कमरा खाली मन खाली
दीवारे सूनी मै अकेला
कभी जीता कभी हारा
" जिंदगी " ने खिलाया मै खेला
कभी भरा तो कभी सूना
मेरे मन का ये कोना
भरा पूरा है जीवन का मेला
चारो तरफ भीड़ ही भीड़ फिर भी मै अकेला
मेरा मन निर्विकार जैसे....... एक खाली प्याला
सुबह जिसमे डलती है चाय शाम को बन जाये मय का प्याला
यारो के साथ बैठा तो गले में उतरता है निवाला
वरना तो भूखा ही सोता है ये मतवाला
तेरी हँसी ने तेरी आँखों ने पागल बना डाला
कमरा खाली मन खाली
दीवारे सूनी मै अकेला
सुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है।
ReplyDeleteशुक्रिया संजय जी
ReplyDeleteखूबसूरती से लिखे एहसास ..
ReplyDeleteधन्यवाद् संगीता जी
ReplyDeleteSir maja aa gaya ..BOL BAALE.
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