों में जंग लग चुका है

और मै उन्हें कुरेदना चाहता हु



ताकि एक ब़ार खुल के रो सकू

बाहर वाले दरख़्त को भींच कर

अपनी बाँहों में



इसके पहले की

वक़्त की कुल्हाड़ी उसे

काट दे

और मै रह जाऊ



बिलकुल अकेला........ एकाकी



~अभय

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