Sunday, April 3, 2011

मैंने देखा था एक ख्वाब

मैंने देखा था एक ख्वाब

झील सी आँखों का

खनकती हंसी का

शहद सी बोली का



अब भी रखा है उसे सहेज के

अपने तकिये के निचे

मन के किसी कोने में

यादों की चौकट में

मेरी सांसो में

मेरी धड़कन में

तुम्हारी हंसी में

मेरे आँसुओ में



देखता हु उसे निकाल के

जब भी होता हु अकेला


या फिर


जब होना चाहता हु अकेला,

यादों में तुम्हारी खोने के लिए

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