Tuesday, August 23, 2011

डर

मै तब जैसा था

आज भी

वैसा ही हु

पर शायद

अब

तुम्हारा नजरिया ही बदल गया है

वैसे और भी कुछ बदला है

मेरी जिंदगी में

अब मैंने समंदर पे जाना छोड़ दिया है

मुझे डर है कही

वो अकेली नाव

किनारे की ठंडी रेत

नारियल के वो पेड़

समंदर की लहरें

चंपा के मासूम फूल

वो अजनबी जिसने हमें रास्ता बताया था

और वो पुलिस वाला जिसने हमें धमकाया था

हमने इकट्ठी की हुई सीपिया

रात की तनहाई

सुबह का सूरज

ये सब

तुम्हारे बारे में ना पुछ ले

क्या जवाब दूंगा मै उन्हें

की मैंने तुम्हे खो दिया

या अपने आप को

या की अब मै

खुद ही को नहीं

पहचानता

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