Sunday, April 17, 2011

रोटी

बदहवासी की हालत में

बेतहाशा भागता हुवा वो

कभी आगे तो कभी पीछे देखता हुवा

हर बार लगने वाली ठोकरों से खुद को संभालता हुवा

और पीछे भागने वाली भीड़ से खुद को बचाता हुवा


भीड़ कभी गालिया निकालती तो कभी

पत्थर उछालती

अपने उन्माद को और बढाती हुई


धीरे धीरे भीड़ नजदीक आने लगी

अब उसका भी दम फूलने लगा

जल्दी ही भीड़ ने उसको दबोच लिया

वो निचे था और जनता उसके ऊपर


बड़ी मुश्किल से जतन की हुई

हाथ की रोटी

मिटटी में मिल चुकी थी

और साथ ही में

मिल गयी थी मिटटी में

उसकी भूक

और

आँख से गिरते हुवे आंसू

4 comments:

  1. Abhay..tum mujhe kai baar avaak kar dete ho..

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  2. धन्यवाद मनीषा दि

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  3. रोहित बाबु तहे दिल से शुक्रिया

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